Class 12 Political Science Chapter 7 – जन आंदोलनों का उदय | NCERT Solutions (प्रश्न-उत्तर)
"Class 12 Political Science Chapter 7 – जन आंदोलनों का उदय (Rise of Popular Movements) के सभी NCERT Solutions (प्रश्न-उत्तर) यहाँ सरल भाषा में उपलब्ध हैं। इस अध्याय में भारत में विभिन्न जन आंदोलनों जैसे चिपको आंदोलन, दलित आंदोलन, महिला आंदोलन, किसान आंदोलन और अन्य सामाजिक-राजनीतिक आंदोलनों का अध्ययन किया गया है। यह प्रश्न-उत्तर Class 12 Board Exam की तैयारी करने वाले छात्रों के लिए बेहद उपयोगी हैं। Political Science Class 12 के इस अध्याय के सभी महत्वपूर्ण प्रश्न यहाँ सटीक उत्तरों के साथ दिए गए हैं।"
1. चिपको आंदोलन के बारे में निम्नलिखित में कौन-कौन से कथन गलत है :
(क) यह पेड़ों की कटाई को रोकने के लिए चला एक पर्यावरण आंदोलन था।
(ख) इस आंदोलन ने पारिस्थितिकी और आर्थिक शोषण के मामले उठाए।
(ग) यह महिलाओं द्वारा शुरू किया गया शराब - विरोधी आंदोलन था।
(घ) इस आंदोलन की मांग थी कि स्थानीय निवासियों का अपने प्राकृतिक संसाधनों पर नियंत्रण होना चाहिए।
उत्तर : (ग) यह महिलाओं द्वारा शुरू किया गया शराब - विरोधी आंदोलन था।
2. नीचे लिखे कुछ कथन गलत है। इनकी पहचान करें और जरूरी सुधार के साथ उन्हें दुरुस्त करके दोबारा लिखें :
(क) सामाजिक आंदोलन भारत के लोकतंत्र को हानि पहुँचा रहे हैं।
(ख) सामाजिक आंदोलन की मुख्य ताकत विभिन्न सामाजिक वर्गों के बीच व्याप्त उनका जनाधार है।
(ग) भारत के राजनीतिक दलों ने कई मुद्दों को नहीं उठाया। इसी कारण सामाजिक आंदोलनो का उदय हुआ।
उत्तर : (क) यह लोकतंत्र को मजबूत करने का कार्य कर रहे हैं। ये आंदोलन आम जनता की आवाज़ को सामने लाते हैं और सरकार को जवाबदेह बनाने में मदद करते हैं।
(ख) सामाजिक आंदोलन की मुख्य ताकत विभिन्न सामाजिक वर्गों के बीच फैला असंतोष या समस्या नहीं, बल्कि उनकी एकता और संगठित जनाधार है, जो एक समान उद्देश्य के लिए काम करता है।
(ग) भारत के कुछ राजनीतिक दल कई जरूरी सामाजिक और आर्थिक मुद्दों को नजरअंदाज कर देते हैं। इन्हीं कारणों से सामाजिक आंदोलनों का जन्म हुआ, ताकि इन उपेक्षित मुद्दों को सामने लाया जा सके और समाज में सुधार लाया जा सके।
3. उत्तर प्रदेश के कुछ भागों में (अब उत्तराखंड) 1970 के दशक में किन कारणों से चिपको आंदोलन का जन्म हुआ ? इस आंदोलन का क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर : चिपको आंदोलन का जन्म 1970 के दशक में उत्तर प्रदेश (अब उत्तराखंड) के पर्वतीय क्षेत्रों में हुआ। इस आंदोलन की शुरुआत का मुख्य कारण था :
(i) जंगलों की अंधाधुंध कटाई और वन संसाधनों पर बाहरी ठेकेदारों का नियंत्रण।
(ii) इससे स्थानीय ग्रामीणों की आजीविका, पर्यावरण और पारंपरिक जीवनशैली पर खतरा मंडराने लगा।
(iii) ग्रामीणों, विशेषकर महिलाओं, ने पेड़ों से चिपककर कटाई का विरोध किया, जिससे इस आंदोलन को "चिपको आंदोलन" कहा गया।
(iv) यह एक अहिंसक और पर्यावरण को बचाने वाला जन आंदोलन था।
इस आंदोलन का प्रभाव बहुत गहरा हुआ :
(i) सरकार को पेड़ों की कटाई पर रोक लगाने के लिए मजबूर होना पड़ा।
(ii) देशभर में पर्यावरण संरक्षण को लेकर जागरूकता फैली।
(iii) यह आंदोलन वैश्विक स्तर पर भी एक उदाहरण बना और पर्यावरणीय आंदोलनों की प्रेरणा स्रोत बना।
4. भारतीय किसान यूनियन किसानों की दुर्दशा की तरफ ध्यान आकर्षित करने वाला अग्रणी संगठन है। नब्बे के दशक में इसने किन मुद्दों को उठाया और इसे कहां तक सफलता मिली?
