कक्षा 12 राजनीति विज्ञान – अध्याय 1 : शीतयुद्ध का दौर NCERT Solutions in Hindi
शीत युद्ध का दौर (The Cold War Era) 1945 से 1991 तक विश्व राजनीति का सबसे महत्वपूर्ण अध्याय माना जाता है। इस काल में अमेरिका और सोवियत संघ दो महाशक्तियों के रूप में उभरे और पूरी दुनिया दो ध्रुवों में बँट गई। इस संघर्ष को सीधा युद्ध न होकर राजनीतिक, आर्थिक, सामरिक और वैचारिक टकराव कहा जाता है। यह प्रश्न-उत्तर Class 12 Board Exam की तैयारी करने वाले छात्रों के लिए बेहद उपयोगी हैं। Political Science Class 12 के इस अध्याय के सभी महत्वपूर्ण प्रश्न यहाँ सटीक उत्तरों के साथ दिए गए हैं।"
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शीतयुद्ध |
1. शीत युद्ध के बारे में निम्नलिखित में से कौन सा कथन गलत है?
(क) यह अमेरिका और सोवियत संघ तथा उनके संबंधित सहयोगियों के बीच प्रतिस्पर्धा थी।
(ख) यह महाशक्तियों के बीच एक वैचारिक युद्ध था।
(ग) इसने हथियारों की होड़ को जन्म दिया।
(घ) अमेरिका और यूएसएसआर प्रत्यक्ष युद्धों में लगे हुए थे।
उत्तर: (घ) अमेरिका और यूएसएसआर प्रत्यक्ष युद्धों में लगे हुए थे।
शीतयुद्ध
2. निम्नलिखित में से कौन सा कथन NAM के उद्देश्यों को नहीं दर्शाता है?
(क) नए उपनिवेश-मुक्त देशों को स्वतंत्र नीतियों का अनुसरण करने में सक्षम बनाना।
(ख) किसी भी सैन्य गठबंधन में शामिल न होना।
(ग) वैश्विक मुद्दों पर तटस्थता की नीति का पालन करना।
(घ) वैश्विक आर्थिक असमानताओं के उन्मूलन पर ध्यान केंद्रित करना।
उत्तर: (ग) वैश्विक मुद्दों पर तटस्थता की नीति का पालन करना।
3. नीचे महाशक्तियों के द्वारा बनाए सैन्य संगठनों की विशेषता बताने वाले कुछ कथन दिए गए हैं। प्रत्येक कथन के सामने सही या गलत का चिह्न लगाएं।
(क) गठबंधन के सदस्य देशों को अपने भू–क्षेत्रों में महाशक्तियों के सैन्य अड्डे के लिए स्थान देना जरूरी था।
(ख) सदस्य देशों को विचारधारा और रणनीति दोनों ही स्तरों पर महाशक्तियों का समर्थन करना था।
(ग) जब कोई राष्ट्र किसी एक सदस्य देश पर आक्रमण करता था तो इसे सभी सदस्य देशों पर आक्रमण समझा जाता था।
(घ) महाशक्तियाँ सभी सदस्य देशों को अपने परमाणु हथियार विकसित करने में मदद करती थीं।
उत्तर: (क) सही (ख) सही (ग) सही (घ) गलत
4. निम्नलिखित देशों की सूची में प्रत्येक के सामने लिखें कि वह शीतयुद्ध के दौरान किस गुट से जुड़ा था?
(क) पोलैंड (ख) फ्रांस (ग) जापान (घ) नाइजीरिया (ड.) उत्तरी कोरिया (च) श्रीलंका
उत्तर:
(क) पोलैंड (साम्यवादी गुट, सोवियत संघ)
(ख) फ्रांस (पूँजीवादी गुट, संयुक्त राज्य अमेरिका)
(ग) जापान (पूँजीवादी गुट, संयुक्त राज्य अमेरिका)
(घ) नाइजीरिया (गुट निरपेक्ष)
(ड) उत्तरी कोरिया (साम्यवादी गुट)
(च) श्रीलंका (गुट निरपेक्ष)
5. शीत युद्ध से हथियारों की होड़ और हथियारों पर नियंत्रण – ये दोनों ही प्रक्रियाएँ पैदा हुई। इन दोनों प्रक्रियाओं के क्या कारण थे?
