अध्याय 4 : भारत के विदेशी संबंध | Class 12 Political Science NCERT Solution in Hindi

कक्षा 12 राजनीति विज्ञान – अध्याय 4 : भारत के विदेशी संबंध NCERT Solutions हिंदी में

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  • NCERT Solutions Political Science Class 12 Chapter 4 in Hindi
  • भारत की विदेश नीति से जुड़े महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
  • Board Exam 2025 Important Questions & Answers

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अध्याय 4 : भारत के विदेशी संबंध
नेहरू विदेश नीति

1. इन बयानों के आगे सही या गलत का निशान लगाएं ?
(क) गुटनिरपेक्षता की नीति अपनाने के कारण भारत सोवियत संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका, दोनों की सहायता हासिल कर सका।
(ख) अपने पड़ोसी देशों के साथ भारत के संबंध शुरुआत से ही तनावपूर्ण रहे।
(ग) शीत युद्ध का असर भारत-पाक संबंधों पर भी पड़ा। 
(घ) 1971 की शांति और मैत्री की संधि संयुक्त राज्य अमेरिका से भारत की निकटता का परिणाम थी।
उत्तर:- (क) सही (ख)  गलत (ग) सही (घ) गलत 

2. निम्नलिखित का सही जोड़ा मिलाएं :

(1) 1950 - 1964 के दौरान भारत की विदेश नीति का लक्ष्य

(A) तिब्बत के धार्मिक नेता जो सीमा पार करके भारत चले आए

(2) पंचशील   

(B) क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता की रक्षा तथा आर्थिक विकास

(3) बांडुंग सम्मेलन

(C) शांतिपूर्ण सह - अस्तित्व के पांच सिद्धांत

(4) दलाई लामा

(D) इसकी परिणति गुटनिरपेक्ष आंदोलन में हुई


उत्तर :

(1) 1950 - 1964 के दौरान भारत की विदेश नीति का लक्ष्य

(B) क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता की रक्षा तथा आर्थिक विकास

(2) पंचशील   

(C) शांतिपूर्ण सह - अस्तित्व के पांच सिद्धांत

(3) बांडुंग सम्मेलन

(D) इसकी परिणति गुटनिरपेक्ष आंदोलन में हुई

(4) दलाई लामा

(A) तिब्बत के धार्मिक नेता जो सीमा पार करके भारत चले आए



3. नेहरू विदेश नीति के संचलान  को स्वतंत्रता का एक अनिवार्य संकेतक क्यों मानते थे ? अपने उत्तर में दो कारण बताएं और उनके पक्ष में उदाहरण भी दें। 
उत्तर : पंडित जवाहरलाल नेहरू भारत के पहले प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री थे। वे विदेश नीति को भारत की नई स्वतंत्रता का प्रतीक मानते थे क्योंकि:
(i) नेहरू का मानना था कि स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद भारत को अपनी विदेश नीति स्वयं बनानी चाहिए, न कि किसी विदेशी शक्ति के प्रभाव में रहकर।
उदाहरण: भारत ने शीत युद्ध के समय गुटनिरपेक्ष नीति अपनाई। भारत ने न अमेरिका का साथ दिया और न सोवियत संघ का, बल्कि स्वतंत्र रुख अपनाया। 
(ii) स्वतंत्रता के बाद भारत को अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करनी थी और साथ ही विश्व शांति और विकास के लिए योगदान देना था। विदेश नीति इसके लिए एक साधन थी।
उदाहरण: भारत ने पंचशील सिद्धांत और बांडुंग सम्मेलन के ज़रिए शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व को बढ़ावा दिया। 
 
