कक्षा 12 राजनीति विज्ञान – अध्याय 8 : पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन NCERT Solutions हिंदी में
पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन (Environment and Natural Resources) भारत और दुनिया की राजनीति, समाज और अर्थव्यवस्था के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण विषय हैं। इस अध्याय में समझाया गया है कि किस प्रकार प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण, पर्यावरण सुरक्षा और सतत विकास भारत की नीति और वैश्विक रणनीति का हिस्सा हैं। यह प्रश्न-उत्तर Class 12 Board Exam की तैयारी करने वाले छात्रों के लिए बेहद उपयोगी हैं। Political Science Class 12 के इस अध्याय के सभी महत्वपूर्ण प्रश्न यहाँ सटीक उत्तरों के साथ दिए गए हैं।"
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प्राकृतिक संसाधन |
1. निम्नलिखित में से कौन सा कथन पर्यावरण के बारे में बढ़ती चिंताओं का सबसे अच्छा कारण बताता है?(क) विकसित देश प्रकृति की सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं।(ख) पर्यावरण संरक्षण स्वदेशी लोगों और प्राकृतिक आवासों के लिए महत्वपूर्ण है।(ग) मानवीय गतिविधियों के कारण पर्यावरण का क्षरण व्यापक हो गया है और खतरनाक स्तर पर पहुँच गया है।(घ) उपरोक्त में से कोई नहीं.उत्तर: (ग)
2. पृथ्वी शिखर सम्मेलन के बारे में निम्नलिखित में से कौन सा कथन सही है?(क) इसमें 100 देशों, हजारों गैर सरकारी संगठनों और कई बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने भाग लिया।(ख) शिखर सम्मेलन संयुक्त राष्ट्र के तत्वावधान में आयोजित किया गया था।(ग) पहली बार, वैश्विक पर्यावरणीय मुद्दों को राजनीतिक स्तर पर मजबूती से समेकित किया गया।(घ) यह एक शिखर बैठक थी।उत्तर: (ग)
3. ग्लोबल कॉमन्स के बारे में निम्नलिखित में से कौन सा कथन सत्य है?(क) पृथ्वी का वायुमंडल, अंटार्कटिका, महासागर तल और बाह्य अंतरिक्ष को ग्लोबल कॉमन्स का हिस्सा माना जाता है।(ख) ग्लोबल कॉमन्स संप्रभु अधिकार क्षेत्र से बाहर हैं।(ग) ग्लोबल कॉमन्स के प्रबंधन के प्रश्न ने उत्तर-दक्षिण विभाजन को प्रतिबिंबित किया है।(घ) उत्तर के देश दक्षिण के देशों की तुलना में वैश्विक कॉमन्स की सुरक्षा के बारे में अधिक चिंतित हैं।उत्तर: (क)
4. रियो शिखर सम्मेलन के परिणाम क्या थे?उत्तर: रियो शिखर सम्मेलन (1992) ने ‘सतत विकास’ के विचार को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वैधता प्रदान की और पर्यावरणीय मुद्दों को वैश्विक राजनीतिक एजेंडा में महत्वपूर्ण स्थान दिलाया।रियो शिखर सम्मेलन (1992) के मुख्य परिणाम निम्नलिखित प्रकार से थे:1. ‘एजेंडा 21’ को अपनाना : यह एक कार्य योजना थी जिसका उद्देश्य सतत विकास को सुनिश्चित करना था। इसमें देशों को पर्यावरण संरक्षण और आर्थिक विकास के बीच संतुलन बनाने की सलाह दी गई।2. जैव विविधता सम्मेलन : जैव विविधता के संरक्षण और इसके टिकाऊ उपयोग के लिए भी समझौते पर हस्ताक्षर किए गए।3. जलवायु परिवर्तन नियंत्रण (UNFCCC) : सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने के लिए ‘यूएन फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज’ को स्वीकार किया गया, ताकि ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को सीमित किया जा सके।4. स्थानीय समुदायों, सरकारों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों के बीच सहयोग और भागीदारी को बढ़ावा देने पर बल दिया गया।
