अध्याय-2 : दो ध्रुवीयता का अंत | Class 12 Political Science NCERT Solutions in Hindi

कक्षा 12 राजनीति विज्ञान – अध्याय 2 : दो ध्रुवीयता का अंत  NCERT Solutions in Hindi

दो ध्रुवीयता का अंत (End of Bipolarity) शीत युद्ध के अंत और वैश्विक राजनीतिक बदलाव का एक महत्वपूर्ण अध्याय है। इस अध्याय में यह समझाया गया है कि कैसे सोवियत संघ का विघटन और अमेरिका का एकमात्र महाशक्ति बनना वैश्विक राजनीति में नए परिवर्तन लेकर आया। यह प्रश्न-उत्तर Class 12 Board Exam की तैयारी करने वाले छात्रों के लिए बेहद उपयोगी हैं। Political Science Class 12 के इस अध्याय के सभी महत्वपूर्ण प्रश्न यहाँ सटीक उत्तरों के साथ दिए गए हैं।"
अध्याय-2 : दो ध्रुवीयता का अंत NCERT Solutions in Hindi
दो ध्रुवीयता का अंत


1. सोवियत अर्थव्यवस्था की प्रकृति के बारे में निम्नलिखित में से कौन सा कथन गलत है ?
(क) सोवियत अर्थव्यवस्था में समाजवाद प्रभावी विचारधारा थी।
(ख) उत्पादन के साधनों पर राज्य का स्वामित्व/नियंत्रण होना।
(ग) जनता को आर्थिक आजादी थी।
(घ) अर्थव्यवस्था के हर पहलू का नियोजन और नियंत्रण राज्य करता था।
उत्तर: (ग) जनता को आर्थिक आजादी थी।

2. निम्नलिखित को कालक्रमानुसार सजाएँ?
(क) अफगान-संकट
(ख) बर्लिन-दीवार का गिरना
(ग) सोवियत संघ का विघटन
(घ) रूसी क्रांति

उत्तर : (घ) रूसी क्रांति (क) अफगान – संकट (ख) बर्लिन-दीवार का गिरना (ग) सोवियत संघ का विघटन

3. निम्नलिखित में से कौन सा सोवियत संघ के विघटन का परिणाम नहीं है-
(क) संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ के बीच विचारधारात्मक लड़ाई का अंत
(ख) स्वतंत्र राज्यों के राष्ट्रकुल (सीआईएस) का जन्म
(ग) विश्व-व्यवस्था के शक्ति-संतुलन में बदलाव
(घ) मध्यपूर्व में संकट

उत्तर :  (घ) मध्यपूर्व में संकट


4. निम्नलिखित में मेल बैठाएं:

स्तम्भ 1

स्तम्भ 2

(1) मिखाइल गोर्बाचेव

(सोवियत संघ का उत्तराधिकारी

(2) शॉक थेरेपी

(सैन्य समझौता

(3) रूस

(सुधारों की शुरूआत

(4) बोरिस येल्तसिन

(आर्थिक मॉडल

(5) वारसॉ

(रूस के राष्ट्रपति

 उत्तर : (1) -         (2)-        (3)-        (4)-        (5)-

5. रिक्त स्थानों की पूर्ति करें।
(क) सोवियत राजनीतिक प्रणाली ________ की विचारधारा पर आधारित थी।
(ख) सोवियत संघ द्वारा बनाया गया सैन्य गठबंधन _________ था।
(ग) ___________ पार्टी का सोवियत राजनीतिक व्यवस्था पर दबदबा था।
(घ) __________ ने 1985 में सोवियत संघ के सुधारों की शुरूआत की।
(ड) ____________ का गिरना शीतयुद्ध के अंत का प्रतीक था।
उत्तर : (क) समाजवाद    (ख) वारसा पैक्ट    (ग) समाजवादी    (घ) मिखाइल गोर्बाचेव    (ड.) बर्लिन की दीवार

