राज्य पुनर्गठन आयोग (States Reorganisation Commission 1953): उद्देश्य, सिफारिशें और प्रभाव | Class 12 Political Science Notes
"राज्य पुनर्गठन आयोग (States Reorganisation Commission) की स्थापना 1953 में की गई थी, जिसका मुख्य उद्देश्य भारत में राज्यों का पुनर्गठन भाषाई आधार पर करना था। इस लेख में हमने आयोग की पृष्ठभूमि, उद्देश्य, प्रमुख सिफारिशें और भारतीय राजनीति पर इसके प्रभाव को विस्तार से समझाया है। यह टॉपिक Class 12 Political Science, NCERT Solutions और बोर्ड परीक्षा के दृष्टिकोण से बेहद महत्वपूर्ण है। साथ ही महत्वपूर्ण प्रश्न भी यहाँ दिए गए हैं।"
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राज्य पुनर्गठन आयोग |
पृष्ठभूमि :
आयोग का गठन (कब, किसने और क्यों)
- किसने बनाया: केंद्र सरकार ने आयोग बनाया।
- गठन की तिथि: आयोग की घोषणा दिसंबर 1953 में हुई (प्रधानमंत्री के बयान के बाद)।
- अध्यक्ष और सदस्य: अध्यक्ष — न्यायमूर्ति S. Fazl Ali; अन्य सदस्य — K. M. Panikkar और H. N. Kunzru। आयोग ने अपनी रिपोर्ट 30 सितम्बर 1955 को प्रस्तुत की।
राज्य का आयोग का इतिहास :
आयोग का काम और विधि
लक्ष्य (Task): राज्यों की सीमाओं का पुनः निर्धारण करना — खासकर भाषाई माँगों को ध्यान में रखते हुए — परन्तु राष्ट्रीय एकता, प्रशासनिक सुगमता, आर्थिक जीवन-क्षमता आदि को भी ध्यान में रखकर।
कैसे काम किया:
- आयोग ने पूरे देश के हिस्सों का दौरा किया।
- जनता, राजनैतिक दलों, संस्थाओं और राज्यों से लिखित और मौखिक प्रतिवेदन लिया।
- ऐतिहासिक, भाषायी, आर्थिक और प्रशासनिक पहलुओं का अध्ययन किया।
- अलग-अलग विकल्पों की तुलना कर निर्णय सुझाए।
आयोग की प्रमुख सिफारिशें :
SRC ने बहुत सी सिफारिशें दीं; नीचे मुख्य बिंदुओं को सरल भाषा में समझाया गया है:
1. भाषा एक महत्वपूर्ण मानदंड है -पर अकेला आधार नहीं
आयोग ने माना कि भाषा को राज्यों के पुनर्गठन में एक “मुख्य” परंतु इकलौता आधार नहीं माना जाना चाहिए। यानी भाषा महत्वपूर्ण है, लेकिन सिर्फ भाषा पर “एक भाषा = एक राज्य” नहीं हो सकता। इस वजह से आयोग ने संतुलित दृष्टिकोण अपनाने का सुझाव दिया।उदाहरण: कुछ जगहों पर भाषा समान होने के बावजूद आर्थिक/प्रशासनिक कारणों से अलग व्यवस्था ज़रूरी मानी गई।
2. राष्ट्रीय एकता व सुरक्षा को प्राथमिकता
आयोग ने स्पष्ट कहा कि किसी भी पुनर्गठन का निर्णय राष्ट्रीय एकता, सुरक्षा और व्यापक राष्ट्रीय हितों के अनुरूप होना चाहिए। अगर किसी प्रस्ताव से राष्ट्रीय एकता पर असर पड़े तो उसे स्वीकार नहीं किया जाएगा।
3. प्रशासनिक सुविधा और आर्थिक उपयुक्तता
राज्य को इस तरीके से बनाना चाहिए कि उसका प्रशासन सुचारू चले। छोटे-छोटे, असंगठित राज्यों की बजाय प्रशासनिक रूप से सक्षम और आर्थिक रूप से टिकाऊ इकाइयाँ बनायीं जाएँ। इससे सेवा वितरण और विकास में सुविधा होगी।