5. 'विश्व की साझी विरासत' का क्या अर्थ है? इसका दोहन और प्रदूषण कैसे होता है?उत्तर: ‘विश्व की साझी विरासत’ का अर्थ : इसका मतलब है कि कुछ प्राकृतिक संसाधन और क्षेत्र ऐसे हैं जिस पर किसी एक का नहीं बल्कि सभी का या पुरे समुदाय का अधिकार होता हैं।उदाहरण: पृथ्वी का वायुमंडल, महासागर, अंटार्कटिका, बाह्य अंतरिक्षआदि को ‘विश्व की साझी विरासत’ माना जाता है।इन्हें मानव सभ्यता के लिए संरक्षित रखना सभी देशों की सामूहिक जिम्मेदारी है ताकि ये संसाधन आने वाली पीढ़ियों के लिए भी सुरक्षित रह सकें।।दोहन : अत्यधिक उपयोग और दोहन के अंतर्गत समुद्रों से अधिक मात्रा में मछलियां पकड़ना, समुद्री खनिजों का अत्यधिक दोहन, वनों की अंधाधुंध कटाई आदि शामिल हैं जिसके कारण संसाधन खत्म
होने की कगार पर पहुंच जाते हैं।
प्रदूषण : बड़े-बड़े उद्योग और कारखाने कार्बन डाइऑक्साइड जैसी हानिकारक गैसें छोड़ते हैं, जिससे वायुमंडल दूषित होता है। महासागरों में जहाजों का तेल रिसाव और कचरा फेंकना भी समुद्री पारिस्थितिकी को नुकसान पहुंचाता है।
6. 'सांझी परंतुअलग-अलग जिम्मेदारियां' से क्या अभिप्राय है? हम इस विचार को कैसे लागू कर सकते हैं?उत्तर: साझी परन्तु अलग-अलग जिम्मेदारियों का अभिप्राय है कि एक समूह में सभी सदस्य एक ही लक्ष्य की ओर काम करते है। पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन (जैसे वायु, जल, जंगल, खनिज) किसी एक देश या व्यक्ति की संपत्ति नहीं होते। ये पूरे मानव समाज की साझा विरासत हैं। लेकिन इनका संरक्षण केवल एक संस्था या सरकार की जिम्मेदारी नहीं हो सकती।इस विचार को निम्न तरीकों से लागू कर सकते हैं :- 1. पर्यावरण सुरक्षा के लिए कानून बनाना (जैसे पर्यावरण संरक्षण अधिनियम)।2. उत्पादन में प्रदूषण कम करना और संसाधनों का टिकाऊ उपयोग सुनिश्चित करना।3. गाँवों और कस्बों में जल, जंगल, जमीन का संरक्षण और लोगों को जागरूक करना और स्थानीय उपाय अपनाना।4. प्लास्टिक का कम इस्तेमाल, वृक्षारोपण, पानी बचाना आदि।5. पर्यावरण-अनुकूल जीवनशैली अपनाना।6. कार्बन उत्सर्जन और अपशिष्ट प्रबंधन पर ध्यान देना।7. वैश्विक जलवायु समझौतों में भाग लेना (जैसे क्योटो प्रोटोकॉल, पेरिस समझौता)।
7. वैश्विक पर्यावरण की सुरक्षा से जुड़े मुद्दे 1990 के दशक से विभिन्न देशों के प्राथमिक सरोकार क्यों बन गए हैं?उत्तर: 1990 के दशक से दुनिया भर के देशों को यह समझ में आया कि पर्यावरणीय समस्याएं सीमाओं से परे हैं और सभी देशों को मिलकर इन्हें हल करना होगा। इसके निम्नलिखित मुख्य कारण हैं :1. पर्यावरणीय संकट जिसके तहत 1990 के दशक तक पर्यावरणीय समस्याएं जैसे ग्लोबल वार्मिंग, जलवायु परिवर्तन, ओजोन परत में छेद, वनों की कटाई और प्रदूषण गंभीर रूप ले चुके थे।2. अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक समुदाय और संस्थाओं (जैसे IPCC) ने चेताया कि यदि पर्यावरण को नहीं बचाया गया, तो मानव जीवन संकट में पड़ जाएगा।3. प्राकृतिक आपदाएं जैसे बाढ़, सूखा, तूफान आदि अधिक बार और तीव्र होने लगीं हैं, जिससे देशों को इसकी गंभीरता का एहसास हुआ।4. औद्योगीकरण और विकास की दौड़ में पर्यावरण को अधिक हानि पहुंचाई है , जिससे धीरे-धीरे यह समझ आया कि बिना पर्यावरण की रक्षा के टिकाऊ विकास संभव नहीं हैं ।5. 1992 में रियो डि जेनेरियो (Earth Summit) जैसे सम्मेलनों ने पर्यावरण को वैश्विक एजेंडा बनाया और पेरिस समझौता, क्योटो प्रोटोकॉल जैसे समझौते भी इसके प्रमाण हैं।
8. पृथ्वी को बचाने के लिए जरूरी है कि विभिन्न देश सुलह और सहकार की नीति अपनाएं।पर्यावरण के सवाल पर उतरी और दक्षिणी देश के बीच जारी वार्ताओं की रोशनी में इस कथन की पुष्टि करें।उत्तर : उत्तर (विकसित देश) और दक्षिण (विकासशील देश) के बीच पर्यावरण के मुद्दों पर कई वर्षों से मतभेद रहे हैं। ये मतभेद मुख्यतः निम्नलिखित कारणों से हैं:1. दक्षिणी देशों का मानना है कि प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन के लिए ज़िम्मेदारी मुख्य रूप से उत्तर देशों की है, क्योंकि औद्योगिक क्रांति से लेकर अब तक उन्होंने पर्यावरण को सबसे ज़्यादा नुकसान पहुँचाया है। दक्षिणी देश अभी विकास के रास्ते पर हैं। वे मानते हैं कि पर्यावरण सुरक्षा के नाम पर उन पर प्रतिबंध लगाना उनके विकास के अधिकार को सीमित करता है।2. विकासशील देश चाहते हैं कि विकसित देश उन्हें स्वच्छ तकनीक और आर्थिक मदद उपलब्ध कराएं ताकि वे सतत विकास की दिशा में आगे बढ़ सकें।सहकार और सुलह की ज़रूरत:इन मतभेदों को दूर करने के लिए सहयोग और समझौते की नीतियों को अपनाया गया। उदाहरण के लिए: 1. 1992 का रियो सम्मेलन में "साझी लेकिन भिन्न जिम्मेदारी" का सिद्धांत अपनाया गया, जिसमें माना गया कि सभी देशों को मिलकर पर्यावरण बचाने की जिम्मेदारी निभानी है।2. क्योटो प्रोटोकॉल (1997) और पेरिस समझौता (2015) -इसमें उत्तर और दक्षिण देशों ने मिलकर लक्ष्यों को तय किया।आज पर्यावरण संकट पूरी पृथ्वी के लिए खतरा बन चुका है। इससे कोई एक देश नहीं बल्कि पूरी मानवता प्रभावित हो रही है।जिसके लिए केवल सहयोग और आपसी समझ ही पर्यावरणीय न्याय और सतत विकास को संभव बना सकते हैं।
9. विभिन्न देशों के सामने गंभीर चुनौती वैश्विक पर्यावरण को आगे कोई नुकसान पहुंचाए बगैर आर्थिक विकास करने की है। यह कैसे हो सकता है? कुछ उदाहरण के साथ समझाएं।उत्तर : आज के समय में यह जरूरी हो गया है कि देश आर्थिक विकास की प्रक्रिया में पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखें। आर्थिक विकास और पर्यावरण सुरक्षा साथ-साथ हो सकते हैं :- 1. सतत विकास की नीति अपनाकर :ऐसा विकास जिसमें वर्तमान आवश्यकताओं को पूरा किया जाए, बिना भविष्य की पीढ़ियों की जरूरतों से समझौता किए। इसमें पर्यावरण संरक्षण, सामाजिक समानता और आर्थिक वृद्धि तीनों को संतुलित किया जाता है।2. हरित प्रौद्योगिकी का प्रयोग करके : जैसे ई-वाहन, ड्रिप सिंचाई, सोलर कुकर्स।