6. सोवियत अर्थव्यवस्था को किसी पूँजीवादी देश जैसे संयुक्त राज्य अमरीका की अर्थव्यवस्था से अलग करने वाली किन्हीं तीन विशेषताओं का जिक्र करें।
उत्तर : सोवियत संघ ने समाजवादी व्यवस्था को अपनाया तथा अमेरिका ने पूँजीवादी व्यवस्था को अपनाया। सोवियत प्रणाली समाजवादी व्यवस्था पर आधारित थी तथा सोवियत प्रणाली में कम्युनिस्ट पार्टी को अधिक महत्व दिया गया
सोवियत अर्थव्यवस्था को पूँजीवादी देश जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका की अर्थव्यवस्था से अलग करने वाली तीन विशेषताएँ इस प्रकार हैं:
1. यह प्रणाली समतामूलक का समाज और समाजवाद के आदर्शों पर आधारित थी तथा निजी स्वामित्व का विरोध करके समाज को समानता के सिद्धांत पर व्यवस्थित करना चाहती थी
2. पूँजीवादी अर्थव्यवस्था वाले देशों के विपरीत यह प्रणाली सोवियत प्रणाली पूंजीवादी और मुक्त व्यापार के विरुद्ध थी
3. सोवियत प्रणाली देश के सभी प्राकृतिक और निजी संसाधनों पर समाज के सभी व्यक्तियों का अधिकार हो, इस पक्ष की समर्थन करती थी

7. किन बातों के कारण गोर्बाचेव सोवियत संघ में सुधार के लिए बाध्य हुए?

उत्तर : सन् 1985 में सोवियत संघ के राष्ट्रपति मिखाईल गोर्बाचेव बने। मिखाइल गोर्बाचेव को सोवियत संघ में सुधार करने के लिए कई कारणों ने बाध्य किया। इन कारणों में राजनीतिक, आर्थिक, और सामाजिक कारण शामिल थे, जो अंततः सोवियत संघ के विघटन की ओर ले गए।
1.शासन की जड़ता : सोवियत संघ में एकमात्र दल साम्यवादी दल का प्रभुत्व था यह दल किसी के प्रति उत्तरदाई नहीं था। सोवियत संघ पर धीरे-धीरे नौकरशाही का प्रभाव बढ़ता गया और सोवियत प्रणाली सत्तावादी हो गई और लोगों का जीवन कठिन होता गया। सोवियत संघ में लोकतंत्र तथा विचारों के अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं थी इसी कारण इसमें सुधार की आवश्यकता थी।
2. गणराज्यों में असंतोष: सोवियत संघ लगभग 15 गणराज्य का संबंध था जिसमें रूस का प्रभुत्व थाऔर सभी प्रकार के आवश्यक निर्णय रूस द्वारा लिए जाते थे जिससे अन्य देश खुद को सुरक्षित और अपमानित महसूस करते थे। सोवियत संघ के विभिन्न गणराज्य, जैसे कि बाल्टिक राज्यों, यूक्रेन, और मध्य एशियाई देशों में भी स्वतंत्रता और स्वायत्तता की मांगें तेज हो रही थीं।
3. आर्थिक संकट: सोवियत संघ की अर्थव्यवस्था 1970 के दशक के अंत तक गंभीर संकट में थी। उत्पादन में गिरावट, संसाधनों की कमी, और अत्यधिक सैन्य खर्च ने आर्थिक समस्याओं को बढ़ा दिया था। सोवियत संघ में समय-समय पर अत्याधुनिक खतरनाक हथियार बनाकर अमेरिका की बराबरी करनी शुरू कर दी जिसके कारण सोवियत संघ को इसकी बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी जो निशस्त्रीकरण के क्षेत्र में अत्यधिक धन खर्च करने से सोवियत संघ का बुनियादी ढांचा डगमगा गया और आर्थिक स्थिति पिछड़ गयी जिसके चलते भुख्मरी की समस्या पैदा हो गयी और बदलाव की आवश्यकता होने लगी।  
4. युद्ध और सैन्य खर्च : 1979 में अफगानिस्तान में सैनिक हस्तक्षेप के कारण सोवियत संघ की स्थिति और भी ज्यादा कमजोर हो गई इससे सैन्य सुधार की आवश्यकता भी महसूस हुई।

इन सभी कारणों ने मिलकर गोर्बाचेव को सोवियत संघ में सुधार करने के लिए बाध्य किया। उनका प्रयास था कि वे सुधारों के जरिए सोवियत संघ को बचा सकें, लेकिन अंततः ये सुधार संघ के विघटन का कारण बने।