उत्तर :भारतीय किसान यूनियन (BKU) ने 1990 के दशक में किसानों की आर्थिक और सामाजिक समस्याओं को लेकर देशभर में आवाज़ बुलंद की। इसकी स्थापना चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत ने की थी। यह संगठन मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब के किसानों का प्रतिनिधित्व करता था।
भारतीय किसान यूनियन ने जिन प्रमुख मुद्दों को उठाया वे निम्न प्रकार से थे :
(i) फसलों के लिए उचित समर्थन मूल्य (MSP) की मांग : किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य मिल सके।
(ii) बिजली और पानी पर सब्सिडी : सिंचाई के लिए बिजली जरूरी थी और दरें बहुत ज़्यादा थीं।
(iii) कर्जमाफी और आसान कर्ज व्यवस्था : बैंकों से आसान ब्याज दरों पर कर्ज, जिससे किसान साहूकारों के जाल में न फँसें।
(iv) महंगे कीटनाशकों और खाद की कीमतों में कटौती ताकि खेती की लागत घटे।
(v) बिचौलियों को हटाकर सीधे मंडी या बाजार में किसान अपनी फसल बेच सकें और अधिक लाभ प्राप्त कर सके।
(vi) सरकारी नीतियों में पारदर्शिता ताकि किसानों को योजनाओं की सही और पूरी जानकारी मिल सके
इस आंदोलन की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि यह पूरी तरह अहिंसक और शांतिपूर्ण था। किसान बड़ी संख्या में रैलियों और धरनों में भाग लेते थे।
भारतीय किसान यूनियन (BKU) की सफलता :
(i) भारतीय किसान यूनियन अपने कई मांगों को सरकार तक पहुंचाने में सफल रही।
(ii) सरकार ने MSP (न्यूनतम समर्थन मूल्य) में कुछ फसलों के दाम बढ़ाए।
(iii) कुछ मामलों में सरकार ने बिजली दरें घटाईं और कुछ क्षेत्रों में सब्सिडी बढ़ाई।
(iv) समर्थन मूल्य बढ़ाया और किसानों की समस्याओं को लेकर गंभीर चर्चा शुरू की। हालांकि, सभी मांगें पूरी नहीं हुईं, लेकिन यह आंदोलन किसानों की आवाज़ को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने में सफल रहा।
5. आंध्र प्रदेश में चले शराब - विरोधी आंदोलन ने देश का ध्यान कुछ गंभीर मुद्दों की तरफ खींचा। ये मुद्दे क्या थे?
