राज्य पुनर्गठन आयोग | Class 12 Political Science Notes in Hindi (NCERT आधारित)

राज्य पुनर्गठन आयोग (States Reorganisation Commission 1953): उद्देश्य, सिफारिशें और प्रभाव | Class 12 Political Science Notes 

"राज्य पुनर्गठन आयोग (States Reorganisation Commission) की स्थापना 1953 में की गई थी, जिसका मुख्य उद्देश्य भारत में राज्यों का पुनर्गठन भाषाई आधार पर करना था। इस लेख में हमने आयोग की पृष्ठभूमि, उद्देश्य, प्रमुख सिफारिशें और भारतीय राजनीति पर इसके प्रभाव को विस्तार से समझाया है। यह टॉपिक Class 12 Political Science, NCERT Solutions और बोर्ड परीक्षा के दृष्टिकोण से बेहद महत्वपूर्ण है। साथ ही महत्वपूर्ण प्रश्न भी यहाँ दिए गए हैं।"

राज्य पुनर्गठन आयोग (States Reorganisation Commission 1953): उद्देश्य, सिफारिशें और प्रभाव | Class 12 Political Science Notes
राज्य पुनर्गठन आयोग

पृष्ठभूमि :

1947 में जब भारत स्वतंत्र हुआ, तब देश में कई तरह के प्रांत और रियासतें थीं।
इनकी सीमाएँ ब्रिटिश शासन और राजाओं की व्यवस्था के अनुसार बनी थीं, न कि जनता की भाषा और संस्कृति के आधार पर। आज़ादी के बाद यह सवाल उठा कि राज्यों की सीमाएँ भाषा और संस्कृति को ध्यान में रखकर बनाई जानी चाहिए या नहीं। क्यूंकि लोगों का मानना था कि अगर राज्य उनकी भाषा के आधार पर बने तो शासन करना आसान होगा। और जनता भी चाहती थी कि उनकी संस्कृति, भाषा और परंपराओं को मान्यता मिले।

आयोग का गठन (कब, किसने और क्यों)

  • किसने बनाया: केंद्र सरकार ने आयोग बनाया।
  • गठन की तिथि: आयोग की घोषणा दिसंबर 1953 में हुई (प्रधानमंत्री के बयान के बाद)।
  • अध्यक्ष और सदस्य: अध्यक्ष — न्यायमूर्ति S. Fazl Ali; अन्य सदस्य — K. M. Panikkar और H. N. Kunzru। आयोग ने अपनी रिपोर्ट 30 सितम्बर 1955 को प्रस्तुत की।

राज्य का आयोग का इतिहास :

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत को एक बड़ी जटिल चुनौती का सामना करना पड़ा वह थी कि राज्यों का गठबंधन भाषाई या जनसंख्या के आधार पर किया जाए। 
सन 1920 में कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन के बाद से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने माना कि राज्यों का पुनर्गठन भाषा के आधार पर ही होगा। आजादी के बंटवारे के बाद स्थितियां कुछ बदली कुछ नेताओं ने चिंता की कि राज्यों को भाषा के आधार पर बांटा जायेगा तो और अव्यवस्था फैल सकती है और देश के टूटने का खतरा हो सकता है लेकिन केंद्र सरकार के इस फैसले को स्थानीय नेताओं और लोगों ने चुनौती दी और पुराने मद्रास के प्रांत के तेलुगु भाषी क्षेत्र में विरोध भड़क उठा पुराने मद्रास में तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश शामिल थे आंध्र प्रदेश के लोगों की मांग थी कि तेलुगु भाषा को अलग करके आंध्र प्रदेश अलग बनाया जाए और इसी संदर्भ में कांग्रेस के नेता और द्विगुज नेता पोट्टि श्रीरामलु ने अनिश्चितकाल तक भूख हड़ताल करने की घोषणा की। 56 दिनों तकभूख हड़ताल करने के बाद पोट्टि श्रीरामलु का निधन हो गया और हर जगह आंदोलन और हिंसक घटनाएं होने लगी इससे काफी बड़ी अव्यवस्था समाज में फैल गई। पुलिस फायरिंग के दौरान कई लोग मारे गए और कई लोग घायल हो गए मद्रास में विरोध जताते हुए कई नेताओं ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। आखिरकार1952 के दिसंबर में प्रधानमंत्री ने आंध्र प्रदेश के नाम से एक अलग राज्य बनाने की घोषणा की और इस प्रकार 1953 में एक अलग राज्य आंध्र प्रदेश बना इस प्रकार राज्यों का पुनर्गठन भाषा यह आधार पर किया गया।

