SAARC | Class 12 Political Science Notes

 SAARC – दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन | Class 12 Political Science Notes in Hindi

दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC / सार्क) एक बहुत महत्वपूर्ण बहुराष्ट्रीय संगठन है, जो दक्षिण एशिया में सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक सहयोग को बढ़ावा देने का मंच है। इस लेख में हम कक्षा 12 राजनीति शास्त्र की दृष्टि से SAARC के उत्पत्ति, सदस्य देश, संगठनात्मक ढाँचा, उद्देश्य एवं सिद्धांत, कार्य क्षेत्र, उपलब्धियाँ, चुनौतियाँ, एवं भारत और अन्य सदस्य देशों के लिए इसकी भूमिका पर गहराई से चर्चा करेंगे। इसके साथ ही NCERT पाठ्यक्रम के अनुसार प्रश्नोत्तर और विश्लेषण भी उपलब्ध कराए गए हैं, ताकि विद्यार्थी इसे पढ़कर परीक्षा तैयारी में लाभ ले सकें।


SAARC क्या है?

SAARC का पूरा नाम है – South Asian Association for Regional Cooperation
हिंदी में — दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन।

  • यह संगठन दक्षिण एशिया के देशों के बीच आपसी सहयोग और विकास के लिए बनाया गया था।
  • इसकी स्थापना 8 दिसंबर 1985 को ढाका (बांग्लादेश) में हुई थी।
  • मुख्यालय (Headquarters) – काठमांडू, नेपाल में है।
  • महासचिव (Secretary General) की नियुक्ति हर तीन साल में एक नए देश से की जाती है।


SAARC के सदस्य देश 

SAARC में 8 सदस्य देश शामिल हैं:
(i) भारत (India)
(ii) पाकिस्तान (Pakistan)
(iii) बांग्लादेश (Bangladesh)
(iv) नेपाल (Nepal)
(v) भूटान (Bhutan)
(vi) श्रीलंका (Sri Lanka)
(vii) मालदीव (Maldives)
(viii) अफगानिस्तान (Afghanistan) – 2007 में शामिल हुआ।
इसके अलावा पर्यवेक्षक देश (Observer Countries) भी हैं जैसे – चीन, जापान, ईरान, अमेरिका और यूरोपीय संघ।



SAARC के उद्देश्य एवं सिद्धांत

SAARC के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं:
(i) दक्षिण एशिया के लोगों की जीवन-स्तर में सुधार करना।
(ii) सदस्य देशों के बीच शांति और सहयोग बढ़ाना।
(iii) आर्थिक विकास, सामाजिक प्रगति और सांस्कृतिक एकता को मजबूत करना।
(iv) गरीबी हटाना और शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में मिलकर काम करना।
(v) विज्ञान, तकनीक, कृषि, ऊर्जा और पर्यावरण संरक्षण में साथ मिलकर प्रगति करना।
(vi) अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सदस्य देशों की साझा आवाज़ बनाना।

SAARC के सिद्धांत निम्नलिखित हैं:
(i) सभी देश बराबर हैं – हर देश को समान अधिकार।
(ii) एक-दूसरे की सीमाओं और स्वतंत्रता का सम्मान।
(iii) किसी देश के आंतरिक मामलों में दखल नहीं।
(iv) सभी निर्णय सर्वसम्मति से लिए जाते हैं।
(v) सहयोग स्वैच्छिक (voluntary) होता है।
(vi) पारस्परिक लाभ (mutual benefit) पर ध्यान दिया जाता है।


SAARC की संरचना (Structure of SAARC)

SAARC के कुछ प्रमुख अंग (Parts) हैं:

(1) शिखर सम्मेलन :
        (i) यह SAARC का सबसे ऊँचा स्तर का मंच है।
        (ii) इसमें सभी देशों के राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री मिलते हैं।
        (iii) आमतौर पर हर दो साल में एक बार होता है।

(2) विदेश मंत्रियों की परिषद (Council of Ministers) :
        (i) सदस्य देशों के विदेश मंत्री इसमें भाग लेते हैं।
        (ii) यह SAARC की नीतियाँ और योजनाएँ तय करती है।

(3) स्थायी समिति (Standing Committee) :
        (i) इसमें विदेश सचिव शामिल होते हैं।
        (ii) ये SAARC के कामों की निगरानी करते हैं।

(4) सचिवालय (Secretariat) :
        (i) यह काठमांडू, नेपाल में है।
        (ii) यही संगठन का मुख्य कार्यालय है जो योजनाओं और बैठकों को संभालता है।

