उत्तर : (क) नागरिक अधिकारों की दशा और नागरिकों पर इसका असर:
(i) मौलिक अधिकारों का निलंबन : आपातकाल के दौरान नागरिकों के मौलिक अधिकारों, विशेषकर स्वतंत्रता का अधिकार और जीवन का अधिकार को निलंबित कर दिया गया।
(ii) हजारों लोगों की गिरफ्तारी : सरकार के विरोध में बोलने वाले नेताओं, पत्रकारों और कार्यकर्ताओं को बिना मुकदमे के जेल में डाल दिया गया। इसे मीसा (MISA – Maintenance of Internal Security Act) के तहत अंजाम दिया गया।
(iv) जनता में डर और चुप्पी : आम लोगों में डर का माहौल बन गया। सरकार की आलोचना करना खतरनाक हो गया।
(v) न्याय की उपलब्धता पर रोक : अदालतों में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका (हबीयस कॉर्पस) जैसे अधिकारों के प्रयोग पर भी रोक लगा दी गयी।
(ख) कार्यपालिका और न्यायपालिका के संबंध:
(i) कार्यपालिका का दबदबा : कार्यपालिका, खासकर प्रधानमंत्री कार्यालय, ने सभी प्रमुख निर्णय अपने हाथ में ले लिए।
(ii) लोकतंत्र की संस्थागत स्वतंत्रता कमजोर : न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता पर प्रश्न उठने लगे। इंदिरा गांधी बनाम राज नारायण केस इसका प्रमुख उदाहरण है।
(iii) न्यायपालिका पर दबाव : न्यायपालिका को भी सरकार के फैसलों के पक्ष में झुकने के लिए मजबूर किया गया।
(ग) जनसंचार माध्यम के कामकाज पर असर:
(i) मीडिया पर सेंसरशिप : अख़बारों और पत्रिकाओं पर सरकार की पूरी निगरानी थी। बिना सरकारी अनुमति के कुछ भी छापना वर्जित था।
(ii) विरोध की आवाज दबाना : स्वतंत्र प्रेस को वर्जित किया गया, जिससे जनता सही जानकारी से अनजान रही।
(iii) कुछ मीडिया संस्थानों ने समझौता किया : कई बड़े समाचार पत्रों ने सरकार के सामने झुककर काम किया, जबकि कुछ ने बहादुरी से विरोध भी किया।
जैसे – The Indian Express
(घ) पुलिस और नौकरशाही की कार्रवाइयाँ:
(i) सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग : पुलिस और प्रशासन का इस्तेमाल विपक्षी नेताओं और जनता को डराने के लिए किया गया।
(ii) नसबंदी और अनुशासन : कई जगहों पर जबरन नसबंदी जैसे अमानवीय कामों को अंजाम दिया गया, खासकर संजय गांधी के कार्यक्रमों के तहत।
(iii) निष्पक्षता की कमी : प्रशासनिक अधिकारी स्वतंत्र और निष्पक्ष न रहकर पूरी तरह सरकार के अधीन हो गए।
9. भारत की दलीय प्रणाली पर आपातकाल का किस तरह असर हुआ? अपने उत्तर की पुष्टि उदाहरणों से करें।
उत्तर : भारत की दलीय प्रणाली पर आपातकाल का पर गहरा असर पड़ा जिसके परिणामस्वरूप भारतीय राजनीति में कई बदलाव देखने को मिले जैसे :
1. कांग्रेस पार्टी की छवि का कमजोर होना : इंदिरा गांधी ने आपातकाल के दौरान लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर किया और मीडिया सेंसरशिप, विरोधी नेताओं की गिरफ्तारी, और न्यायपालिका पर दबाव जैसी घटनाओं ने जनता में कांग्रेस के खिलाफ नाराजगी पैदा की।
उदाहरण: जयप्रकाश नारायण और अटल बिहारी वाजपेयी जैसे नेताओं को जेल में डाल दिया गया।
2. विपक्षी दलों का एकीकरण : (i) आपातकाल के विरोध में विभिन्न विपक्षी दलों ने एकजुट होकर 'जनता पार्टी' बनाई। इससे पहले विपक्ष बिखरा हुआ था, लेकिन आपातकाल ने उन्हें एक मंच पर लाकर खड़ा कर दिया।