आयोग का काम और विधि

लक्ष्य (Task): राज्यों की सीमाओं का पुनः निर्धारण करना — खासकर भाषाई माँगों को ध्यान में रखते हुए — परन्तु राष्ट्रीय एकता, प्रशासनिक सुगमता, आर्थिक जीवन-क्षमता आदि को भी ध्यान में रखकर।

कैसे काम किया:

  1. आयोग ने पूरे देश के हिस्सों का दौरा किया।
  2. जनता, राजनैतिक दलों, संस्थाओं और राज्यों से लिखित और मौखिक प्रतिवेदन लिया।
  3. ऐतिहासिक, भाषायी, आर्थिक और प्रशासनिक पहलुओं का अध्ययन किया।
  4. अलग-अलग विकल्पों की तुलना कर निर्णय सुझाए।


आयोग की प्रमुख सिफारिशें :

SRC ने बहुत सी सिफारिशें दीं; नीचे मुख्य बिंदुओं को सरल भाषा में समझाया गया है:

1. भाषा एक महत्वपूर्ण मानदंड है -पर अकेला आधार नहीं

आयोग ने माना कि भाषा को राज्यों के पुनर्गठन में एक “मुख्य” परंतु इकलौता आधार नहीं माना जाना चाहिए। यानी भाषा महत्वपूर्ण है, लेकिन सिर्फ भाषा पर “एक भाषा = एक राज्य” नहीं हो सकता। इस वजह से आयोग ने संतुलित दृष्टिकोण अपनाने का सुझाव दिया।

    उदाहरण: कुछ जगहों पर भाषा समान होने के बावजूद आर्थिक/प्रशासनिक कारणों से अलग व्यवस्था ज़रूरी मानी गई।

    2. राष्ट्रीय एकता व सुरक्षा को प्राथमिकता

    आयोग ने स्पष्ट कहा कि किसी भी पुनर्गठन का निर्णय राष्ट्रीय एकता, सुरक्षा और व्यापक राष्ट्रीय हितों के अनुरूप होना चाहिए। अगर किसी प्रस्ताव से राष्ट्रीय एकता पर असर पड़े तो उसे स्वीकार नहीं किया जाएगा। 

    3. प्रशासनिक सुविधा और आर्थिक उपयुक्तता

    राज्य को इस तरीके से बनाना चाहिए कि उसका प्रशासन सुचारू चले। छोटे-छोटे, असंगठित राज्यों की बजाय प्रशासनिक रूप से सक्षम और आर्थिक रूप से टिकाऊ इकाइयाँ बनायीं जाएँ। इससे सेवा वितरण और विकास में सुविधा होगी।

    4. सीमाओं में समरसता (contiguity) और प्रवाह-प्रबंधन

    नए राज्य बनाते समय भौगोलिक निरंतरता, सड़क/रेल कनेक्टिविटी और सामाजिक-आर्थिक ताने-बाने का ध्यान रखा जाना चाहिए। बिखरे हुए टुकड़ों से बने राज्य मुश्किल में पड़ते हैं। 

    5. राजप्रमुख और रियासत समझौते हटाने का सुझाव

    पुराने रियासत-समझौतों के विशेष प्रावधानों (जिनमें राजप्रमुख का पद था) को खत्म कर एक सामान्य संरचना के तहत राज्य व्यवस्थित करने का सुझाव दिया गया।