(5) विशेष संस्थान (Special Bodies) :
        (i) SAARC Development Fund (SDF) – विकास परियोजनाओं के लिए।
        (ii) South Asian University (SAU) – उच्च शिक्षा के लिए (दिल्ली में स्थित)।
        (iii) SARSO – क्षेत्रीय मानक तय करने के लिए।
        (iv) SAARC Arbitration Council – विवाद निपटाने के लिए।


SAARC के कार्य क्षेत्र 

1. आर्थिक सहयोग (Economic Cooperation)
(i) SAFTA – मुक्त व्यापार समझौता 
(ii) SAPTA – प्राथमिक व्यापार समझौता
(iii) SATIS – सेवाओं में व्यापार को आसान बनाना

2. शिक्षा और स्वास्थ्य (Education & Health)
(i) छात्र विनिमय कार्यक्रम, छात्रवृत्ति और शोध परियोजनाएँ।
(ii) स्वास्थ्य सेवाओं और महामारी से निपटने में सहयोग।

3. कृषि और ग्रामीण विकास
(i) कृषि में नई तकनीक साझा करना।
(ii) ग्रामीण इलाकों में जीवन स्तर सुधारने की योजनाएँ।

4. पर्यावरण और आपदा प्रबंधन
(i) भूकंप, बाढ़ जैसी आपदाओं में मिलकर राहत कार्य।
(ii) जलवायु परिवर्तन और जल संरक्षण पर काम।

5. ऊर्जा और परिवहन
(i) सौर, पवन और जल ऊर्जा के प्रोजेक्ट।
(ii) सड़क, रेल और हवाई संपर्क बढ़ाना।

6. सांस्कृतिक सहयोग
(i) खेल, कला, संगीत और संस्कृति के कार्यक्रम।
(ii) सदस्य देशों के लोगों को जोड़ना।

7. सुरक्षा सहयोग
(i) आतंकवाद, मादक पदार्थ तस्करी और अपराध से मिलकर निपटना।


SAARC की उपलब्धियाँ (Achievements of SAARC)

(i) SAFTA Agreement के ज़रिए व्यापार में शुल्क कम किए गए।
(ii) South Asian University (SAU) की स्थापना हुई।
(iii) SAARC Development Fund (SDF) के ज़रिए सामाजिक परियोजनाओं को सहायता।
(iv) आपदा प्रबंधन और स्वास्थ्य पर कई साझा कार्यक्रम।
(v) SARSO की स्थापना मानकों को समान बनाने के लिए।
(vi) सदस्य देशों के बीच शिक्षा और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आदान-प्रदान।


SAARC की चुनौतियाँ (Challenges)

(i) भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव – राजनीतिक मतभेदों के कारण कई बैठकें रद्द हुईं।
(ii) निर्णय सर्वसम्मति से होते हैं, इसलिए निर्णय लेने में समय लगता है।
(iii) आर्थिक असमानता – कुछ देश बहुत गरीब हैं, जिससे बराबरी से भागीदारी मुश्किल।
(iv) वित्तीय संसाधनों की कमी – परियोजनाओं के लिए पर्याप्त धन नहीं।
(v) बाहरी देशों का प्रभाव – चीन और अमेरिका जैसे देशों की भूमिका SAARC को प्रभावित करती है।
(vi) कार्यान्वयन की कमजोरी – योजनाएँ बनती हैं पर पूरी तरह लागू नहीं होतीं।

भारत और सार्क 

भारत के लिए SAARC का महत्व 

1. पड़ोसी देशों से बेहतर संबंध : SAARC भारत को अपने पड़ोसी देशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध मजबूत करने का अवसर देता है।

2. क्षेत्रीय नेतृत्व की पहचान  : SAARC मंच के माध्यम से भारत दक्षिण एशिया में नेतृत्वकारी भूमिका निभाता है।

3. व्यापार और निवेश के अवसर  : SAARC देशों के साथ भारत को व्यापार, निवेश और बाज़ार विस्तार के अवसर मिलते हैं।

4. सांस्कृतिक एकता और पहचान : भारत की संस्कृति, योग, सिनेमा, और शिक्षा दक्षिण एशिया में साझा पहचान बनाते हैं।

5. शांति और सुरक्षा का लाभ : SAARC में सहयोग से आतंकवाद, तस्करी और सीमा विवाद जैसे मुद्दों पर सामूहिक कार्रवाई संभव होती है।


SAARC में भारत की भूमिका

भारत, SAARC का सबसे बड़ा और सबसे प्रभावशाली सदस्य देश है।
यह न केवल क्षेत्रफल और जनसंख्या के हिसाब से बड़ा है, बल्कि आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी दक्षिण एशिया का मुख्य नेतृत्वकारी देश है।