उत्तर : आंध्र प्रदेश के ग्रामीण इलाकों, विशेषकर श्रीकाकुलम और नलगोंडा ज़िलों में 1990 के दशक की शुरुआत में एक शराब-विरोधी आंदोलन शुरू हुआ। इस आंदोलन की शुरुआत उस समय हुई जब महिलाएं अपने परिवारों की बिगड़ती हालत, पुरुषों की लत, और घरेलू हिंसा से तंग आ चुकी थीं। धीरे-धीरे यह आंदोलन पूरे राज्य में फैल गया और देशभर की मीडिया और नीति-निर्माताओं का ध्यान खींचा।
इस आंदोलन के पीछे के गंभीर मुद्दे :
(i) घरेलू हिंसा और महिलाओं की पीड़ा :
शराब की लत ने पुरुषों को इतना प्रभावित किया था कि वे घर में हिंसक व्यवहार करने लगे थे। महिलाओं और बच्चों पर अत्याचार बढ़ गया था। रोज़गार और मेहनत की कमाई भी शराब में खर्च हो जाती थी। इस आंदोलन ने पहली बार महिलाओं को यह मंच दिया जहाँ वे खुलकर अपनी तकलीफ बयान कर सकीं।
2. गरीबी और आर्थिक तंगी :
गांवों में पुरुष मजदूरी से जो भी कमाई करते थे, सारी कमाई शराब पर उड़ा देते थे, जिससे परिवारों को भूखा रहना पड़ता था। इससे परिवारों के पास खाने, पढ़ाई या इलाज करवाने तक के पैसे नहीं बचते थे। इस आंदोलन ने बताया कि शराब सिर्फ एक आदत नहीं, गरीबी की एक बड़ी वजह भी है।
3. सरकारी शराब नीति पर सवाल
सरकार को शराब की बिक्री से बड़ा राजस्व मिलता था, इसलिए वह शराब की दुकानों को बढ़ावा दे रही थी। आंदोलन ने यह सवाल उठाया कि जब शराब समाज को बर्बाद कर रही है, तो सरकार इसे बढ़ावा क्यों दे रही है?
4. महिलाओं का सशक्तिकरण और असमानता :
इस आंदोलन ने गांव की आम महिलाओं को संगठित होने, नेतृत्व करने, और नीतियों को चुनौती देने की ताकत दी। यह आंदोलन महिलाओं के सशक्तिकरण का प्रतीक बना, जहाँ महिलाओं ने मिलकर अपनी आवाज़ बुलंद की।
6. क्या आप शराब-विरोधी आंदोलन को महिला-आंदोलन का दर्जा देंगे? एक कारण बताएं।
उत्तर : हाँ, शराब-विरोधी आंदोलन को महिला-आंदोलन का दर्जा दिया जा सकता है, क्योंकि इसकी आगुवाई और मुख्य भागीदारी महिलाओं द्वारा ही की गई थी।
यह आंदोलन विशेष रूप से आंध्र प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में शुरू हुआ था, जहाँ महिलाओं ने संगठित होकर शराब के दुष्परिणामों के खिलाफ आवाज़ उठाई। शराब ने उनके परिवारों को तोड़ दिया था, घरेलू हिंसा को बढ़ाया था, और आर्थिक स्थिति को बदतर बना दिया था। महिलाएं अपने जीवन, सम्मान और बच्चों के भविष्य को बचाने के लिए इस आंदोलन में आगे आईं।
मुख्य कारण:
यह आंदोलन महिलाओं की रोजमर्रा की समस्याओं और संघर्षों से जुड़ी थीं जो उनके जीवन को सीधे प्रभावित करने वाले मुद्दों पर केंद्रित था। इस आंदोलन में सीधी भागीदारी और नेतृत्व दोनों की शुरुआत गाँव की साधारण घरेलू महिलाओं ने की थी और इसकी माँगें भी महिलाओं की जिंदगी को सीधे प्रभावित करने वाले मुद्दों पर आधारित थीं। इसलिए इसे महिला-आंदोलन कहा जा सकता है।
7. नर्मदा बचाओ आंदोलन ने नर्मदा घाटी की बांध परियोजनाओं का विरोध क्यों किया ?