8. भारत जैसे देशों के लिए सोवियत संघ के विघटन के क्या परिणाम हुए?
उत्तर : सोवियत संघ का विघटन (1991) भारत जैसे देशों के लिए कई महत्वपूर्ण परिणाम लेकर आया। सबसे महत्वपूर्ण परिणाम था शीत युद्ध के अंत के साथ दो महाशक्तियों के बीच का चल रहे वैचारिक टकराव तथा हथियारों की होड़ की समाप्ति ।
सोवियत संघ के विघटन के बाद भारत जैसे विकाशील देशों पर इसके निम्नलिखित प्रभाव पड़े:
1. राजनीतिक प्रभाव :- यह वैश्विक स्तर पर भारत की स्थिति में बदलाव का कारण बना। सोवियत संघ के साथ भारत के गहरे रणनीतिक और सैन्य संबंध थे, और इसने भारत की सुरक्षा नीति को प्रभावित किया।
2. सोवियत संघ के विघटन के बाद, रूस ने भारत के साथ अपने पुराने संबंधों को बनाए रखा। रूस और भारत के बीच रक्षा, ऊर्जा और व्यापार के क्षेत्रों में सहयोग जारी रहा। रूस ने भारत को कई सैन्य उपकरण, जैसे कि विमान, पनडुब्बियां, और मिसाइलों की आपूर्ति जारी रखी।
3. विघटन के बाद नव स्वतंत्र देशों का उदय हुआ और देश में सीमाओं को लेकर विवाद हुआ और चेचन्या और दागिस्तान में आपसे युद्ध की स्थिति पैदा हो गयी 
4. कई देशों में जहां समाजवादी नीतियाँ अपनाई जा रही थीं, उन्हें अब "विफल" माना जाने लगा। इस वजह से विकासशील देशों ने पूंजीवादी नीतियों को अपनाना शुरू किया।
5. अधिकांश विकासशील देशों ने वैश्वीकरण अपनाया और बाजार आधारित अर्थव्यवस्था की ओर कदम बढ़ाया जैसे भारत ने 1991 में किया, वैसे ही कई अन्य देशों ने भी अपने-अपने तरीके से किया।
6.भारत ने अमेरिका के साथ रिश्तों को मजबूत करना शुरू किया। 1991 के बाद, भारत ने अर्थव्यवस्था को उदारीकरण  दिशा में बढ़ाया, जिससे उसे पश्चिमी देशों से आर्थिक और तकनीकी समर्थन मिलने लगा।
सोवियत संघ का विघटन भारत और उसके जैसे विकासशील देशों के लिए एक बड़े झटके और अवसर दोनों की तरह था। अन्य विकासशील देशों ने भी धीरे-धीरे वैश्वीकरण, उदारीकरण और पश्चिमी देशों से संबंधों को अपनाकर अपने विकास का मार्ग खोजा।


9. शॉक थेरेपी क्या थी? क्या साम्यवाद से पूँजीवाद की तरफ संक्रमण का यह सबसे बेहतर तरीका था?
उत्तर : शॉक थेरेपी – इसका शाब्दिक अर्थ है आघात पहुँचाकर उपचार करना। साम्यवाद से पूंजीवाद में संक्रमण की एक नीति है जिसमें अर्थव्यवस्था में अचानक और बड़े बदलाव किए जाते हैं। इस नीति को मुख्य रूप से 1990 के दशक में पूर्वी यूरोप और सोवियत संघ के पूर्व उपनिवेशों में अपनाया गया था। सोवियत संघ के पतन के बाद रूस और पूर्वी अमेरिका तथा मध्य एशिया के देशों में साम्यवाद से पूंजीवाद की ओर संक्रमण के लिए एक विशेष मॉडल अपनाया गया जिसे शॉक थेरेपी कहा गया। रूस , पोलैंड, चेक गणराज्य और अन्य पूर्वी यूरोपीय देशों में यह प्रक्रिया अपनाई गई।
साम्यवाद से पूंजीवाद की तरफ संक्रमण का सबसे बेहतर तरीका था यह कहना काफी विवादास्पद है क्यूंकि  
सोवियत संघ के विघटन के बाद वहां के गणराज्य एक सत्तावादी समाजवादी प्रणाली से लोकतांत्रिक पूंजीवादी प्रणाली तक की यात्रा में विकट परिस्थितियों और संक्रमणता के दौर से गुजरे। शॉक थेरेपी के सर्वोपरि मान्यता थी कि मिल्कियत का सबसे प्रभावी रूप निजी स्वामित्व होगा
विश्व बैंक तथाअंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कॉस्ट द्वारा इस प्रकार के मॉडल को अपनाया गया शॉक थेरेपी में निजी स्वामित्व राज्य के संप्रदाय के निजीकरण और व्यावसायिक स्वामित्व के ढांचे को अपनाया गया इसमें पूंजीवादी पद्धति के आधार पर कृषि करना एवं मुक्त व्यापार को पूर्ण रूप से अपनाना शामिल था
मानव कष्ट: महंगाई, बेरोजगारी, और सामाजिक असमानता ने शॉक थेरेपी की सफलता पर सवाल उठाए। कई आलोचकों का कहना था कि इस प्रक्रिया ने आम लोगों को बहुत बड़ा आर्थिक कष्ट दिया अमीरों को और अमीर और गरीबों को और गरीब बना दिया।
कुछ अर्थशास्त्रियों का मानना यह था कि अगर धीरे-धीरे सुधार किए जाते, तो इससे सामाजिक सुरक्षा, वृद्धि और सुधार के बीच बेहतर संतुलन बन सकता था।