3. वनों और जलस्रोतों का संरक्षण : अत्याधिक वनो की कटाई पर रोक , जल का संरक्षण। 4. स्वच्छ और नवीकरणीय ऊर्जा का प्रयोग : जैसे — सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, जल ऊर्जा आदि का उपयोग कर।उदाहरण:1. पेरिस जलवायु समझौता (2015):इसमें दुनिया के लगभग सभी देशों ने ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को घटाने और सतत विकास की दिशा में कार्य करने का संकल्प लिया।2. भारत का राष्ट्रीय सौर मिशन :भारत ने बड़े पैमाने पर सौर ऊर्जा के उत्पादन को बढ़ावा दिया है ताकि वह स्वच्छ ऊर्जा के ज़रिए सतत विकास किया जा सके। 3. कोस्टा रिका : यह देश अपनी लगभग 98% ऊर्जा जरूरतें नवीकरणीय स्रोतों से पूरी करता है। यह एक उदाहरण है कि आर्थिक वृद्धि पर्यावरण को नुकसान पहुँचाए बिना भी संभव है।4. चीन में ग्रीन इनोवेशन :चीन ने प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिए इलेक्ट्रिक वाहनों का चालन शुरू किया हैं।
(क) इसमें 100 देशों, हजारों गैर सरकारी संगठनों और कई बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने भाग लिया।
(ख) शिखर सम्मेलन संयुक्त राष्ट्र के तत्वावधान में आयोजित किया गया था।
(ग) पहली बार, वैश्विक पर्यावरणीय मुद्दों को राजनीतिक स्तर पर मजबूती से समेकित किया गया।
(घ) यह एक शिखर बैठक थी।
3. ग्लोबल कॉमन्स के बारे में निम्नलिखित में से कौन सा कथन सत्य है?
(क) पृथ्वी का वायुमंडल, अंटार्कटिका, महासागर तल और बाह्य अंतरिक्ष को ग्लोबल कॉमन्स का हिस्सा माना जाता है।
(ख) ग्लोबल कॉमन्स संप्रभु अधिकार क्षेत्र से बाहर हैं।
(ग) ग्लोबल कॉमन्स के प्रबंधन के प्रश्न ने उत्तर-दक्षिण विभाजन को प्रतिबिंबित किया है।
(घ) उत्तर के देश दक्षिण के देशों की तुलना में वैश्विक कॉमन्स की सुरक्षा के बारे में अधिक चिंतित हैं।
उत्तर: (क)
4. रियो शिखर सम्मेलन के परिणाम क्या थे?
उत्तर: रियो शिखर सम्मेलन (1992) ने ‘सतत विकास’ के विचार को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वैधता प्रदान की और पर्यावरणीय मुद्दों को वैश्विक राजनीतिक एजेंडा में महत्वपूर्ण स्थान दिलाया।
रियो शिखर सम्मेलन (1992) के मुख्य परिणाम निम्नलिखित प्रकार से थे:
1. ‘एजेंडा 21’ को अपनाना : यह एक कार्य योजना थी जिसका उद्देश्य सतत विकास को सुनिश्चित करना था। इसमें देशों को पर्यावरण संरक्षण और आर्थिक विकास के बीच संतुलन बनाने की सलाह दी गई।
2. जैव विविधता सम्मेलन : जैव विविधता के संरक्षण और इसके टिकाऊ उपयोग के लिए भी समझौते पर हस्ताक्षर किए गए।
3. जलवायु परिवर्तन नियंत्रण (UNFCCC) : सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने के लिए ‘यूएन फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज’ को स्वीकार किया गया, ताकि ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को सीमित किया जा सके।
4. स्थानीय समुदायों, सरकारों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों के बीच सहयोग और भागीदारी को बढ़ावा देने पर बल दिया गया।
5. 'विश्व की साझी विरासत' का क्या अर्थ है? इसका दोहन और प्रदूषण कैसे होता है?