SAARC की सफलता या असफलता में भारत की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है, क्योंकि भारत दक्षिण एशिया के केंद्र में स्थित है और लगभग सभी SAARC देशों की सीमाएँ भारत से जुड़ी हैं।

सार्क में भारत की मुख्य भूमिकाएं :
1. सहयोग और नेतृत्व :
    (i) भारत ने SAARC की स्थापना में मुख्य भूमिका निभाई।
    (ii) शुरुआत में जब बांग्लादेश ने SAARC का विचार दिया, तब भारत ने उसे समर्थन देकर इस संगठन को आकार दिया।
    (iii) भारत ने हमेशा यह कोशिश की कि दक्षिण एशिया में शांति, विकास और आपसी सहयोग बना रहे।

2. आर्थिक विकास में योगदान  :
    (i) भारत, SAARC देशों को वित्तीय, तकनीकी और व्यापारिक मदद देता है।
(ii) भारत ने SAFTA (South Asian Free Trade Area) समझौते का समर्थन किया ताकि क्षेत्रीय व्यापार बढ़े।
(iii) भारत कई देशों को कृषि, ऊर्जा, आईटी और उद्योग के क्षेत्र में सहायता प्रदान करता है।
(iv) भारत ने SAARC Development Fund (SDF) और South Asian University (SAU) जैसी संस्थाओं में बड़ा निवेश किया है।

3. क्षेत्रीय शांति और स्थिरता :
    (i) भारत हमेशा यह चाहता है कि दक्षिण एशिया में शांति और स्थिरता बनी रहे।
    (ii) भारत आतंकवाद, सीमा विवाद और हिंसा को खत्म करने के लिए SAARC देशों से मिलकर काम करने की बात करता है।
    (iii) भारत ने कई बार कहा है कि “साझा प्रगति तभी संभव है जब पूरा क्षेत्र सुरक्षित और शांतिपूर्ण हो।”

4. शिक्षा और स्वास्थ्य में सहयोग :
    (i) भारत ने South Asian University (दिल्ली) की स्थापना की, जहाँ सभी SAARC देशों के छात्र पढ़ सकते हैं।
    (ii) भारत स्वास्थ्य सेवा, दवाइयाँ और वैक्सीन की आपूर्ति में सहयोग करता है (जैसे COVID-19 के समय)।
     (iii) छात्रवृत्ति, प्रशिक्षण और तकनीकी शिक्षा के लिए भारत अन्य देशों को अवसर देता है।

5. आपदा और संकट के समय मदद :
    (i) भारत हर बार आपदाओं (भूकंप, बाढ़, सुनामी) में SAARC देशों को राहत और सहायता भेजता है।
    (ii) उदाहरण के लिए :
  • नेपाल भूकंप (2015) में भारत ने तुरंत मदद पहुँचाई।
  • श्रीलंका में सुनामी (2004) के समय भारत ने राहत दल भेजे।
6. सांस्कृतिक और सामाजिक एकता :
    (i) भारत ने SAARC के तहत सांस्कृतिक महोत्सव , युवा कार्यक्रम और खेल प्रतियोगिताएँ
    (ii) आयोजित कीं ताकि सदस्य देशों के बीच भाईचारा बढ़े।
    (iii) भारत के फिल्म, संगीत, योग और साहित्य ने दक्षिण एशिया के लोगों को एक साझा पहचान दी है।


भारत के सामने चुनौतियाँ (Challenges Faced by India in SAARC)

हालाँकि भारत की भूमिका सकारात्मक रही है, फिर भी कुछ कठिनाइयाँ हैं जैसे :

1. भारत-पाकिस्तान के बीच राजनीतिक तनाव –
पाकिस्तान अक्सर भारत की योजनाओं का विरोध करता है, जिससे SAARC की बैठकों पर असर पड़ता है।
उदाहरण – 2016 का SAARC सम्मेलन (इस्लामाबाद) भारत ने बहिष्कार किया।

2. छोटे देशों की शंकाएँ –
कई छोटे देश भारत के बढ़ते प्रभाव से असहज महसूस करते हैं और सोचते हैं कि भारत “dominant role” निभाना चाहता है।

3. आर्थिक असमानता –
भारत की अर्थव्यवस्था बहुत बड़ी है, जबकि बाकी देशों की छोटी। इससे संतुलन बनाए रखना कठिन होता है।

4. चीन का बढ़ता प्रभाव –
चीन, SAARC के बाहर होते हुए भी, कई SAARC देशों (जैसे पाकिस्तान, नेपाल, श्रीलंका) में निवेश कर रहा है, जिससे भारत के प्रभाव को चुनौती मिलती है।


