हरित क्रांति (Green Revolution) – Class 12 Political Science Notes in Hindi

हरित क्रांति (Green Revolution): इतिहास, महत्व, प्रभाव और Class 12 Political Science Notes

"हरित क्रांति (Green Revolution) भारतीय कृषि के इतिहास में एक अहम मोड़ था। इस लेख में हमने हरित क्रांति की परिभाषा, इतिहास, विशेषताएँ, फायदे-नुकसान और समाज पर इसके प्रभाव को सरल भाषा में समझाया है। Class 12 Political Science Notes, NCERT Solutions और बोर्ड परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण प्रश्नों के साथ यह सामग्री छात्रों व प्रतियोगी परीक्षाओं (UPSC, SSC, State Exams) के लिए भी बेहद उपयोगी है। यदि आप हरित क्रांति पर शॉर्ट नोट्स, इम्पॉर्टेंट Q/A या राजनीतिक विज्ञान के अध्ययन की तैयारी कर रहे हैं तो यह आर्टिकल आपके लिए सम्पूर्ण गाइड साबित होगा।"

हरित क्रांति (Green Revolution) – Class 12 Political Science Notes in Hindi
हरित क्रांति


प्रस्तावना 

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत में खाद्य सुरक्षा और कृषि उत्पादन एक बड़ी चुनौती बनी हुई थी। बढ़ती जनसंख्या, अपर्याप्त सिंचाई सुविधाएँ, पारंपरिक बीज, कम उत्पादन, लगातार फसल‑क्षय और खाद्यान्न की कमी ने सरकार को किसानों की स्थिति सुधारने हेतु नई योजना बनाने पर मजबूर किया। ऐसे समय में हरित क्रांति (Green Revolution) की शुरुआत हुई, जिसने भारत को खाद्यान्न स्वरूप से आत्मनिर्भर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

हरित क्रांति की पृष्ठभूमि 

  • 1950‑60 के दशकों में भारत को खाद्यान्न की कमी होती थी, भुखमरी और आयात पर बहुत निर्भर था।
  • कृषि अनुसंधान संस्थाएँ जैसे ICAR (Indian Council of Agricultural Research), कृषि विश्वविद्यालय और राज्य सरकारें पहल कर रही थीं।
  • अंतरराष्ट्रीय सहयोग: HYV (High Yielding Varieties) के बीज, विशेष कर गेहूं और चावल के, यूरोप और अमेरिका से प्रेरित व सहायता प्राप्त हुई।
  • सिंचाई सुविधाएँ बढ़ाने के लिए सरकारी योजनाएँ, नहरें, ट्यूबवेल आदि शुरू हुईं।
  • समय: लगभग 1966‑67 से हरित क्रांति की शुरुआत मानी जाती है।

हरित क्रांति के उद्देश्य

हरित क्रांति के मुख्य उद्देश्य थे:
  1. खाद्य उत्पादन बढ़ाना — विशेष रूप से गेहूं और चावल की उपज में भारी वृद्धि।
  2. खाद्य आयात पर निर्भरता समाप्त करना।
  3. खेती की आधुनिक तकनीक अपनाना (HYV बीज, उर्वरक, कीटनाशी, कृषि मशीनरी)।
  4. सिंचाई व्यवस्था का समुचित विकास।
  5. किसानों की आय बढ़ाना और ग्रामीण विकास को प्रोत्साहित करना।
  6. खाद्य आत्म‑निर्भरता और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना। 

हरित क्रांति के मुख्य घटक 

  1. HYV बीज (High‑Yielding Varieties): गेहूं और धान के नए बीज जो ज्यादा उपज देते हैं और कम समय में तैयार होते हैं।
  2. रासायनिक उर्वरक (Fertilizers) एवं कीटनाशक (Pesticides): उत्पादन बढ़ाने के लिए उपयोग।
  3. सिंचाई की सुविधाएँ: ट्यूबवेल, नहर, ड्रिप/स्प्रिंकलर इत्यादि।
  4. कृषि यंत्रीकरण: ट्रैक्टर, हार्वेस्टर, थ्रेशर आदि।
  5. सरकारी नीतियाँ और आर्थिक सहायता: न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP), सब्सिडी, ऋण सुविधा, सरकारी योजनाएँ।


हरित क्रांति के लाभ

हरित क्रांति से भारत को कई सकारात्मक परिणाम मिले:
(i) उत्पादन में भारी वृद्धि : 
  • गेहूं और चावल की उपज में कई गुना सुधार हुआ। उदाहरण के लिए, 1965 में गेहूं की उत्पादन मात्रा निम्न थी, लेकिन 1990‑2000 के दशक तक गेहूं और धान की उपज में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई। 
  • “कृषि उत्पादन एवं उपज ” में वृद्धि ने भारत को खाद्य आयात से मुक्त होने की दिशा में अग्रसर किया। 
(ii) खाद्य आत्मनिर्भरता :
भारत ने ग्रेनेरी संकटों और संकटों से निपटने में बेहतर स्थिति प्राप्त की; भुखमरी की स्थितियाँ कम हुईं। 