उत्तर : नर्मदा बचाओ आंदोलन एक प्रसिद्ध सामाजिक आंदोलन था, जिसने सरदार सरोवर बांध समेत नर्मदा नदी पर बनने वाली बड़ी-बड़ी बांध परियोजनाओं का शांतिपूर्ण विरोध किया। इसकी शुरुआत 1980 के दशक में हुई और इसमें मेधा पाटकर जैसी प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ताओं ने नेतृत्व किया।
नर्मदा बचाओ आंदोलन का विरोध जिन कारणों से था, निम्न रूप से इस प्रकार हैं :
(i) हज़ारों की संख्या में लोगों का विस्थापन :
बांध परियोजनाओं के कारण लाखों ग्रामीण, आदिवासी और किसान परिवारों को अपनी ज़मीन, घर और गांव छोड़ना पड़ता। बिना पूरी पुनर्वास योजना, बिना मुआवज़े और वैकल्पिक व्यवस्था के बेघर करके उन्हें उजड़ा जा रहा था।
(ii) मानव अधिकारों का उल्लंघन :
बिना सहमति और बिना जानकारी के लोगों को बेदखल किया जा रहा था।
लोगों को कानूनी अधिकारों और संविधान द्वारा दिए गए जीवन और सम्मान के अधिकार से वंचित किया जा रहा था।
(iii) पर्यावरणीय नुकसान :
बांध के कारण जंगल, जीव-जंतु और जैव विविधता को नुकसान होने की आशंका थी।
बड़ी मात्रा में जमीन डूब क्षेत्र में आ जाती, जिससे वन क्षेत्र नष्ट होते।
नदी की प्राकृतिक धारा और आसपास के जलवायु संतुलन पर प्रभाव पड़ता।
(iv) विकास की परिभाषा पर सवाल :
आंदोलनकारियों का कहना था कि सरकार का यह “विकास मॉडल” सिर्फ शहरों और उद्योगों को फायदा पहुंचाता है, जबकि ग्रामीण और आदिवासी इलाकों को तबाह कर देता है।
निष्कर्ष :
नर्मदा बचाओ आंदोलन ने यह बताया कि विकास के नाम पर अगर आम जनता के अधिकारों, पर्यावरण और संस्कृति की बलि दी जाती है, तो वह विकास नहीं बल्कि विनाश होता है। यह आंदोलन सामाजिक न्याय, पर्यावरण संरक्षण और लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा का प्रतीक बना।
8. क्या आंदोलन और विरोध की कार्रवाइयों से देश का लोकतंत्र मजबूत होता है? अपने उत्तर की पुष्टि में उदाहरण दीजिए।
उत्तर : हाँ, आंदोलन और विरोध की कार्रवाइयाँ देश के लोकतंत्र को मजबूत बनाती हैं।
लोकतंत्र का मतलब सिर्फ चुनाव और सरकार बनाना नहीं होता, बल्कि यह एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें आम जनता की आवाज़, उनके अधिकार और उनके सवालों का सम्मान किया जाता है। जब लोग संगठित होकर किसी सामाजिक, आर्थिक या पर्यावरणीय मुद्दे पर आवाज़ उठाते हैं, तो वे सरकार और व्यवस्था को जवाबदेह बनाते हैं।
कैसे आंदोलन लोकतंत्र को मजबूत करते हैं?
(i) जब जनता किसी नीतिगत गलती या सामाजिक अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाती है, तो सरकार पर दबाव पड़ता है कि वह फैसले सोच-समझकर ले।
उदाहरण: नर्मदा बचाओ आंदोलन ने सरकार को बड़े बांधों से होने वाले विस्थापन और पर्यावरणीय नुकसान पर सोचने को मजबूर किया।
(ii) दलित, महिलाएं, आदिवासी और अन्य वंचित वर्ग जो सामान्यतः राजनीति में पीछे रह जाते हैं, वे आंदोलन के ज़रिए मुख्य धारा में अपनी जगह बनाते हैं।
उदाहरण: शराब-विरोधी आंदोलन ने गांव की साधारण महिलाओं को संगठित किया और उन्हें सामाजिक बदलाव का नेतृत्व करने का मौका दिया।
(iii) आंदोलन यह दिखाते हैं कि जनता केवल चुनाव में वोट देने तक सीमित नहीं है, बल्कि वह नीतियों के निर्माण और समीक्षा में भी सक्रिय भूमिका निभा सकती है।
(iv) आंदोलनों के कारण कई बार सरकार अपनी योजनाओं में बदलाव लाती है या नई योजनाएं बनाती है जो आम लोगों के हित में होती हैं।
उदाहरण: भारतीय किसान यूनियन के आंदोलनों ने किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य और कर्ज माफी जैसे अधिकार दिलाने में भूमिका निभाई।
9. दलित-पैंथर्स ने कौन-से मुद्दे उठाए?