4. "विदेश नीति का निर्धारण घरेलू जरूरत और अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों के दोहरे  दबाव में होता है। "1960 के दशक में भारत द्वारा अपनाई गई  विदेश नीति से एक उदाहरण देते हुए अपने उत्तर की पुष्टि करें।
उत्तर : विदेश नीति किसी भी देश की घरेलू आवश्यकताओं और अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों दोनों के प्रभाव में बनती है। भारत की विदेश नीति भी इसका स्पष्ट उदाहरण है।
उदाहरण: 1962 का भारत-चीन युद्ध :-
1962 में चीन के साथ युद्ध के बाद भारत को अपनी रक्षा व्यवस्था मज़बूत करने की आवश्यकता महसूस हुई। देश में यह भावना फैल गई कि भारत को अब केवल आदर्शवाद पर नहीं, बल्कि सुरक्षा और सैन्य शक्ति पर भी ध्यान देना होगा।
चीन के आक्रमण के बाद भारत को तत्काल अंतरराष्ट्रीय समर्थन की आवश्यकता पड़ी और इस समय भारत ने अमेरिका और ब्रिटेन से सैन्य सहायता प्राप्त की, जबकि पहले भारत गुटनिरपेक्ष नीति के अंतर्गत किसी गुट में शामिल नहीं होता था।

5. अगर आपको भारत की विदेश नीति के बारे में फैसला लेने को कहा जाए तो आप इसकी किन  दो बातों को बदलना चाहेंगे |  ठीक इसी तरह यह भी बताएं कि भारत की विदेश नीति के किन दो पहलुओं को आप बरकरार रखना चाहेंगे अपने उत्तर के समर्थन में तर्क  दीजिए | 
उत्तर : अगर मुझे भारत की विदेश नीति के बारे में फैसला लेने को कहा जाए तो मैं इसकी निम्न दो बातों को बदलना चाहूंगी जो इस प्रकार से हैं :  
(i) पड़ोसी देशों के साथ संबंधों में ज्यादा सक्रियता लाना : संवाद और विश्वास बढ़ाने की नीति अपनाना जिससे क्षेत्र में शांति बनी रहे।
(ii) विदेश नीति में तेज़ प्रतिक्रिया और लचीलापन जिसमे बदलती वैश्विक स्थिति के अनुसार भारत को तेज़ और प्रभावशाली निर्णय लेने की ज़रूरत है, जैसे चीन की बढ़ती गतिविधियों पर स्पष्ट रुख।
दो बातें जो मैं बरकरार रखना चाहूंगा :
(i) गुटनिरपेक्षता की भावना: स्वतंत्र विदेश नीति और सभी से अच्छे संबंध रखना भारत के हित में है। इससे भारत किसी एक शक्ति पर निर्भर नहीं रहता और अपना निर्णय खुद ले सकता है।
(ii) विश्व शांति और सहयोग की नीति: भारत ने हमेशा अहिंसा, शांति और सहयोग का समर्थन किया है, जैसे पंचशील सिद्धांत और संयुक्त राष्ट्र में योगदान।

6. निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए :
(क) भारत की परमाणु नीति
(ख) विदेश नीति के मामलों पर सर्व सहमति
उत्तर : (क) भारत की परमाणु नीति :- 
(i) भारत प्रारम्भ परमाणु नीति क विरोधी रहा हैं और 1974 में भारत ने अपना पहला शांतिपूर्ण परमाणु परीक्षण किया 
(ii) भारत की परमाणु नीति स्वतंत्रता, शांति और आत्म-निर्भरता पर आधारित रही है।
(iii) पंडित नेहरू ने परमाणु ऊर्जा को मुख्यतः शांतिपूर्ण उद्देश्यों, जैसे ऊर्जा उत्पादन और वैज्ञानिक प्रगति के लिए अपनाया।
(iv) भारत ने हमेशा "परमाणु निरस्त्रीकरण" का समर्थन किया, परंतु साथ ही अपनी स्वतंत्र निर्णय लेने की क्षमता को भी बनाए रखा।
(ख) विदेश नीति के मामलों पर सर्वसम्मति :-
(i) भारत की विदेश नीति के संचालन में शुरू से ही राजनीतिक दलों के बीच व्यापक सहमति रही है। विशेष रूप से गुटनिरपेक्षता, शांति की नीति, और पड़ोसी देशों से सहयोगपूर्ण संबंध इन बिंदुओं पर अधिकांश दलों में एकमत रहा।
(ii) नेहरू की विदेश नीति को विपक्ष द्वारा आलोचना तो मिली, परंतु मूलभूत सिद्धांतों पर समर्थन भी रहा।
(iii) जैसे-जैसे समय बदला, कुछ मतभेद उभरे लेकिन फिर भी विदेश नीति राष्ट्रीय हितों से जुड़ी होने के कारण अक्सर दलगत राजनीति से ऊपर रही।