उत्तर: शीतयुद्ध से हथियारों की होड़ एवं हथियारों पर नियंत्रण दोनों ही प्रक्रियाओं ने जन्म लिया।
शीतयुद्ध में हथियारों की होड़ का मुख्य कारण अमेरिका तथा सोवियत संघ द्वारा अपने आप को दूसरे से अधिक शक्तिशाली बनाना था क्योकि दोनों ही देश अपने सैन्य तथा परमाणु शक्ति के आधार पर विश्व पर राज करना चाहते थें। दोनों ही गुट अपने-अपने हथियारों के भंडार बढ़ाने लगे परिणामस्वरूप विश्व में हथियारों की होड़ शुरू हो गई।
हथियारों पर नियंत्रण के कारण:
हथियारों की होड़ में भारी मात्रा में संसाधनों की बर्बादी हो रही थी, जिससे अर्थव्यवस्थाओं पर बोझ बढ़ रहा था।
दोनों पक्षों को यह एहसास हुआ कि यदि इसके चलते दोनों देशों के बीच युद्ध हुआ तो यह केवल दोनों देशों के लिए ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए खतरनाक हो सकता हैं ।
6. महाशक्तियाँ छोटे देशों के साथ सैन्य गठबंधन क्यों रखती थी? तीन कारण बताइए।
उत्तर: महाशक्तियाँ छोटे देशों के साथ सैन्य गठबंधन रखती थी क्योंकि छोटा देश निम्न कारणों से महाशक्तियों (संयुक्त राज्य अमेरिका (USA) और सोवियत संघ (USSR)) के बड़े काम के थे :
- सैन्य सहायता : (a) दोनों महाशक्तियाँ महाशक्तियाँ गठबंधन के माध्यम से छोटे देशों की सुरक्षा सुनिश्चित करती थीं, तो यह उनके विरोधियों को उन पर हमला करने या अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए दबाव डाल सकता था। (b) वे छोटे देशों के भू-भाग पर अपने सैन्य अड्डे स्थापित कर सकती थीं जिससे सैन्य गतिविधियों का संचालन करते थे और एक दूसरे की जासूसी कर सके ।
- आर्थिक सहायता : महत्वपूर्ण संसाधनों जैसे तेल व ख़निज प्राप्त करने हेतु महत्वपूर्ण थे।
- भू क्षेत्र : (a) सैन्य खर्च वहन करने में मददगार होते थे। छोटे राज्य मिलकर सैन्य खर्चों का भुगतान करने में मदद कर सकते थे।
7. कभी-कभी यह कहा जाता है कि शीत युद्ध सीधे तौर पर शक्ति के लिए एक संघर्ष था और इसका विचारधारा से कोई संबंध नहीं था। क्या आप इस कथन से सहमत हैं ? अपने उत्तर के समर्थन में एक उदाहरण दें।
उत्तर : इस कथन को पूरी तरह से सही है नहीं कहा जा सकता। क्यूंकि शीत युद्ध शक्ति के संघर्ष के साथ-साथ विचारधारा का संघर्ष भी था। यद्यपि शीत युद्ध की प्रमुख विशेषता दो महाशक्तियों के बीच शक्ति की प्रतिस्पर्धा थी, लेकिन इस संघर्ष का एक गहरा विचारधारात्मक आयाम भी था। शीत युद्ध में अमेरिका और सोवियत संघ के बीच पूंजीवाद और साम्यवाद की विचारधारा को लेकर भी आपसी मतभेद थे।
शीत युद्ध केवल शक्ति के संघर्ष तक ही सीमित नहीं था, बल्कि इसमें विचारधाराओं को लेकर भीसंघर्ष था
संयुक्त राज्य अमेरिका पूंजीवाद का समर्थक था वही दूसरी और सोवियत संघ साम्यवाद का समर्थक था इन दोनों विचारधाराओं के बीच यह संघर्ष था कि कौन सा राजनीतिक और आर्थिक ढांचा विश्व के लिए श्रेष्ठ है।
8. शीत युद्ध के दौरान भारत की अमेरिका और सोवियत संघ के प्रति विदेश नीति क्या थी? क्या आप मानते हैं कि इस नीति ने भारत के हितों को आगे बढ़ाया?
उत्तर : शीत युद्ध के दौरान, भारत ने गुटनिरपेक्षता की नीति को अपनाया , जिसका अर्थ था दोनों गुटों से अपनी दुरी बनाये रखना।
गुटनिरपेक्षता- भारत की विदेश नीति की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता थी । गुटनिरपेक्षता का अर्थ किसी भी गुट में शामिल न होना और स्वतंत्र नीति का अनुसरण करना।
विश्व शांति और सुरक्षा की नीति -भारत की विदेश नीति का आधारित सिद्धांत शांति और सुरक्षा बनाए रखने के पक्ष में था । भारत ने हमेशा विश्व की शांति और सुरक्षा को अपनाया है।
औपनिवेशवाद का विरोध-आजादी के बाद भारत ने हमेशा ही उपनिवेशवाद का विरोध किया है और यह साम्राज्यवाद का कट्टर विरोधी रहा है। भारत खुद को स्वतंत्र देश बनाना चाहता था और अपने साथ-साथ नव स्वतंत्र देशों को भी दोबारा से इन गुटों मे शामिल होने से रोकना चाहता था
9. गुट-निरपेक्ष आंदोलन को तीसरी दुनिया के देशों ने तीसरे विकल्प के रूप में समझा। जब शीत युद्ध अपने शिखर पर था तब इस विकल्प ने तीसरी दुनिया के देशों के विकास में कैसे मदद पहुँचाई?
