5. किस राजनीतिक दल को अपने अंदरूनी मतभेदों का समाधान किस तरह करना चाहिए ? यहाँ कुछ समाधान दिए गए हैं। प्रत्येक पर विचार कीजिए और उसके सामने उसके फ़ायदो और घाटों को लिखिए।
(क) पार्टी के अध्यक्ष द्वारा बताए गए मार्ग पर चलना।
(ख) पार्टी के भीतर बहुमत की राय पर अमल करना।
(ग) हरेक मामले पर गुप्त मतदान कराना।
(घ) पार्टी के वरिष्ठ और अनुभवी नेताओं से सलाह करना।
उत्तर:- (क) पार्टी के अध्यक्ष द्वारा बताए गए मार्ग पर चलना :-
फायदे:
(i) निर्णय जल्दी और स्पष्टता से लिया जा सकता है।
(ii) एकता बनी रहती है और पार्टी में अनुशासन बना रहता है।
घाटे:
(i) यह तरीका तानाशाही की ओर ले जा सकता है।
(ii) इससे असंतोष बढ़ सकता है।
(ख) पार्टी के भीतर बहुमत की राय पर अमल करना :-
फायदे:
(i) यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मजबूत करना।
(ii) पार्टी के भीतर विश्वास बढ़ता है।
घाटे:
(i) निर्णय लेने में समय लगना।
(i) गुटबाज़ी के चलते बहुमत का पक्षपाती होना है।
(ग) हरेक मामले पर गुप्त मतदान कराना :-
फायदे:
(i) सदस्य स्वतंत्र व निष्पक्ष रूप से अपनी राय दे सकते हैं।
(ii) यह ईमानदारी और निष्पक्षता को बढ़ावा देता है।
घाटे:
(i) अधिक समय लगना।
(ii) पार्टी की एकता को नुकसान।
(घ) पार्टी के वरिष्ठ और अनुभवी नेताओं से सलाह करना :-
फायदे:
(i) व्यवहारिक निर्णय लेने में मदद।
(ii) मूल्यों की रक्षा।
घाटे:
(i) नई पीढ़ी की आवाज़ का दबने का डर।
(ii) पुराने नेताओं की सोच हमेशा वर्तमान समय के अनुरूप नहीं होती।
6. निम्नलिखित में से किसे/किन्हें 1967 के चुनाव में कांग्रेस की हार के कारण के रूप में स्वीकार किया जा सकता है? अपने उत्तर की पुष्टि में तर्क दीजिए:
(क) कांग्रेस पार्टी में करिश्माई नेता का अभाव।
(ख) कांग्रेस पार्टी के भीतर टूट।
(ग) क्षेत्रीय, जातीय और सांप्रदायिक समूहों की लामबंदी को बढ़ाना।
(घ) गैर-कांग्रेसी दलों के बीच एकजुटता।
(ड.) कांग्रेस पार्टी के अंदर मतभेद।
उत्तर:- इन सभी कारणों ने मिलकर कांग्रेस पार्टी की 1967 के चुनाव में हार सुनिश्चित की।
(क) कांग्रेस पार्टी में करिश्माई नेता का अभाव-
तर्क: नेहरू और शास्त्री जी की मृत्यु के बाद ऐसा कोई मजबूत और लोकप्रिय नेता नहीं बचा था जो जनता को एकजुट रख सके। इंदिरा गांधी नई थीं और तब तक उनका नेतृत्व बहुत मजबूत नहीं माना जाता था।
(ख) कांग्रेस पार्टी के भीतर टूट -
तर्क: कांग्रेस पार्टी के अंदर कई नेताओं के बीच मतभेद थे। कई नेता अपनी-अपनी स्थिति मजबूत करना चाहते थे, जिससे पार्टी कमजोर हुई।
(ग) क्षेत्रीय, जातीय और सांप्रदायिक समूहों की लामबंदी को बढ़ाना -
तर्क: अब लोग अपनी जाति, धर्म और क्षेत्रीय मुद्दों को लेकर राजनीतिक रूप से जागरूक हो गए थे और उन्होंने उन दलों को समर्थन देना शुरू किया जो उनके मुद्दे उठाते थे।
(घ) गैर-कांग्रेसी दलों के बीच एकजुटता -
तर्क: कांग्रेस को हराने के लिए विपक्षी दल एक हो गए और उन्होंने "संयुक्त मोर्चा" बनाकर कई राज्यों में सरकार बना ली। इससे कांग्रेस को कई राज्यों में हार का सामना करना पड़ा।
(ड.) कांग्रेस पार्टी के अंदर मतभेद -
तर्क: पार्टी के बड़े नेताओं के बीच आपसी विचारों में टकराव था। इससे पार्टी की छवि कमजोर हुई और जनता का भरोसा कम होने लगा।
7. 1970 के दशक में इंदिरा गांधी की सरकार किन कारणों से लोकप्रिय हुई थी ?