7. भारत की विदेश नीति का निर्माण शांति और सहयोग के सिद्धांतों को आधार मानकर हुआ। लेकिन , 1962 -1971 की अवधि यानी महज  दस  सालों में भारत को तीन युद्धों का सामना करना पड़ा। क्या आपको लगता है कि यह भारत की विदेश नीति की असफलता है अथवा , आप इसे अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों का परिणाम मानेंगे? अपने मंतव्य के पक्ष में तर्क दीजिए।
उत्तर : भारत की विदेश नीति का निर्माण शांति, अहिंसा, गुटनिरपेक्षता और सहयोग जैसे सिद्धांतों पर आधारित था। लेकिन 1962 से 1971 के दशक में तीन युद्ध होना यह संकेत नहीं करता कि भारत की विदेश नीति असफल रही, बल्कि यह अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों और पड़ोसी देशों की आक्रामक नीतियों का परिणाम था।
भारत को तीन युद्धों का सामना करना पड़ा जो निम्न प्रकार से थे :
(i) 1962 का भारत-चीन युद्ध,
(ii) 1965 का भारत-पाकिस्तान युद्ध,
(iii)1971 का भारत-पाकिस्तान युद्ध (जिससे बांग्लादेश का निर्माण हुआ)।
यह भारत की विदेश नीति की असफलता नहीं थी, इसके पक्ष में तर्क:
(i) भारत ने चीन और पाकिस्तान दोनों के साथ शांतिपूर्ण संबंध बनाने की कोशिश की। चीन के साथ ‘पंचशील’ समझौता हुआ, और पाकिस्तान के साथ कई बार बातचीत की पहल की गई। लेकिन फिर भी, चीन ने 1962 में आक्रमण किया और पाकिस्तान ने 1965 में युद्ध छेड़ा। ये आक्रमण भारत की ओर से नहीं थे यह आक्रमण उन देशो द्वारा शुरू किये गये।
(ii) भारत ने शीत युद्ध के समय किसी भी सैन्य गुट (अमेरिका और सोवियत संघ) में शामिल न होकर गुटनिरपेक्षता नीति को अपनाया। इससे भारत को स्वतंत्र विदेश नीति अपनाने की स्वतंत्रता मिली।
(iii) 1971 का युद्ध जिसमे भारत ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समर्थन जुटाया और फिर पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई की, जिससे बांग्लादेश स्वतंत्र हुआ। यह भारत की विदेश नीति की नैतिक सफलता मानी जाती है।

8.क्या भारत की विदेश नीति से यह झलकता है कि भारत क्षेत्रीय स्तर की महाशक्ति बनना चाहता है ? 1971 के बांग्लादेश युद्ध  के संदर्भ में इस प्रश्न पर  विचार करें।
उत्तर : हाँ, भारत की विदेश नीति से यह संकेत अवश्य मिलता है कि भारत क्षेत्रीय स्तर की महाशक्ति बनने की आकांक्षा रखता है। 1971 के बांग्लादेश युद्ध की घटनाएं इस बात का प्रमुख उदाहरण हैं।
1971 का बांग्लादेश युद्ध में भारत ने बांग्लादेश की स्वतंत्रता संग्राम में निर्णायक भूमिका निभाई। जब पाकिस्तान के पूर्वी हिस्से (अब बांग्लादेश) में पश्चिमी पाकिस्तान की सेना द्वारा अत्याचार और दमन किया जा रहा था, तब लाखों शरणार्थी भारत में आए और भारत ने उनको शरण दी । इससे भारत पर भारी सामाजिक और आर्थिक बोझ पड़ा। भारत ने बांग्लादेश की मुक्ति के पक्ष में कदम उठाए, जिससे यह स्पष्ट होता है कि वह क्षेत्रीय मामलों में प्रभावशाली भूमिका निभाना चाहता था।
भारत की विदेश नीति और महाशक्ति बनने की आकांक्षा:
(i) भारत ने अपनी सैन्य शक्ति का प्रयोग करके पाकिस्तान को पराजित किया और बांग्लादेश के निर्माण में सहयोग दिया। यह भारत की क्षेत्रीय शक्ति बनने की क्षमता को दर्शाता है।
(ii) भारत ने सोवियत संघ के साथ 'मित्रता संधि' 1971 की, जिससे यह सुनिश्चित होगा कि यदि युद्ध हुआ तो भारत को अंतर्राष्ट्रीय समर्थन प्राप्त हो सके। यह एक रणनीतिक विदेश नीति का संकेत है।
(iii) भारत ने यह दिखाया कि वह दक्षिण एशिया में शांति, स्थिरता और स्वतंत्रता का समर्थक है, और यदि आवश्यक हुआ तो निर्णायक कदम उठाने से पीछे नहीं हटेगा।