उत्तर: ‘विश्व की साझी विरासत’ का अर्थ : इसका मतलब है कि कुछ प्राकृतिक संसाधन और क्षेत्र ऐसे हैं जिस पर किसी एक का नहीं बल्कि सभी का या पुरे समुदाय का अधिकार होता हैं।
उदाहरण: पृथ्वी का वायुमंडल, महासागर, अंटार्कटिका, बाह्य अंतरिक्षआदि को ‘विश्व की साझी विरासत’ माना जाता है।
इन्हें मानव सभ्यता के लिए संरक्षित रखना सभी देशों की सामूहिक जिम्मेदारी है ताकि ये संसाधन आने वाली पीढ़ियों के लिए भी सुरक्षित रह सकें।।
दोहन : अत्यधिक उपयोग और दोहन के अंतर्गत समुद्रों से अधिक मात्रा में मछलियां पकड़ना, समुद्री खनिजों का अत्यधिक दोहन, वनों की अंधाधुंध कटाई आदि शामिल हैं जिसके कारण संसाधन खत्म
होने की कगार पर पहुंच जाते हैं।
होने की कगार पर पहुंच जाते हैं।
प्रदूषण : बड़े-बड़े उद्योग और कारखाने कार्बन डाइऑक्साइड जैसी हानिकारक गैसें छोड़ते हैं, जिससे वायुमंडल दूषित होता है।
महासागरों में जहाजों का तेल रिसाव और कचरा फेंकना भी समुद्री पारिस्थितिकी को नुकसान पहुंचाता है।
6. 'सांझी परंतुअलग-अलग जिम्मेदारियां' से क्या अभिप्राय है? हम इस विचार को कैसे लागू कर सकते हैं?
उत्तर: साझी परन्तु अलग-अलग जिम्मेदारियों का अभिप्राय है कि एक समूह में सभी सदस्य एक ही लक्ष्य की ओर काम करते है। पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन (जैसे वायु, जल, जंगल, खनिज) किसी एक देश या व्यक्ति की संपत्ति नहीं होते। ये पूरे मानव समाज की साझा विरासत हैं। लेकिन इनका संरक्षण केवल एक संस्था या सरकार की जिम्मेदारी नहीं हो सकती।
इस विचार को निम्न तरीकों से लागू कर सकते हैं :-
1. पर्यावरण सुरक्षा के लिए कानून बनाना (जैसे पर्यावरण संरक्षण अधिनियम)।
2. उत्पादन में प्रदूषण कम करना और संसाधनों का टिकाऊ उपयोग सुनिश्चित करना।
3. गाँवों और कस्बों में जल, जंगल, जमीन का संरक्षण और
लोगों को जागरूक करना और स्थानीय उपाय अपनाना।
4. प्लास्टिक का कम इस्तेमाल, वृक्षारोपण, पानी बचाना आदि।
5. पर्यावरण-अनुकूल जीवनशैली अपनाना।
6. कार्बन उत्सर्जन और अपशिष्ट प्रबंधन पर ध्यान देना।
7. वैश्विक जलवायु समझौतों में भाग लेना (जैसे क्योटो प्रोटोकॉल, पेरिस समझौता)।
7. वैश्विक पर्यावरण की सुरक्षा से जुड़े मुद्दे 1990 के दशक से विभिन्न देशों के प्राथमिक सरोकार क्यों बन गए हैं?