उदाहरण : 1977 के चुनाव में कांग्रेस के खिलाफ संयुक्त रूप से जनता पार्टी ने चुनाव लड़ा और जीत हासिल की।
3. पहली बार गैर-कांग्रेसी सरकार का गठन हुआ : आपातकाल के बाद हुए 1977 के आम चुनावों में जनता पार्टी को भारी जीत मिली।
यह पहली बार था जब केंद्र में कांग्रेस के अलावा कोई दूसरी पार्टी सत्ता में आई थीं।
उदाहरण: प्रधानमंत्री बने मोरारजी देसाई।
4. दलीय राजनीति में प्रतिस्पर्धा बढ़ी : कांग्रेस की लगातार जीत को तोड़ा गया। इसके बाद से भारतीय राजनीति में गठबंधन सरकारों और दलीय प्रतिस्पर्धा का दौर शुरू हो गया।
5. लोकतंत्र और राजनीतिक चेतना का विकास : जनता ने महसूस किया कि लोकतंत्र कितना कीमती है। इससे मतदाता अधिक जागरूक और राजनीतिक रूप से सक्रिय हुए और आगे चलकर मतदान प्रतिशत भी बढ़ा और स्थानीय मुद्दों पर आधारित राजनीति को बल मिला।
10. निम्नलिखित अवतरण को पढ़े और इसके आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दें -
1977 के चुनाव के दौरान भारतीय लोकतंत्र, दो-दलीय व्यवस्था के जितना नजदीक आ गया था उतना पहले कभी नहीं आया। बहरहाल अगले कुछ सालों में मामला पूरी तरह बदल गया। हारने के तुरंत बाद कांग्रेस दो टुकड़ों में बंट गई...... जनता पार्टी ने भी बड़ी अफरा तफरी मची...... डेविड बटलर, अशोक लाहिड़ी और प्रणव रॉय
------ पार्था चटर्जी
(क) किन वजहों से 1977 में भारत की राजनीति दो-दलीय प्रणाली के समान जान पड़ रही थी?
(ख) 1977 में दो से ज्यादा पार्टियाँ अस्तित्व में थी। इसके बावजूद लेखकगढ़ इस दौर को दो-दलीय प्रणाली के नजदीक क्यों बता रहे हैं ?
(ग) कांग्रेस और जनता पार्टी में किन कारणों से टूट पैदा हुई?
उत्तर : (क) 1977 में भारत की राजनीति दो-दलीय प्रणाली के समान जान पड़ रही थी क्यूंकि :
(i) चुनाव में मुख्य मुकाबला कांग्रेस और जनता पार्टी के बीच था।
(ii) अधिकांश मतदाता दो ही विकल्पों के बीच बँटे थे या तो इंदिरा गांधी की कांग्रेस, या विपक्षी गठबंधन (जनता पार्टी)।
(iii) भारत में जनता पार्टी को भारी समर्थन मिला, जिससे लगा कि राजनीति दो स्पष्ट ध्रुवों में बँट गई है।
(ख) 1977 में दो से ज्यादा पार्टियाँ अस्तित्व में थी। इसके बावजूद लेखकगढ़ इस दौर को दो-दलीय प्रणाली के नजदीक बता रहे हैं क्यूंकि :
(i) 1977 में भले ही कई दल थे, परंतु वे सभी विपक्षी दल मिलकर जनता पार्टी के रूप में एकजुट हो गए थे।
(ii) मतदाता को चुनाव में लगभग दो ही विकल्प दिखे: कांग्रेस या जनता पार्टी।
(iii) इसलिए यह स्थिति दो-दलीय प्रणाली के बेहद करीब थी।
(ग) कांग्रेस में टूट के कारण :
(i) कांग्रेस के अंदर फूट और गुटबंदी बढ़ी।
जिसके परिणामस्वरूप कांग्रेस दो भागों में बंट गई :
1. इंदिरा गांधी की कांग्रेस (कांग्रेस-आई)
2. शेष पुरानी कांग्रेस ।
जनता पार्टी में टूट के कारण:
(i) जनता पार्टी कई विचारधाराओं वाली पार्टियों का मिला-जुला समूह था (जैसे जनसंघ, समाजवादी, गांधीवादी आदि)।
(ii) अंतरिक मतभेद, नेतृत्व की खींचतान, और आदर्शों में टकराव ने पार्टी को कमजोर किया। जिसके परिणामस्वरूप जनता पार्टी स्थिर सरकार नहीं दे पाई, और फिर विघटन हो गया।
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