    SRC की रिपोर्ट के कुछ विशेष सुझाव 

    1. भाषाई ढांचा अपनाना पर सीमित रूप से: अनुसंधान के बाद आयोग ने कहा कि जहाँ भाषा का स्पष्ट बहुमत है, वहाँ भाषाई आधारित पुनर्गठन उपयुक्त है; परन्तु हर मामले में नहीं।
    2. छोटे राज्यों को जोड़ना: अत्यंत छोटे और असंगठित प्रदेशों को अगले नज़दीकी बड़े राज्य में जोड़ने की सलाह दी गई।
    3. राज्य-सीमाओं का पुनर्विचार: कुछ राज्यों (जैसे बॉम्बे, मद्रास, हैदराबाद आदि) के सीमांकन पर व्यापक बदलाव सुझाए गए।
    4. केंद्र शासित प्रदेशों (Union Territories) की व्यवस्था: कुछ छोटे/विशेष क्षेत्रों को संघ-क्षेत्र बनाए जाने को उपयुक्त बताया गया। 

    1956 का राज्य पुनर्गठन अधिनियम (States Reorganisation Act, 1956) - क्या और कब लागू हुआ?

    1. अधिनियम पारित हुआ: 31 अगस्त 1956 (Parliament में)।
    2. लागू तारीख (appointed day): 1 नवम्बर 1956 — इसी दिन कई राज्य/केंद्र शासित प्रदेशों की नई सीमाएं लागू हुईं। अधिनियम ने देश को नए ढाँचे में बांटा और 14 राज्यों व 6 केंद्रशासित प्रदेशों का निर्माण हुआ। 
    (States Reorganisation Act ने भारतीय संविधान के संबंधी प्रावधानों (Seventh Amendment 1956) के साथ मिलकर राज्य-व्यवस्था में बड़ा बदलाव किया।)

    आलोचनाएँ और सीमाएँ :

    1. 'एक भाषा — एक राज्य' सिद्धांत को न मानना: कुछ द्वारा कहा गया कि आयोग ने भाषाई भावनाओं की पूरी स्वीकार्यता नहीं की।
    2. योजना के कुछ हिस्से लागू नहीं हुए: आयोग ने कुछ जगह जैसे विदर्भ के लिए अलग राज्य का सुझाव दिया था; पर ये लागू नहीं हुआ — इससे क्षेत्रीय असंतोष बना।
    3. स्थानीय मांगों की जटिलता: कई बार सामाजिक-आर्थिक असमानताओं और जातीय-भाषाई मिश्रण के कारण सरल समाधान संभव नहीं थे।


    आयोग के बाद के प्रमुख राजनैतिक व प्रशासनिक बदलाव :

    1. 1966: पंजाब का पुनर्गठन (Haryana अलग हुआ)।
    2. 1971: उत्तर-पूर्व के राज्यों का पुनर्गठन (North-Eastern Areas Reorganisation Act)।
    3. 2000: तीन नए राज्य — झारखंड, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड बने।
    4. 2014: तेलंगाना राज्य का निर्माण।
    5. ये बदलाव दर्शाते हैं कि राज्य-निर्माण एक सतत प्रक्रिया है और जरूरतों के अनुसार समय-समय पर बदलाव होते रहे।

    भारतीय राजनीति पर आयोग का प्रभाव : 

    (i) आयोग की सिफारिशों के आधार पर राज्यों का पुनर्गठन अधिनियम, 1956 पारित हुआ।
    (ii) भारत में 14 राज्य और 6 केंद्र शासित प्रदेश बने।
    (iii) हिंदी के अतिरिक्त अन्य भाषाओं के विकास पर जोर दिया गया।
    (iv) भाषाई अल्पसंख्यको की रक्षा के लिए विशेष प्रबंध किया।
    (v) इसने भारत को एक मजबूत प्रशासनिक ढाँचा दिया। 
    (vi) लोकतंत्र को स्थिर बनाया।