9.किसी राष्ट्र का राजनीतिक नेतृत्व किस तरह उस  राष्ट्र की विदेश नीति पर असर डालता है ? भारत की विदेश नीति के उदाहरण देते हुए इस प्रश्न पर विचार कीजिए।
उत्तर : किसी भी देश की विदेश नीति उस देश की राजनीतिक विचारधारा, नेतृत्व और राष्ट्रीय हितों पर आधारित होती है। राजनीतिक नेतृत्व (जैसे प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, विदेश मंत्री) यह तय करते है कि दूसरे देशों से किस प्रकार से संबंध बनाए जाएँ।
भारत की विदेश नीति में भी राजनीतिक नेतृत्व का महत्वपूर्ण असर रहा है। अलग-अलग प्रधानमंत्रियों के समय में विदेश नीति की प्राथमिकताएँ बदलती रही हैं उदाहरण के तौर पर :
(i) नेहरू युग के दौरान  (1947–1964) :
प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने भारत की विदेश नीति को आकार दिया।
उन्होंने गुटनिरपेक्ष आंदोलन की नींव रखी, जिससे भारत ने किसी शक्ति (अमेरिका और सोवियत संघ) में शामिल नहीं होने की नीति अपनाई। भारत की नीति शांति, सह-अस्तित्व और स्वतंत्र निर्णय पर आधारित थी।
(ii) इंदिरा गांधी युग के दौरान  (1966–1977, 1980–1984):
उन्होंने सशक्त और व्यावहारिक विदेश नीति को अपनाया। 1971 में भारत-पाक युद्ध के दौरान भारत ने बांग्लादेश की स्वतंत्रता में अहम भूमिका निभाई।
(iii) 1990 के बाद :
इस समय भारत में आर्थिक उदारीकरण हुआ और भारत की विदेश नीति में भी बदलाव आए। भारत ने अमेरिका और अन्य विकसित देशों के साथ अपने संबंध मजबूत किए।
अटल बिहारी वाजपेयी के समय भारत ने परमाणु परीक्षण किए और अमेरिका के साथ अच्छे संबंध स्थापित किये।
(iv) नरेंद्र मोदी यानिकि हाल के वर्षों के दौरान :
भारत की विदेश नीति और भी सक्रिय और महत्वाकांक्षी हुई है।
‘नेबरहुड फर्स्ट’ नीति, एक्ट ईस्ट पॉलिसी, और दुनिया के प्रमुख नेताओं से रिश्ते मजबूत करने पर जोर दिया गया।

10.निम्नलिखित अवतरण को पढ़े  और इसके आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए :
गुटनिरपेक्षता का व्यापक अर्थ है अपने को किसी भी सैन्य  गुट में शामिल नहीं करना ....... इसका अर्थ होता है चीजों को यथासंभव सैन्य  दृष्टिकोण से न देखना और इसकी कभी जरूरत आन पड़े तब भी किसी सैन्य  गुट के नज़रिए  को अपनाने की जगह स्वतंत्र रूप से स्थिति पर विचार करना तथा सभी देशों के साथ दोस्ताना रिश्ते कायम करना......                                                                              
                                                                                                                               