(iii) किसानों की आमदनी में वृद्धि और ग्राम्य अर्थव्यवस्था का विकास :
आधुनिक कृषि तकनीक अपनाने से किसानों को अधिक उपज प्राप्त हुई, बाजार को उत्पाद उपलब्ध हुए, कृषक परिवारों की जीवनशैली में सुधार हुआ। 

(iv) औद्योगिकीकरण और कृषि से सम्बद्ध उद्योगों का विकास :
उर्वरक, कीटनाशक और कृषि उपकरणों की मांग बढ़ी; कृषि यंत्रीकरण ने रोजगार और उद्योग को बढ़ावा दिया।

(v) आर्थिक एवं सामाजिक बदलाव :
ग्रामीण इलाकों में बुनियादी ढाँचे (infra), सड़कें, भंडारण सुविधाएँ (storage), बाजारों का विकास हुआ; शिक्षण एवं स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार हुआ। 


हरित क्रांति की सीमाएँ व नकारात्मक प्रभाव 

हरित क्रांति के कई नकारात्मक पक्ष भी सामने आए हैं:
(i) पर्यावरणीय प्रभाव : 
  • मिट्टी की उर्वरता में कमी – लगातार HYV फसलों, अधिक रासायनिक उर्वरक के उपयोग से मिट्टी में प्राकृतिक पोषक तत्वों की कमी हुई। 
  • पानी की समस्या – भूजल स्तर में गिरावट, अत्यधिक सिंचाई के कारण जल टेबल घटने का खतरा। 
  • जल प्रदूषण – उर्वरक और कीटनाशक नदी, नाली, भूजल में मिलते हैं, जिससे स्वास्थ्य व पारिस्थितिकी को हानि होती है। 
(ii) क्षेत्रीय असमानताएँ : 
हरित क्रांति का लाभ मुख्यतः पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसे क्षेत्रों को मिला क्योंकि वहाँ सिंचाई तथा बुनियादी ढाँचा उपलब्ध था। जिन इलाकों में मानसून पर निर्भर खेती है या संसाधन कम हैं, उन्हें कम लाभ मिला। 

(iii) लघु एवं सीमांत किसानों की स्थिति :
छोटे किसानों के पास पूंजी, संसाधन, सरकारी सहायता कम थी, इस कारण उन्होंने HYV बीज, उर्वरक, सिंचाई‑यंत्र आदि खरीदने में मुश्किलें झेलीं। कई किसान कर्ज़ों में फँसे। 

(iv) जैव विविधता (Biodiversity) का ह्रास :
पारंपरिक अनाज, बाजरा, ज्वार, दलहन (pulses) आदि की खेती कम हुई क्योंकि गेहूं‑धान पर ध्यान अधिक गया गया। इससे पोषण के विविध स्रोत कम पड़े। 

(v) लंबी अवधि की स्थिरता :
अधिक रसायनों का उपयोग, पानी की अधिक खपत, मिट्टी की деградаशन, जल संसाधनों की कम होती उपलब्धता – ये सब हालत हैं जो भविष्य में कृषि उत्पादन को प्रभावित कर सकती हैं। 


आंकड़े 

  • 1965 और लगभग 1990 के बीच गेहूं की उपज में लगभग 4‑5 गुना वृद्धि हुई कुछ हरित क्रांति क्षेत्रों में। 
  • 1978‑79 में भारत ने लगभग 131 मिलियन टन अनाज उत्पादन किया। 
  • पंजाब, हरियाणा तथा पश्चिमी यूपी में भूजल स्तर में गिरावट हुई; कई ट्यूबवेल क्षेत्रों में पानी की उपलब्धता कठिन हो गई।


राजनीतिक एवं सामाजिक प्रभाव :

हरित क्रांति का सिर्फ कृषि या आर्थिक प्रभाव नहीं, बल्कि राजनीति और समाज पर भी गहरा प्रभाव पड़ा:

  1. किसान वर्ग का राजनीतिक महत्व बढ़ा: उन राज्यों में जहाँ उत्पादन हुआ, किसानों ने राजनीतिक शक्ति प्राप्त की। MSP और कृषि नीतियाँ राजनीतिक मुद्दे बन गए।
  2. सरकारी नीतियों में बदलाव: कृषि सब्सिडी, ऋण सुविधाएँ, सिंचाई योजनाएँ, कृषि विश्वविद्यालयों का विस्तार आदि।
  3. क्षेत्रीय असमानताएँ सामाजिक तनाव का कारण बनीं; कुछ राज्यों या जिलों में किसान समृद्ध हुए, तो अन्य पिछड़े रह गए।
  4. ग्रामीण जीवन स्तर में सुधार या बदला – जीवन स्तर, शिक्षा, स्वास्थ्य, बाजार सुविधाएँ बेहतर हुई। परंतु छोटे किसानों और भूमिहीन मजदूरों की स्थिति में सुधार कम या नाममात्र रहा।


निष्कर्ष : 

हरित क्रांति केवल एक कृषि सुधार नहीं थी, बल्कि इसने भारतीय समाज, अर्थव्यवस्था और राजनीति को गहराई से प्रभावित किया। इसने भारत को खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर बनाया, लेकिन साथ ही क्षेत्रीय व सामाजिक असमानता और पर्यावरणीय चुनौतियाँ भी खड़ी कीं।




"हरित क्रांति से जुड़े महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर"
(अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)

प्रश्न 1: हरित क्रांति के उद्देश्य क्या थे? उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर: हरित क्रांति के उद्देश्य थे: 
(i) खाद्य उत्पादन में वृद्धि करना, 
(ii) खाद्य आयात पर निर्भरता समाप्त करना, 
(iii) कृषि आधुनिक तकनीकों को अपनाना (HYV बीज, उर्वरक, कीटनाशक, सिंचाई सुविधाएँ), 
(iv) किसानों की आय में सुधार करना, 
(v) देश की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना। 
उदाहरण: जैसे पंजाब, हरियाणा में HYV बीजों और सिंचाई के कारण गेहूं की उपज में कई गुना वृद्धि हुई।

प्रश्न 2: हरित क्रांति के लाभ और हानियाँ दोनों व्यापक रूप से वर्णित करें।
उत्तर: लाभ : 
(i) उत्पादन वृद्धि, (ii) आत्मनिर्भरता, (iii) ग्रामीण विकास, (iv) किसानों की आय बढ़ना, (v) कृषि‑उद्योगों का विकास आदि; 
हानियाँ : 
(i) पर्यावरणीय प्रभाव, (ii) जल संसाधनों का गिरता स्तर, (iii) छोटे किसानों की उपेक्षा, (iv) जैव विविधता का ह्रास, (v) क्षेत्रीय असमानताएँ आदि।

प्रश्न 3: हरित क्रांति नीति की सीमाएँ व समाधान बताएँ।
उत्तर: सीमाएँ: 
(i) छोटे किसानों को संसाधन कम मिलना
(ii) सीमित क्षेत्रों में सफलता
(iii) पर्यावरणीय गिरावट
(iv) जैव विविधता की कमी
(v) उच्च लागत और कर्ज़ का बोझ। 
समाधान : 
(i) सतत कृषि , (ii) जैव‑उर्वरक उपयोग, कीटनाशकों का नियंत्रित उपयोग, (iii) पानी प्रबंधन, (iv) मोदीफाइड खेती पद्धतियाँ, (v) छोटे किसानों के लिए आर्थिक एवं तकनीकी सहायता, (vi) कृषि शिक्षा एवं प्रशिक्षण।

प्रश्न 4: हरित क्रांति से किस प्रकार की पर्यावरणीय समस्याएँ उत्पन्न हुईं?
उत्तर: (i) रासायनिक खाद और कीटनाशकों के अत्यधिक प्रयोग से मिट्टी की उर्वरता कम हुई।
(ii) ट्यूबवेल और नहरों के अधिक उपयोग से भूजल स्तर गिरा।
(iii) खेती में विविधता खत्म हुई, केवल गेहूँ और चावल की खेती पर ध्यान रहा।
(iv) प्राकृतिक संसाधनों के अति दोहन से पर्यावरणीय असंतुलन उत्पन्न हुआ।

प्रश्न 5: हरित क्रांति के कारण सामाजिक असमानता क्यों बढ़ी?
उत्तर: (i) बड़े और समृद्ध किसानों को आधुनिक तकनीक, खाद और सिंचाई साधनों का लाभ मिला।
(ii) छोटे और सीमांत किसान महँगी तकनीक का खर्च नहीं उठा पाए।
(iii) जिन क्षेत्रों में हरित क्रांति लागू हुई (पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी यूपी), वहाँ के किसान समृद्ध हुए लेकिन शेष भारत पिछड़ गया।
(iv) इससे ग्रामीण समाज में अमीर-गरीब का अंतर और बढ़ गया।




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