    निष्कर्ष :

    राज्य पुनर्गठन आयोग ने यह साबित किया कि भारत अपनी भाषाई विविधता को स्वीकार कर सकता है और फिर भी एकजुट रह सकता है। यह आयोग भारतीय लोकतंत्र की बड़ी उपलब्धि थी। इसके कारण आज भारत में राज्य व्यवस्था जनता की भाषा और संस्कृति के अनुरूप है।





    "राज्य पुनर्गठन आयोग से जुड़े महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर"
    (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)

    प्रश्न 1. राज्य पुनर्गठन आयोग क्या था और कब बना?
    उत्तर: राज्य पुनर्गठन आयोग (State Reorganisation Commission) भारत सरकार ने 1953 में गठित किया था। इसका उद्देश्य देश में भाषाई आधार पर राज्यों की सीमाओं का पुनर्गठन करना था। यह आयोग 1955 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।

    प्रश्न 2. राज्य पुनर्गठन आयोग के अध्यक्ष और सदस्य कौन थे?
    उत्तर: अध्यक्ष – फ़ज़ल अली (न्यायमूर्ति)
    सदस्य – के.एम. पनिक्कर और एच.एन. कुंज्रू

    प्रश्न 3. राज्य पुनर्गठन आयोग के गठन की आवश्यकता क्यों महसूस हुई?
    उत्तर: स्वतंत्रता के बाद भारत के राज्यों की सीमाएँ ऐतिहासिक और प्रशासनिक आधार पर तय थीं।
    भाषाई आधार पर राज्यों की माँग ज़ोर पकड़ रही थी (जैसे तेलुगु भाषी लोग अलग आंध्र प्रदेश चाहते थे)।
    एकता और प्रशासनिक सुविधा के लिए राज्यों की सीमाओं को नए सिरे से तय करना जरूरी हो गया था।

    प्रश्न 4. राज्य पुनर्गठन आयोग की मुख्य सिफ़ारिशें क्या थीं?
    उत्तर: राज्य पुनर्गठन आयोग की मुख्य सिफ़ारिशें :
    (i) भारत को 14 राज्यों और 6 केंद्र शासित प्रदेशों में बाँटा जाए।
    (ii) राज्यों का गठन मुख्यतः भाषाई आधार पर किया जाए।
    (iii) अल्पसंख्यकों और छोटे भाषाई समूहों की पहचान और अधिकार सुरक्षित रखे जाएँ।
    (iv) केंद्र को इतना मज़बूत रखा जाए कि वह राष्ट्रीय एकता को बनाए रख सके।

    प्रश्न 5. राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफ़ारिशों से भारत में क्या बदलाव हुए?
    उत्तर: (i) आयोग की रिपोर्ट के आधार पर States Reorganisation Act 1956 पारित हुआ।
    (ii) भारत का नक्शा बदल गया और राज्यों को भाषाई आधार पर पुनर्गठित किया गया।
    (iii) इससे भारत में प्रशासनिक सुविधा और जनता की भाषाई पहचान दोनों को सम्मान मिला।
    (iv) यह आधुनिक भारत के संघीय ढाँचे को मज़बूत करने वाला कदम साबित हुआ।

    प्रश्न 6. राज्य पुनर्गठन आयोग का महत्व क्या था?
    उत्तर: (i) इस आयोग ने भारतीय संघ को स्थिर और संतुलित बनाने में मदद की।
    (ii) भाषाई आधार पर राज्यों का गठन करके जनता की आकांक्षाओं को मान्यता दी गई।
    (iii) इसने भारत की लोकतांत्रिक भावना और संघीय व्यवस्था को मज़बूती दी।
    (iv) आयोग की वजह से भारत का राजनीतिक नक्शा स्पष्ट और संगठित हो गया।




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