SAARC को बेहतर बनाने के सुझाव 

कई वर्षों के बाद भी SAARC उतनी प्रभावी नहीं हो पाई जितनी उम्मीद की गई थी।
राजनीतिक मतभेद, भारत–पाकिस्तान के तनाव और आपसी अविश्वास की वजह से इसका विकास सीमित रह गया। नीचे कुछ मुख्य सुझाव (Suggestions) दिए गए हैं जिनसे SAARC बेहतर बन सकती है :

1. राजनीतिक मतभेदों को दूर करना :
    (i) सदस्य देश संवाद (Dialogue) के ज़रिए समस्याओं को हल करें।
    (ii) SAARC को राजनीति से ऊपर उठकर आर्थिक और सामाजिक मुद्दों पर ध्यान देना चाहिए।

2. व्यापार और आर्थिक सहयोग बढ़ाना :
    (i) SAFTA (South Asian Free Trade Area) को सक्रिय रूप से लागू किया जाए।
    (ii) सीमा पार व्यापार को आसान बनाया जाए।
    (iii) साझा आर्थिक योजनाएँ जैसे — साझा बाजार, साझा उद्योग क्षेत्र बनाए जाएँ।
    (iv) डिजिटल पेमेंट सिस्टम और ई–कॉमर्स को क्षेत्रीय स्तर पर बढ़ावा दिया जाए।

3. आपसी विश्वास और सहयोग को बढ़ाना :
    (i) हर देश को समान सम्मान और भागीदारी मिले।
    (ii) निर्णय सर्वसम्मति (Consensus) से हों।
    (iii) छोटे देशों की ज़रूरतों और चिंताओं को प्राथमिकता दी जाए।

4. सांस्कृतिक और जनसंपर्क बढ़ाना :
    (i) SAARC Student Exchange Program शुरू किया जाए।
    (ii) सांस्कृतिक उत्सव, फिल्म फेस्टिवल, खेल प्रतियोगिताएँ आयोजित हों।
    (iii) युवाओं और कलाकारों के लिए साझा मंच (Common Platform) बनाया जाए।
    (iv) देशों के बीच वीज़ा प्रक्रियाएँ सरल की जाएँ।

5. शिक्षा, स्वास्थ्य और तकनीक पर ध्यान :
    (i) South Asian University (Delhi) जैसे संस्थानों का विस्तार किया जाए।
    (ii) संयुक्त शोध परियोजनाएँ (Joint Research Projects) शुरू की जाएँ।
    (iii) साझा स्वास्थ्य नेटवर्क (Health Network) बनाया जाए ताकि महामारी जैसी स्थितियों से मिलकर निपटा जा सके।
    (iv) डिजिटल साक्षरता (Digital Literacy) और तकनीकी सहयोग को बढ़ावा दिया जाए।

6. शिक्षा, स्वास्थ्य और तकनीक पर ध्यान :
    (i) SAARC Disaster Management Centre को और मजबूत बनाया जाए।
    (ii) पर्यावरण संरक्षण के लिए साझा नीति (Regional Environmental Policy) बनाई जाए।
    (iii) जलवायु परिवर्तन (Climate Change) से निपटने के लिए संयुक्त कदम उठाए जाएँ।

7. संचार और संपर्क व्यवस्था मजबूत करना :
    (i) रेल, सड़क, हवाई मार्ग से देशों को बेहतर जोड़ा जाए।
    (ii) SAARC Satellite Project जैसे प्रोजेक्ट पूरे किए जाएँ।
    (iii) Internet और Data Network को साझा किया जाए ताकि क्षेत्रीय जुड़ाव बढ़े।

8. साझा सुरक्षा नीति बनाना :
    (i) SAARC देशों के बीच सुरक्षा एजेंसियों का सहयोग बढ़ाया जाए।
    (ii) Information Sharing System विकसित किया जाए।
    (iii) आतंकवाद के खिलाफ साझा नीति (Joint Policy) तैयार की जाए।

9. SAARC की संरचना में सुधार :
    (i) वार्षिक सम्मेलन नियमित रूप से आयोजित हों।
    (ii) हर देश को कुछ विशेष परियोजनाओं की ज़िम्मेदारी दी जाए।
    (iii) निर्णय प्रक्रिया को तेज़ और पारदर्शी बनाया जाए।


निष्कर्ष :

SAARC दक्षिण एशिया के देशों के बीच सहयोग और विकास का एक महत्वपूर्ण संगठन है।
अगर सदस्य देश आपसी मतभेदों को भुलाकर शांति, व्यापार और एकता पर ध्यान दें,
तो SAARC क्षेत्र को प्रगति और स्थिरता की नई ऊँचाइयों तक पहुँचा सकता है।