10. निम्नलिखित कथन के पक्ष या विपक्ष में एक लेख लिखें – “दूसरी दुनिया के विघटन के बाद भारत को अपनी विदेश नीति बदलनी चाहिए और रूस जैसे परंपरागत मित्र की जगह संयुक्त राज्य अमेरीका से दोस्ती करने पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए।”
उत्तर : पक्ष में तर्क:
1991 में दूसरी दुनिया (सोवियत संघ) के विघटन ने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का नक्शा ही बदल दिया। शीत युद्ध की समाप्ति के बाद अमेरिका एकमात्र महाशक्ति बनकर उभरा ऐसे समय में, भारत को अपनी पारंपरिक गुटनिरपेक्ष विदेश नीति की समीक्षा करनी चाहिए थी।
1991 के आर्थिक संकट के बाद भारत ने आर्थिक उदारीकरण की दिशा में कदम बढ़ाए। ऐसे में पश्चिमी पूंजी, तकनीक और बाजार की आवश्यकता बढ़ी।
भारत को रूस पर अपनी निर्भरता कम करनी चाहिए और संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ एक मजबूत साझेदारी बनानी चाहिए।
भारत को बहुध्रुवीय कूटनीति अपनानी चाहिए, जिसमें हर देश से संतुलित संबंध हों।
विपक्ष में तर्क:
भारत के हथियारों का बड़ा हिस्सा रूस से आता है। रक्षा, अंतरिक्ष, परमाणु ऊर्जा, और कूटनीतिक समर्थन – इन क्षेत्रों में रूस की भूमिका अब भी अपरिहार्य है। भारत को अंतरिक्ष में पहुँचाने के लिए सोविसत संघ ने तकनीकि सहायता की। रूस से दूरी बनाना भारत के दीर्घकालिक सामरिक हितों को नुकसान पहुँचा सकता है।
भारत को बहु-संबंध आधारित नीति अपनानी चाहिए। केवल अमेरिका या रूस नहीं, बल्कि यूरोपीय संघ, जापान, आसियान और अफ्रीकी देशों से भी संबंध मजबूत करने चाहिए। इससे भारत स्वतंत्र विदेश नीति बनाए रख सकता है।
भारत को बहुध्रुवीय कूटनीति अपनानी चाहिए, जिसमें हर देश से संतुलित संबंध हों।






📌 अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs) – दो ध्रुवीयता का अंत

Q1. दो ध्रुवीयता का अंत क्या है?
Ans : दो ध्रुवीयता (Bipolarity) का अंत उस समय हुआ जब शीत युद्ध समाप्त हुआ, सोवियत संघ विघटित हुआ और अमेरिका एकमात्र महाशक्ति बन गया।

Q2. दो ध्रुवीयता का वैश्विक राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ा?
Ans : (i) वैश्विक सत्ता संरचना एकध्रुवीय (Unipolar) बन गई
(ii) अमेरिका का वैश्विक नेतृत्व मजबूत हुआ
(iii) अंतर्राष्ट्रीय संगठनों और राजनीतिक नीतियों में बदलाव आया

Q3. भारत और अन्य विकासशील देशों के लिए इसका क्या महत्व है?
Ans : दो ध्रुवीयता के अंत के बाद गुटनिरपेक्ष नीति (NAM) और स्वतंत्र विदेश नीति) अपनाने वाले देशों को नई वैश्विक राजनीति के साथ सामंजस्य स्थापित करना पड़ा।

Q4. बोर्ड परीक्षा के लिए कौन-कौन से प्रश्न महत्वपूर्ण हैं?
Ans : दो ध्रुवीयता और शीत युद्ध का अंत
अमेरिका का वैश्विक नेतृत्व
वैश्विक राजनीतिक और आर्थिक बदलाव





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