4. सीमाओं में समरसता (contiguity) और प्रवाह-प्रबंधन
नए राज्य बनाते समय भौगोलिक निरंतरता, सड़क/रेल कनेक्टिविटी और सामाजिक-आर्थिक ताने-बाने का ध्यान रखा जाना चाहिए। बिखरे हुए टुकड़ों से बने राज्य मुश्किल में पड़ते हैं।
5. राजप्रमुख और रियासत समझौते हटाने का सुझाव
पुराने रियासत-समझौतों के विशेष प्रावधानों (जिनमें राजप्रमुख का पद था) को खत्म कर एक सामान्य संरचना के तहत राज्य व्यवस्थित करने का सुझाव दिया गया।
SRC की रिपोर्ट के कुछ विशेष सुझाव
- भाषाई ढांचा अपनाना पर सीमित रूप से: अनुसंधान के बाद आयोग ने कहा कि जहाँ भाषा का स्पष्ट बहुमत है, वहाँ भाषाई आधारित पुनर्गठन उपयुक्त है; परन्तु हर मामले में नहीं।
- छोटे राज्यों को जोड़ना: अत्यंत छोटे और असंगठित प्रदेशों को अगले नज़दीकी बड़े राज्य में जोड़ने की सलाह दी गई।
- राज्य-सीमाओं का पुनर्विचार: कुछ राज्यों (जैसे बॉम्बे, मद्रास, हैदराबाद आदि) के सीमांकन पर व्यापक बदलाव सुझाए गए।
- केंद्र शासित प्रदेशों (Union Territories) की व्यवस्था: कुछ छोटे/विशेष क्षेत्रों को संघ-क्षेत्र बनाए जाने को उपयुक्त बताया गया।
1956 का राज्य पुनर्गठन अधिनियम (States Reorganisation Act, 1956) - क्या और कब लागू हुआ?
- अधिनियम पारित हुआ: 31 अगस्त 1956 (Parliament में)।
- लागू तारीख (appointed day): 1 नवम्बर 1956 — इसी दिन कई राज्य/केंद्र शासित प्रदेशों की नई सीमाएं लागू हुईं। अधिनियम ने देश को नए ढाँचे में बांटा और 14 राज्यों व 6 केंद्रशासित प्रदेशों का निर्माण हुआ।
आलोचनाएँ और सीमाएँ :
- 'एक भाषा — एक राज्य' सिद्धांत को न मानना: कुछ द्वारा कहा गया कि आयोग ने भाषाई भावनाओं की पूरी स्वीकार्यता नहीं की।
- योजना के कुछ हिस्से लागू नहीं हुए: आयोग ने कुछ जगह जैसे विदर्भ के लिए अलग राज्य का सुझाव दिया था; पर ये लागू नहीं हुआ — इससे क्षेत्रीय असंतोष बना।
- स्थानीय मांगों की जटिलता: कई बार सामाजिक-आर्थिक असमानताओं और जातीय-भाषाई मिश्रण के कारण सरल समाधान संभव नहीं थे।
आयोग के बाद के प्रमुख राजनैतिक व प्रशासनिक बदलाव :
- 1966: पंजाब का पुनर्गठन (Haryana अलग हुआ)।
- 1971: उत्तर-पूर्व के राज्यों का पुनर्गठन (North-Eastern Areas Reorganisation Act)।
- 2000: तीन नए राज्य — झारखंड, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड बने।
- 2014: तेलंगाना राज्य का निर्माण।
- ये बदलाव दर्शाते हैं कि राज्य-निर्माण एक सतत प्रक्रिया है और जरूरतों के अनुसार समय-समय पर बदलाव होते रहे।
भारतीय राजनीति पर आयोग का प्रभाव :
निष्कर्ष :
(अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)
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