उत्तर: 1990 के दशक से दुनिया भर के देशों को यह समझ में आया कि पर्यावरणीय समस्याएं सीमाओं से परे हैं और सभी देशों को मिलकर इन्हें हल करना होगा।
इसके निम्नलिखित मुख्य कारण हैं :
1. पर्यावरणीय संकट जिसके तहत 1990 के दशक तक पर्यावरणीय समस्याएं जैसे ग्लोबल वार्मिंग, जलवायु परिवर्तन, ओजोन परत में छेद, वनों की कटाई और प्रदूषण गंभीर रूप ले चुके थे।
2. अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक समुदाय और संस्थाओं (जैसे IPCC) ने चेताया कि यदि पर्यावरण को नहीं बचाया गया, तो मानव जीवन संकट में पड़ जाएगा।
3. प्राकृतिक आपदाएं जैसे बाढ़, सूखा, तूफान आदि अधिक बार और तीव्र होने लगीं हैं, जिससे देशों को इसकी गंभीरता का एहसास हुआ।
4. औद्योगीकरण और विकास की दौड़ में पर्यावरण को अधिक हानि पहुंचाई है , जिससे धीरे-धीरे यह समझ आया कि बिना पर्यावरण की रक्षा के टिकाऊ विकास संभव नहीं हैं ।
5. 1992 में रियो डि जेनेरियो (Earth Summit) जैसे सम्मेलनों ने पर्यावरण को वैश्विक एजेंडा बनाया और पेरिस समझौता, क्योटो प्रोटोकॉल जैसे समझौते भी इसके प्रमाण हैं।
8. पृथ्वी को बचाने के लिए जरूरी है कि विभिन्न देश सुलह और सहकार की नीति अपनाएं।पर्यावरण के सवाल पर उतरी और दक्षिणी देश के बीच जारी वार्ताओं की रोशनी में इस कथन की पुष्टि करें।
उत्तर : उत्तर (विकसित देश) और दक्षिण (विकासशील देश) के बीच पर्यावरण के मुद्दों पर कई वर्षों से मतभेद रहे हैं। ये मतभेद मुख्यतः निम्नलिखित कारणों से हैं:
1. दक्षिणी देशों का मानना है कि प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन के लिए ज़िम्मेदारी मुख्य रूप से उत्तर देशों की है, क्योंकि औद्योगिक क्रांति से लेकर अब तक उन्होंने पर्यावरण को सबसे ज़्यादा नुकसान पहुँचाया है। दक्षिणी देश अभी विकास के रास्ते पर हैं। वे मानते हैं कि पर्यावरण सुरक्षा के नाम पर उन पर प्रतिबंध लगाना उनके विकास के अधिकार को सीमित करता है।
2. विकासशील देश चाहते हैं कि विकसित देश उन्हें स्वच्छ तकनीक और आर्थिक मदद उपलब्ध कराएं ताकि वे सतत विकास की दिशा में आगे बढ़ सकें।
सहकार और सुलह की ज़रूरत:
इन मतभेदों को दूर करने के लिए सहयोग और समझौते की नीतियों को अपनाया गया।
उदाहरण के लिए:
1. 1992 का रियो सम्मेलन में "साझी लेकिन भिन्न जिम्मेदारी" का सिद्धांत अपनाया गया, जिसमें माना गया कि सभी देशों को मिलकर पर्यावरण बचाने की जिम्मेदारी निभानी है।
2. क्योटो प्रोटोकॉल (1997) और पेरिस समझौता (2015) -इसमें उत्तर और दक्षिण देशों ने मिलकर लक्ष्यों को तय किया।
आज पर्यावरण संकट पूरी पृथ्वी के लिए खतरा बन चुका है। इससे कोई एक देश नहीं बल्कि पूरी मानवता प्रभावित हो रही है।जिसके लिए केवल सहयोग और आपसी समझ ही पर्यावरणीय न्याय और सतत विकास को संभव बना सकते हैं।
9. विभिन्न देशों के सामने गंभीर चुनौती वैश्विक पर्यावरण को आगे कोई नुकसान पहुंचाए बगैर आर्थिक विकास करने की है। यह कैसे हो सकता है? कुछ उदाहरण के साथ समझाएं।
उत्तर : आज के समय में यह जरूरी हो गया है कि देश आर्थिक विकास की प्रक्रिया में पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखें। आर्थिक विकास और पर्यावरण सुरक्षा साथ-साथ हो सकते हैं :-
1. सतत विकास की नीति अपनाकर :