उत्तर:- 1970 के दशक में इंदिरा गांधी की सरकार कई कारणों से बहुत लोकप्रिय हुई। ये कारण नीचे दिए गए हैं:
(i) गरीबी हटाओ नारा : इंदिरा गांधी ने "गरीबी हटाओ" का नारा दिया, इस नारे से उन्होंने वंचित तबकों खासकर भूमिहीन किसानों दलित , आदिवासियों , महिलाओं और बेरोजगार नोजवानो अपने समर्थ का आधार तैयार करने की कोशिश की, जिससे गरीब और आम लोगों को लगा कि सरकार उनके लिए काम कर रही है।
(ii) इंदिरा गाँधी ने आय और अवसरों की असमानता की समाप्ति तथा 'प्रिवी पर्स' की समाप्ति पर अपने चुनाव अभियान में जोर दिया।
(ii) 20 सूत्रीय कार्यक्रम : उन्होंने गरीबों की मदद के लिए 20 सूत्रीय कार्यक्रम शुरू किया जिसमें रोज़गार, शिक्षा, स्वास्थ्य और ज़मीन सुधार जैसी योजनाएं शामिल थीं।
(iii) भारत-पाक युद्ध और बांग्लादेश की जीत (1971): 1971 में भारत ने पाकिस्तान को हराया और बांग्लादेश एक नया देश बना। इससे इंदिरा गांधी की छवि एक मजबूत नेता के रूप में बनी।
(iv) हरित क्रांति : इंदिरा गांधी ने कृषि सुधारों और हरित क्रांति को बढ़ावा दिया, जिससे अनाज उत्पादन बढ़ा और देश में खाद्य संकट कम हुआ।
(vii) बैंकों और कंपनियों का राष्ट्रीयकरण: इंदिरा गांधी ने बड़े बैंकों और कुछ निजी कंपनियों को सरकारी नियंत्रण में ले लिया। इससे जनता को लगा कि सरकार पूंजीपतियों के बजाय आम लोगों के हित में काम कर रही है।
इंदिरा गांधी ने अपने मजबूत और निर्णायक नेतृत्व से लोगों का विश्वास जीता।
8. 1960 के दशक की कांग्रेस पार्टी के संदर्भ में 'सिंडिकेट' का क्या अर्थ है? सिंडिकेट ने कांग्रेस पार्टी में क्या भूमिका निभाई ?
उत्तर:- 1960 के दशक में कांग्रेस पार्टी के भीतर ताकतवर और प्रभावशाली नेताओं का एक समूह था जिसे ‘सिंडिकेट’ कहा जाता था। इसमें के. कामराज, मोरारजी देसाई, निजलिंगप्पा, एस. के. पाटिल और अन्य नेता शामिल थे। ये नेता नेहरू के बाद पार्टी के अंदर बहुत ताकतवर हो गए थे।
सिंडिकेट की कांग्रेस पार्टी में भूमिका:
(i) प्रधानमंत्री का चुनाव : 1966 में जब लाल बहादुर शास्त्री का निधन हुआ, तो सिंडिकेट ने इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री बनाने में मदद की। उसी ने इंदिरा गाँधी का कांग्रेस संसदीय दल के नेता में चुना जाना निश्चित किया था
(ii) पार्टी पर नियंत्रण रखना : इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री बनने के बाद भी, सिंडिकेट चाहता था कि वे उनके अनुसार फैसले लें और सरकार पर भी उनका दबाव बना रहे।
(iii) इंदिरा गाँधी बनाम सिंडिकेट : धीरे-धीरे इंदिरा गांधी और सिंडिकेट के बीच विचारों का टकराव शुरू हो गया। इंदिरा गांधी पार्टी और सरकार दोनों पर खुद का नियंत्रण चाहती थीं। इसी वजह से 1969 में कांग्रेस पार्टी दो हिस्सों में बंट गई : कांग्रेस (ओ) – सिंडिकेट वाले नेता और कांग्रेस (आर) – इंदिरा गांधी के साथ।
9. कांग्रेस पार्टी किन मसलों को लेकर 1969 में टूट की शिकार हुई?