"सार्क से जुड़े महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर"
(अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)



Q1: SAARC क्या है और इसे क्यों स्थापित किया गया?
A1: SAARC (South Asian Association for Regional Cooperation) एक क्षेत्रीय सहयोग संगठन है, जिसे दक्षिण एशिया के देशों के बीच आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक सहयोग को बढ़ावा देने के लिए स्थापित किया गया। इसकी स्थापना 8 दिसंबर 1985 को की गई। मुख्य उद्देश्य ग्रामीण विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य, ऊर्जा, व्यापार आदि क्षेत्रों में मिलकर काम करना है।

Q2: SAARC के सदस्य देश कौन-कौन हैं और उन्हें कैसे चुना गया?
A2: SAARC के 8 सदस्य देश हैं : भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, श्रीलंका, मालदीव और अफगानिस्तान। पहले 7 सदस्य थे, और बाद में अफगानिस्तान को 2005 में शामिल किया गया। सदस्यता के लिए एक देश को दक्षिण एशियाई भू-भाग में होना चाहिए और अन्य सदस्य देशों की स्वीकृति आवश्यक है।

Q3: SAARC का संगठनात्मक ढाँचा क्या है और इसका कार्यप्रणाली कैसे होती है?
A3: SAARC का संगठनात्मक ढाँचा शिखर सम्मेलन, विदेश मंत्रियों की बैठक, विदेश सचिवों की स्थायी समिति और सचिवालय पर आधारित है। इसके साथ ही विशेष निकाय जैसे SDF, SAU, SARSO आदि भी शामिल हैं। यह ढाँचा नीति निर्धारण, समन्वय और क्रियान्वयन सुनिश्चित करने के लिए काम करता है।

Q4: SAARC के प्रमुख उद्देश्य एवं कार्य क्षेत्र क्या हैं?
A4: SAARC का प्रमुख उद्देश्य दक्षिण एशियाई देशों के बीच सहयोग को बढ़ाना है। इसके कार्य क्षेत्रों में आर्थिक और वाणिज्यिक सहयोग, शिक्षा एवं स्वास्थ्य, कृषि, आपदा प्रबंधन, ऊर्जा, परिवहन, सांस्कृतिक कार्यक्रम आदि शामिल हैं।

Q5: SAARC की प्रमुख उपलब्धियाँ कौन-सी हैं?
A5: SAARC की कुछ प्रमुख उपलब्धियाँ SAFTA, SAPTA, SATIS, SAARC विकास कोष, दक्षिण एशियाई विश्वविद्यालय, आपदा प्रबंधन सहयोग, मानक संगठन (SARSO) आदि हैं।

Q6: SAARC किन चुनौतियों का सामना कर रहा है?
A6: भारत-पाक तनाव, निर्णय लेने की देर, संसाधन की कमी, परियोजना क्रियान्वयन में कमी, आर्थिक विषमता, बाहरी हस्तक्षेप आदि।

Q7: भारत के लिए SAARC का क्या महत्व है?
A7: भारत के लिए SAARC पड़ोस नीति को आगे बढ़ाने, क्षेत्रीय नेतृत्व दिखाने, रणनीतिक और आर्थिक लाभ प्राप्त करने, एवं दक्षिण एशियाई देशों के साथ शांति एवं सहयोग सुनिश्चित करने का मंच है।

Q8: SAARC को और अधिक प्रभावी कैसे बनाया जाए?
A8: सुझावों में शामिल हैं: निर्णय प्रक्रिया में सुधार, सचिवालय को मजबूत करना, राजनीतिक विवादों को अलग रखना, संसाधन बढ़ाना, क्रियान्वयन तंत्र मजबूत करना, अधिक क्षेत्रीय परियोजनाएँ लाना आदि।

Q9: SAARC और अन्य क्षेत्रीय समूहों (जैसे ASEAN, EU) में क्या अंतर है?
A9: SAARC अभी तक गहरे आर्थिक एकीकरण और राजनीतिक संधियों की दिशा में आगे नहीं बढ़ पाया जैसे EU। निर्णय प्रक्रिया जटिल है, एवं सदस्य देशों में बहुत अंतर है। उन संगठनों की तुलना में SAARC का प्रभाव सीमित रहा है।

Q10: SAARC की स्थापना कब हुई और इसका मुख्यालय कहाँ है?
A10: SAARC की स्थापना 8 दिसंबर 1985 को ढाका में हुई, और इसका सचिवालय काठमांडू, नेपाल में स्थित है।




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