उत्तर : दलित-पैंथर्स एक सामाजिक और राजनीतिक संगठन था, जिसकी स्थापना 1972 में महाराष्ट्र में हुई थी। इसका गठन दलितों (अनुसूचित जातियों) के खिलाफ हो रहे जातीय भेदभाव, शोषण और हिंसा के विरोध में किया गया था। इस संगठन का नाम अमेरिका के “Black Panthers” आंदोलन से प्रेरित था, जो वहाँ अफ्रीकी-अमेरिकियों के अधिकारों की रक्षा के लिए बना था।
दलित-पैंथर्स द्वारा मुख्य रूप से उठाये गए मुद्दे :
(i) जातीय भेदभाव और सामाजिक अन्याय का विरोध :
दलितों के साथ समाज में हो रहे छुआछूत, अपमानजनक व्यवहार, और भेदभाव के खिलाफ दलित-पैंथर्स ने आवाज़ उठाई। सार्वजनिक जगहों जैसे मंदिरों में प्रवेश पर रोक।
(ii) दलितों के खिलाफ हिंसा का विरोध :
ग्रामीण क्षेत्रों में दलितों पर होने वाले अत्याचार, गांव छोड़ने की धमकी, हत्या और बलात्कार जैसे मामलों को लेकर उन्होंने सख्त विरोध किया और न्याय की मांग की।
(iii) आरक्षण और समान अवसर की मांग :
दलित-पैंथर्स ने शिक्षा, रोजगार और राजनीति में आरक्षण को सही ढंग से लागू करने की माँग की, ताकि दलित समाज को समान अवसर मिल सकें।
(iv) सांस्कृतिक और मानसिक आज़ादी की बात :
उन्होंने केवल कानूनी अधिकार नहीं, बल्कि मानसिक गुलामी से मुक्ति, आत्मसम्मान, और नए सांस्कृतिक दृष्टिकोण को भी महत्व दिया।
उन्होंने कहा कि दलितों को केवल "दया का पात्र" नहीं, बल्कि सम्माननीय नागरिक के रूप में देखा जाना चाहिए।
(v) सामंती सोच का विरोध :
उन्होंने अंबेडकरवादी विचारधारा को बढ़ावा दिया और ब्राह्मणवाद और सामंती सोच का विरोध किया। इनकी पत्रिकाएं और लेख दलित चेतना को जागृत करने में बहुत प्रभावशाली रहे।
10. निम्नलिखित अवतरण को पढ़े और इसके आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दें :
...लगभग सभी नए सामाजिक आंदोलन नयी समस्याओं जैसे -पर्यावरण का विनाश, महिलाओं की बदहाली, आदिवासी संस्कृति का नाश और मानवअधिकारों का उल्लंघन ....के समाधान को रेखांकित करते हुए उभरे। इनमें से कोई भी अपनेआप में समाजव्यवस्था के मूलगामी बदलाव के सवाल से नहीं जुड़ा था। इस अर्थ में ये आंदोलन अतीत की क्रांतिकारी विचारधाराओं से एकदम अलग है। लेकिन, ये आंदोलन बड़ी बुरी तरह बिखरे हुए हैं और यही इनकी कमजोरी है.... सामाजिक आंदोलन का एक बड़ा दायरा ऐसी चीजों की चपेट में है कि वह एक ठोस तथा एकजुट जन आंदोलन का रूप नहीं ले पता और न ही वंचितों और गरीबों के लिए प्रासंगिक हो पाता है। ये आंदोलन बिखरे-बिखरे हैं, प्रतिक्रिया के तत्वों से भरे हैं ,अनियत है और बुनियादी सामाजिक बदलाव के लिए इसके पास कोई फ्रेमवर्क नहीं है। 'इस ' या 'उस ' के उसके विरोध ( पश्चिम- विरोधी, पूंजीवाद विरोधी, 'विकास'-विरोधी, आदि) में चलने के कारण इनमें कोई संगति आती हो अथवा दबे- कुचले लोगों और हाशिए के समुदायों के लिए ये प्रासगिक हो पाते हों - ऐसी बात नहीं।
----- रजनी कोठारी
(क) नए सामाजिक आंदोलन और क्रांतिकारी विचारधाराओं में क्या अंतर है?
(ख) लेखक के अनुसार सामाजिक आंदोलनों की सीमाएँ क्या-क्या है?