उत्तर:- 1969 में कांग्रेस पार्टी कई मुद्दों के कारण दो हिस्सों में बँट गई। इसके मुख्य कारण निम्नलिखित थे:
(i) राष्ट्रपति चुनाव को लेकर मतभेद : जब राष्ट्रपति जाकिर हुसैन का निधन हुआ, तो नए राष्ट्रपति के चुनाव के लिए उम्मीदवार चुना जाना था इस दौरान सिंडिकेट ने नीलम संजीव रेड्डी को उम्मीदवार चुना। लेकिन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और नीलम संजीव रेड्डी के बीच काफी लम्बे समय से राजनीतिक अनबन चल रही थी इसलिए वह चाहती थीं कि वी. वी. गिरि राष्ट्रपति बनें। इंदिरा गांधी ने रेड्डी को समर्थन नहीं दिया और अंत में वी. वी. गिरि को विजयी हुए।
(ii) इंदिरा गांधी और सिंडिकेट के बीच मतभेद : सिंडिकेट और प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बीच विचारों में भारी अंतर था। इंदिरा गांधी समाजवादी नीतियों की समर्थक थीं, जबकि सिंडिकेट पारंपरिक सोच रखता था।
(iii) विचारधारा में अंतर : कांग्रेस के कुछ सदस्य का यह विचार था कि राज्यों में कांग्रेस को दक्षिणपंथी विचारधारा वाले दलों के साथ मिलकर चुनाव लड़ना चाहिए जबकि अन्य का मत था कि कांग्रेस को वामपंथी विचारधारा वाले दलों के सतह चुनाव लड़ना चाहिए
(iv) इंदिरा गांधी गरीबों के लिए नीतियाँ बनाना चाहती थीं, जैसे – बैंकों का राष्ट्रीयकरण और रियासतों के प्रिवी पर्स को खत्म करना। सिंडिकेट के नेता इन कदमों का विरोध कर रहे थे।
(v) इंदिरा गाँधी द्वारा मोरारजी देसाई से वित्तीय विभाग वापस लेने की मांग जिसके चलते देसाई ने मंत्रिमंडल से त्याग पत्र दे दिया।
(vi) जब इंदिरा गांधी ने पार्टी निर्देश के खिलाफ राष्ट्रपति चुनाव में वी. वी. गिरि का समर्थन किया, तो कांग्रेस कार्यसमिति ने उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की। जवाब में, इंदिरा गांधी ने खुद नई पार्टी बना ली – 'कांग्रेस (आर)' जबकि पुराने नेता 'कांग्रेस (ओ)' के साथ रहे।
10. निम्नलिखित अनुच्छेद को पढ़ें और इसके आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दें :
इंदिरा गांधी ने कांग्रेस को अत्यंत केंद्रीकृत और अलोकतांत्रिक पार्टी संगठन में तब्दील कर दिया, जबकि नेहरू के नेतृत्व में कांग्रेस शुरुआती दशको में एक संघीय, लोकतांत्रिक और विचारधाराओं के समाहार का मंच थी। नयी और लोकलुभावन राजनीति ने राजनीतिक विचारधारा को महज चुनावी विमर्श में बदल दिया। कई नारे उछाले गए, लेकिन इसका मतलब यह नहीं था कि उसी के अनुकूल सरकार की नीतियां भी बनानी थी -1970 के दशक के शुरुआती सालों में अपनी बड़ी चुनावी जीत के जश्न के बीच कांग्रेस एक राजनीतिक संगठन के तौर पर मर गई।
------ सुदीप्त कविराज
(क) लेखक के अनुसार नेहरू और इंदिरा गांधी द्वारा अपनाई गई रणनीतियों में क्या अंतर था?
(ख) लेखक ने क्यों कहा है कि सत्तर के दशक में कांग्रेस 'मर गई'?
(ग) कांग्रेस पार्टी में आए बदलावों का असर दूसरी पार्टियों पर किस तरह पड़ा?
उत्तर:- (क) लेखक के अनुसार, नेहरू के समय में कांग्रेस एक लोकतांत्रिक और संघीय पार्टी थी, जहाँ अलग-अलग विचारों को जगह मिलती थी। लेकिन इंदिरा गांधी ने कांग्रेस को अलोकतांत्रिक बना दिया, यानी सारे फैसले एक ही व्यक्ति (इंदिरा गांधी) के हाथ में आ गए और पार्टी में लोकतंत्र खत्म हो गया।
(ख) लेखक ने क्यों कहा है कि सत्तर के दशक में कांग्रेस 'मर गई'?
1970 के दशक में कांग्रेस ने चुनावों में बड़ी जीत तो हासिल की, लेकिन अब उसमें विचारधारा, आंतरिक लोकतंत्र और संगठन की आत्मा नहीं बची थी। सिर्फ नारे दिए जाते थे, लेकिन उन पर आधारित नीतियाँ नहीं बनती थीं।
(ग) जब कांग्रेस में लोकतंत्र और संगठन कमजोर पड़ा, तो दूसरी पार्टियों ने भी लोकलुभावन राजनीति और नेतृत्व केंद्रित प्रणाली अपनानी शुरू कर दी।
इससे राजनीतिक विचारधारा कमजोर हो गई और सिर्फ चुनाव जीतना ही पार्टियों का मुख्य लक्ष्य बन गया।
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