ऐसा विकास जिसमें वर्तमान आवश्यकताओं को पूरा किया जाए, बिना भविष्य की पीढ़ियों की जरूरतों से समझौता किए। इसमें पर्यावरण संरक्षण, सामाजिक समानता और आर्थिक वृद्धि तीनों को संतुलित किया जाता है।
2. हरित प्रौद्योगिकी का प्रयोग करके : जैसे ई-वाहन, ड्रिप सिंचाई, सोलर कुकर्स।
3. वनों और जलस्रोतों का संरक्षण : अत्याधिक वनो की कटाई पर रोक , जल का संरक्षण।
4. स्वच्छ और नवीकरणीय ऊर्जा का प्रयोग : जैसे — सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, जल ऊर्जा आदि का उपयोग कर।
उदाहरण:
1. पेरिस जलवायु समझौता (2015):
इसमें दुनिया के लगभग सभी देशों ने ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को घटाने और सतत विकास की दिशा में कार्य करने का संकल्प लिया।
2. भारत का राष्ट्रीय सौर मिशन :
भारत ने बड़े पैमाने पर सौर ऊर्जा के उत्पादन को बढ़ावा दिया है ताकि वह स्वच्छ ऊर्जा के ज़रिए सतत विकास किया जा सके।
3. कोस्टा रिका : यह देश अपनी लगभग 98% ऊर्जा जरूरतें नवीकरणीय स्रोतों से पूरी करता है। यह एक उदाहरण है कि आर्थिक वृद्धि पर्यावरण को नुकसान पहुँचाए बिना भी संभव है।
4. चीन में ग्रीन इनोवेशन :
चीन ने प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिए इलेक्ट्रिक वाहनों का चालन शुरू किया हैं।
📌 अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs) – पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन
Q1. पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन क्या हैं?
Ans : पर्यावरण वह प्राकृतिक और सामाजिक परिवेश है जिसमें जीव और मानव रहते हैं। प्राकृतिक संसाधन वे प्राकृतिक तत्व हैं जो मानव जीवन और आर्थिक विकास के लिए उपयोगी हैं, जैसे जल, जंगल, खनिज और भूमि।
(i) संसाधन सीमित हैं और अत्यधिक उपयोग से समाप्त हो सकते हैं।
(ii) राष्ट्रीय पर्यावरण नीति और कानूनों का निर्माण
(iii) भारत ने संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP), पेरिस समझौता और अन्य अंतरराष्ट्रीय समझौतों में सक्रिय भूमिका निभाई है।
(iv) पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों की परिभाषा और महत्व
Q2. प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण की आवश्यकता क्यों है?
Ans : पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखना जरूरी है।
सतत विकास (Sustainable Development) सुनिश्चित करना।
Q3. भारत में पर्यावरण और संसाधनों के संरक्षण के लिए कौन-कौन से कदम उठाए गए हैं?
Ans : वन संरक्षण और जल संरक्षण कार्यक्रम
सतत विकास और हरित तकनीक को बढ़ावा
Q4. वैश्विक स्तर पर पर्यावरण संरक्षण में भारत की भूमिका क्या है?
Ans : भारत ने संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP), पेरिस समझौता और अन्य अंतरराष्ट्रीय समझौतों में सक्रिय भूमिका निभाई है।
Q5. बोर्ड परीक्षा के लिए कौन-कौन से प्रश्न महत्वपूर्ण हैं?
Ans : संसाधन संरक्षण और सतत विकास
भारत और अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण नीति
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अध्याय-9 : वैश्वीकरण
Class 12 Political Science Important Questions (Board Exams)
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