(ग) यदि सामाजिक आंदोलन विशिष्ट मुद्दों को उठाते हैं तो आप उन्हें ' बिखरा ' हुआ कहेंगे या मानेंगे कि वे अपने मुद्दे पर कहीं ज्यादा केंद्रित है। अपने उत्तर की पुष्टि में तर्क दीजिए।
उत्तर: (क) नए सामाजिक आंदोलन और क्रांतिकारी विचारधाराओं में अंतर :
नए सामाजिक आंदोलनों और पुरानी क्रांतिकारी विचारधाराओं में मुख्य अंतर उनके उद्देश्यों और दृष्टिकोण का होता है।
(i) क्रांतिकारी विचारधाराएं समाज को पूरी तरह बदलने की कोशिश करती थीं। जैसे: पूंजीवाद को खत्म करना, समाजवाद या साम्यवाद लागू करना। जबकि, नए सामाजिक आंदोलन किसी एक विशिष्ट समस्या को उठाते हैं, जैसे — पर्यावरण की रक्षा, महिलाओं के अधिकार, आदिवासियों की संस्कृति की रक्षा, या मानवाधिकारों का संरक्षण।
(ख) रजनी कोठारी के अनुसार नए सामाजिक आंदोलनों की मुख्य सीमाएँ :
(i) ये आंदोलन एक-दूसरे से जुड़े नहीं होते, बल्कि अलग-अलग मुद्दों पर केंद्रित रहते हैं। इनका कोई साझा लक्ष्य या संगठन नहीं होता।
(ii) ये आंदोलन अक्सर किसी नीति या घटना के विरोध में शुरू होते हैं और इन आंदोलनों में एक ठोस नेतृत्व या दिशा नहीं होती, जिससे वे एक मजबूत जन आंदोलन का रूप नहीं ले पाते।
(ग) मेरा मनना यह हैं कि यह आंदोलन अपने मुद्दे पर ज्यादा केंद्रित हैं, और इसी कारण वे बिखरे हुए दिखते हैं — लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि वे कमजोर हैं।
क्यूंकि :
अगर कोई आंदोलन पर्यावरण, महिलाओं के अधिकार, या आदिवासियों के अधिकार पर केंद्रित है, तो यह उसकी विशेषता है, कमजोरी नहीं। आज की दुनिया में हर समस्या जटिल और अलग-अलग है, इसलिए उनके समाधान भी अलग-अलग होंगे। हर आंदोलन का अपना उद्देश्य, जनसमर्थन और रणनीति होती है, जो उसे प्रभावी बनाती है।
उदाहरण : (i) चिपको आंदोलन ने सिर्फ जंगल बचाने पर ध्यान दिया, लेकिन उसका असर पूरे देश में पर्यावरण जागरूकता के रूप में हुआ।
(ii) शराब-विरोधी आंदोलन सिर्फ शराब के खिलाफ था, लेकिन उसने महिला सशक्तिकरण को नई दिशा दी।
📌 Frequently Asked Questions (FAQs)
Q1. Class 12 Political Science Chapter 7 – जन आंदोलनों का उदय किस बारे में है?
Ans: यह अध्याय भारत में हुए विभिन्न जन आंदोलनों पर आधारित है, जैसे चिपको आंदोलन, महिला आंदोलन, दलित आंदोलन और किसान आंदोलन।
Q2. क्या यह अध्याय बोर्ड परीक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण है?
Ans: हाँ, इस अध्याय से अक्सर Short Answer और Long Answer Questions पूछे जाते हैं।
Q3. इस अध्याय के मुख्य विषय कौन-कौन से हैं?
Ans: चिपको आंदोलन, दलित आंदोलन, महिला आंदोलन, किसान आंदोलन और नए सामाजिक आंदोलन।
Ans: चिपको आंदोलन, दलित आंदोलन, महिला आंदोलन, किसान आंदोलन और नए सामाजिक आंदोलन।
Q4. Class 12 Political Science Chapter 7 के NCERT Solutions कहाँ मिल सकते हैं?
Ans: इस पेज पर आपको अध्याय 7 – जन आंदोलनों का उदय के सभी प्रश्न-उत्तर (NCERT Solutions) सरल भाषा में उपलब्ध हैं।
✨ इस प्रकार Class 12 Political Science Chapter 7 – जन आंदोलनों का उदय के सभी NCERT Solutions (प्रश्न-उत्तर) हमने प्रस्तुत किए। यह अध्याय भारतीय लोकतंत्र की ताकत और समाज में जन आंदोलनों की भूमिका को समझने में सहायक है। यह सामग्री न केवल Class 12 Board Exams बल्कि UPSC और अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए भी उपयोगी है।
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