उत्तर : गुटनिरपेक्ष का शाब्दिक अर्थ हैं किसी भी गट से अपनी तटस्था या दुरी बनाये रखना I
- विश्व राजनीती में गुटनिरपेक्षता का अर्थ उस परिस्थिति से देखा जाता हैं जब कई देशों मे अमेरिका और सोवियत संघ ने एक खेमे मे जाने से खुद को रोका I इस विचारधारा को गुटनिरपेक्ष आंदोलन ककहा गया I
- गुटनिरपेक्ष आंदोलन की शुरुआत युगोस्लाविया जोसेफ ब्रॉज टीटो , भारत के प्रधान मंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू , मिस्र के गमाल अब्दुल नासिर , इंडोनेशिया के सुकर्णो तथा घाना के वामे एन्क्रूमा द्वारा की गयी I
- पहला गुटनिरपेक्ष आंदोलन सम्मेलन वर्ष 1961 में बेलग्रेड में हुआ जिसमे पच्चीस देशों नें भाग लिया
इस सम्मेलन में मुख्य तीन बातों का ध्यान दिया गया :
- इन पांचों देशों के बीच आपसी सहयोग I
- शीतयुद्ध के प्रसार को कम करना I
- अंतराष्ट्रीय स्तर पर बहुत से नव -स्वतंत्रीय अफ़्रीकी देशों का उदय हुआ I
-गुटनिरपेक्ष आंदोलन का दूसरा सम्मेलन 1964 क़ाहिरा में प्रधानमंत्री लाल बहादुरशास्त्री जी ने विश्व शांति के उदेश्य के लिए किया जिसमें 05 प्रस्ताव रखे गए :-
(i) सीमविवादों को शांतिपूर्ण एवं विवेक ढंग से सुलझाने हेतु I
(ii) अणु शस्त्रों के निर्माण एवं प्रयोग पर प्रतिबंध लगाने`हेतु I
(iii) अध्यक्ष के रूप में भारत ने पूर्ण निः शस्त्रीकरण के लिए UNO में एक प्रस्ताव पेश किया I
(iv) UNO का समर्थन करने में बल दिया आदि I
10. गुट-निरपेक्ष आंदोलन अब अप्रासंगिक हो गया है। आप इस कथन के बारे में क्या सोचते हैं? अपने उत्तर के समर्थन में तर्क प्रस्तुत करें।
उत्तर : “गुट निरपेक्ष आंदोलन अब अप्रासंगिक हो गया है” यह कथन पूरी तरह सत्य नहीं है क्योंकि गुटनिरपेक्ष आंदोलन की प्रासंगिकता आज भी देखने को मिलती हैं। यह निम्नलिखित कारणों से आज भी प्रासंगिक है :
- यह आंदोलन विकासशील देशों के बीच एकता को बढ़ावा देने और नई वैश्विक चुनौतियों का सामना करने के लिए एक मंच प्रदान करता है जो उन्हें एक-दूसरे से अलग करते हैं।
- जलवायु परिवर्तन, वैश्विक असमानता, दुनिया की आर्थिक अस्थिरता और अंतरराष्ट्रीय शांति जैसे मुद्दे, जो अब वैश्विक राजनीति में प्रमुख स्थान रखते हैं, किसी एक गुट के बजाय सभी देशों के सहयोग की मांग करते हैं।
- कई विकासशील देश अब भी सार्वभौमिकता और तटस्थता को महत्व देते हैं, ताकि वे किसी महाशक्ति के दबाव में न आ सके । ऐसे देशों के लिए गुट-निरपेक्ष आंदोलन महतवपूर्ण भूमिका अदा करता हैं।
- यह आश्वासन दिलाता हैं कि वे अपनी संप्रभुता को बनाए रखते हुए वैश्विक मामलों में स्वतंत्र व निष्पक्ष रूप से अपनी स्थिति तथा अपने विचार व्यक्त कर सकते हैं। गुटनिरपेक्षता की नीति सदस्य देशों को सुरक्षा देने के साथ ही विश्व निःशस्त्रीकरण की जरूरत पर भी बल देती है। अतः वर्तमान में ही नहीं बल्कि भविष्य में भी इसकी प्रासंगिकता बनी रहेगी।
📌 अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs) – शीत युद्ध का दौर
Q1. शीत युद्ध क्या था?
Ans : शीत युद्ध (Cold War) अमेरिका और सोवियत संघ के बीच राजनीतिक, आर्थिक और सामरिक प्रतिस्पर्धा का वह दौर था जिसमें सीधा युद्ध न होकर वैचारिक और रणनीतिक संघर्ष हुआ।
Q2. शीत युद्ध की शुरुआत कब हुई?
Ans : शीत युद्ध की शुरुआत 1945 में द्वितीय विश्व युद्ध के बाद हुई और यह 1991 में सोवियत संघ के विघटन तक चला।
Q3. गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) की भूमिका शीत युद्ध में क्या थी?
Ans : गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) ने विकासशील देशों को यह विकल्प दिया कि वे अमेरिका या सोवियत संघ में से किसी भी गुट में शामिल न होकर स्वतंत्र विदेश नीति अपनाएँ।
Q4. बोर्ड परीक्षा के लिए कौन-कौन से प्रश्न महत्वपूर्ण हैं?
Ans : शीत युद्ध की परिभाषा और विशेषताएँ
अमेरिका और सोवियत संघ की प्रतिस्पर्धा
गुटनिरपेक्ष आंदोलन की भूमिका
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