----- जवाहरलाल नेहरू

(क) नेहरू सैन्य गुटों से दूरी क्यों बनाना  चाहते थे?
(ख) क्या आप मानते हैं कि भारत - सोवियत मैत्री की संधि से गुटनिरपेक्षता के सिद्धांतों का उल्लंघन हुआ? अपने उत्तर के समर्थन में तर्क  दीजिए 
(ग) अगर सैन्य- गुट ना होते तो क्या गुटनिरपेक्षता की नीति बेमानी होती?
उत्तर : (क) नेहरू सैन्य गुटों से दूरी बनाना चाहते थे क्योंकि :-
(i) नेहरू जी का मानना था कि किसी भी सैन्य गुट में शामिल होने से देश की स्वतंत्र नीति पर असर पड़ता है।
(ii) वे चाहते थे कि भारत किसी का पक्ष लिए बिना हर मुद्दे पर स्वतंत्र रूप से विचार और सालहमशवरा कर सके।
(iii) सैन्य गुटों से दूरी बनाकर भारत शांति और स्वं की नीति बनाना चाहता था 
(ख) यह नहीं माना जा सकता कि भारत - सोवियत मैत्री की संधि से गुटनिरपेक्षता के सिद्धांतों का उल्लंघन हुआ, समर्थन में तर्क इस प्रकार से हैं :-
(i) यह संधि किसी सैन्य गुट का हिस्सा बनने के लिए नहीं थी, बल्कि यह शांति, सहयोग और परस्पर सहायता की संधि थी। 
(ii) इस संधि का मकसद भारत की सुरक्षा और राष्ट्रीय हितों की रक्षा करना था, खासकर जब पाकिस्तान और अमेरिका के बीच नज़दीकी बढ़ रही थी।
(ग) हां, अगर सैन्य- गुट ना होते तो क्या गुटनिरपेक्षता की नीति कुछ हद तक बेमान होती क्योंकि :-
(i) गुटनिरपेक्षता की नीति तभी महत्वपूर्ण होती है जब दुनिया में सैन्य गुट बने हों – जैसे अमेरिका के नेतृत्व में नाटो और सोवियत संघ के नेतृत्व में वारसा संधि।
(ii) अगर सैन्य गुट नहीं होते, तो किसी के पक्ष में या विरोध में खड़े होने की ज़रूरत ही नहीं होती।
इसलिए गुटनिरपेक्षता का उद्देश्य तब ही महत्वपूर्ण होता है जब दो या दो से अधिक शक्तियां आपस में टकरा रही हों।





❓ अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs) – भारत के विदेशी संबंध

Q1. भारत की स्वतंत्रता के बाद विदेश नीति के मुख्य उद्देश्य क्या थे?
Ans : स्वतंत्र भारत की विदेश नीति का मुख्य उद्देश्य था – राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा, विश्व शांति की स्थापना, गुटनिरपेक्ष आंदोलन का नेतृत्व, और विकासशील देशों के साथ सहयोग बढ़ाना।

Q2. भारत ने विदेश नीति में गुटनिरपेक्षता (Non-Aligned Policy) क्यों अपनाई?
Ans : भारत ने शीत युद्ध के दौरान किसी भी सैन्य या राजनीतिक गुट का हिस्सा बनने से इंकार किया और स्वतंत्र विदेश नीति अपनाई। इसका उद्देश्य था दुनिया में संतुलन बनाना और विकासशील देशों की आवाज़ को मजबूती देना।

Q3. भारत और संयुक्त राष्ट्र संघ (UN) का क्या संबंध है?
Ans : भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना से ही सक्रिय सदस्यता निभाई है। भारत UN के माध्यम से शांति, विकास और मानवाधिकारों के क्षेत्र में योगदान देता रहा है।

Q4. भारत और पड़ोसी देशों के संबंध विदेश नीति में कैसे परिलक्षित हुए?
Ans : भारत ने पड़ोसी देशों जैसे पाकिस्तान, चीन, नेपाल, भूटान, बांग्लादेश और श्रीलंका के साथ सहयोग और शांति बनाए रखने के लिए कई समझौते किए।

Q5. बोर्ड परीक्षा में भारत के विदेशी संबंध अध्याय से कौन-कौन से प्रश्न पूछे जाते हैं?

Ans : स्वतंत्र भारत की विदेश नीति के उद्देश्य और सिद्धांत
गुटनिरपेक्ष नीति और NAM में भारत की भूमिका
भारत-UN और भारत-पड़ोसी देशों के संबंध



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