अध्याय 9 : भारतीय राजनीति में हालिया घटनाक्रम | Class 12 Political Science NCERT Solution in Hindi

Class 12 Political Science Chapter 9 – भारतीय राजनीति में हालिया घटनाक्रम | NCERT Solutions (प्रश्न-उत्तर)

"यहाँ आपको Class 12 Political Science Chapter 9 – भारतीय राजनीति में हालिया घटनाक्रम के सभी NCERT Solutions (प्रश्न-उत्तर) सरल और सटीक भाषा में मिलेंगे। इस अध्याय में भारत की राजनीति में हुए हालिया बदलाव, गठबंधन राजनीति, केंद्र-राज्य संबंधों और आर्थिक सुधारों से जुड़े महत्वपूर्ण प्रश्न शामिल हैं। यह NCERT Solutions बोर्ड परीक्षा की तैयारी करने वाले छात्रों के लिए उपयोगी है। नीचे दिए गए प्रश्न-उत्तर Political Science Class 12 के अध्याय 9 की सम्पूर्ण तैयारी के लिए तैयार किए गए हैं।"

अध्याय 9 : भारतीय राजनीति में हालिया घटनाक्रम NCERT Solutions
भारतीय राजनीति घटनाक्रम


प्रश्न 1. उन्नी - मुन्नी अखबार की कुछ कतरनों को बिखेर दिया है | आप इन्हें कालक्रम के अनुसार व्यवस्थित करें :
(क) मंडल आयोग की सिफारिश और आरक्षण विरोधी हंगामा
(ख) जनता दल का गठन 
(ग) बाबरी मस्जिद का विध्वंस
(घ) इंदिरा गांधी की हत्या 
(ड) राजग सरकार का  गठन
(च) सप्रसंग सरकार का गठन
(छ)  गोधरा की दुर्घटना और उसके परिणाम
उत्तर: 
(घ) इंदिरा गांधी की हत्या – 1984
(ख) जनता दल का गठन – 1988
(क) मंडल आयोग की सिफारिश और आरक्षण विरोधी हंगामा – 1990
(ग) बाबरी मस्जिद का विध्वंस – 1992
(च) सप्रसंग (यूपीए) सरकार का गठन – 1996 (हालांकि सटीक रूप से यह संयुक्त मोर्चा सरकार थी)
(ड) राजग (NDA) सरकार का गठन – 1998
(छ) गोधरा की दुर्घटना और उसके परिणाम – 2002 

प्रश्न 2. निम्नलिखित में मेल करें :

(1) सर्वानुमति की राजनीति                                

(a) शाहबानो मामला

(2) जाति आधारित दल

(b) अन्य पिछड़ा वर्ग का उभार

(3) पर्सनल लॉ और लैंगिक न्याय

(c)  गठबंधन सरकार

(4)  क्षेत्रीय पार्टियों की बढ़ती ताकत

(d) आर्थिक नीतियों पर सहमति


उत्तर: 

(1) सर्वानुमति की राजनीति                                                                             

(d) आर्थिक नीतियों पर सहमति

(2) जाति आधारित दल

(b) अन्य पिछड़ा वर्ग का उभार

(3) पर्सनल लॉ और लैंगिक न्याय

(a) शाहबानो मामला

(4)  क्षेत्रीय पार्टियों की बढ़ती ताकत

(c)  गठबंधन सरकार


प्रश्न 3. 1989 के बाद की अवधि में भारतीय राजनीति के मुख्य मुद्दे क्या रहे हैं ? इन मुद्दों से राजनीतिक दलों के आपसी जुड़ाव के क्या रूप सामने आए हैं ?
उत्तर: 1989 के बाद की भारतीय राजनीति के मुख्य मुद्दे इस प्रकार से हैं :
(i) गठबंधन राजनीति की शुरुआत हुई जिसमे 1989 के बाद पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला इसलिए विभिन्न दलों ने मिलकर सरकार बनाई। यह गठबंधन राजनीति का युग था।
(ii) 1990 में मंडल आयोग की सिफारिशें लागू हुईं जिसमे अन्य पिछड़ा वर्ग को आरक्षण मिला। इससे समाजवादी और जाति आधारित दलों को मजबूती मिली।
(iii) 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस एक बड़ा मुद्दा बना। इसके बाद हिन्दू-मुस्लिम राजनीति तेज़ हुई और इसके चलते भाजपा जैसी पार्टियों को इसमें बढ़त मिली।
(iv) 1991 से आर्थिक नीतियों में बड़े बदलाव हुए। उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण जैसे कदम उठाए गए। लगभग सभी दलों ने इसे स्वीकार किया, चाहे सत्ता में कोई भी हो।
इन मुद्दों से राजनीतिक दलों के आपसी जुड़ाव के कई  रूप सामने जी निम्न इस प्रकार से हैं: 
(i) कई छोटे-बड़े दलों ने मिलकर सरकार बनाई। जैसे: राजग (NDA)-भाजपा के नेतृत्व में और संप्रग (UPA)-कांग्रेस के नेतृत्व में। जिससे गठबंधन युग की शुरुआत हुई।
(ii) कुछ दल चुनाव से पहले गठबंधन करते थे और कुछ दल चुनाव परिणाम आने के बाद समर्थन करते थे
(iii) 1996 में संयुक्त मोर्चा सरकार बनी, जिसमें कांग्रेस बाहर से समर्थन दे रही थी।
(iv) अलग-अलग विचारधारा के दलों ने साझे न्यूनतम कार्यक्रम के तहत काम किया।
इसका उद्देश्य था कि सभी दल मिलकर सरकार चला सकें।

प्रश्न 4. "गठबंधन की राजनीति के इस नए दौर में राजनीतिक दल विचारधारा को आधार मानकर गठजोड़ नहीं करते हैं " इस कथन के पक्ष या विपक्ष में आप कौन - से तर्क देंगे।
उत्तर: "गठबंधन की राजनीति के इस नए दौर में राजनीतिक दल विचारधारा को आधार मानकर गठजोड़ नहीं करते हैं
यह कहना पूरी तरह सही नहीं है कि आज की गठबंधन राजनीति में विचारधारा का कोई महत्व नहीं बचा। इसलिए यह एक मिश्रित स्थिति है जहां कभी विचारधारा, कभी अवसरवाद। 
पक्ष में तर्क  :
कई बार दलों ने सिर्फ सरकार बनाने के लिए विरोधी विचारधारा वाले दलों से भी गठबंधन किया है। जैसे: 1996 में कांग्रेस ने वामपंथी दलों को समर्थन दिया, जबकि उनकी विचारधाराएं अलग थीं। गठबंधन सरकारें सामान्य मुद्दों पर सहमति बनाती हैं, विचारधारा पर नहीं। इससे यह साफ होता है कि विचारधारा को पीछे छोड़ दिया जाता है। सरकार को चलाए रखने के लिए दल विचारधारा में नरमी बरतते हैं, जिससे सत्ता बनी रहे।
विपक्ष में तर्क :
कुछ गठबंधन विचारधारा के आधार पर भी बने जैसे राजग (NDA) – सभी दल राष्ट्रवाद और बाज़ार आधारित अर्थव्यवस्था का समर्थन करते हैं जबकि संप्रग (UPA) अधिकतर दल धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक न्याय के पक्षधर हैं। गठबंधन सरकारें जब नीतियां बनाती हैं, तो उनके भीतर भी विचारधारात्मक बहस होती है। कई दल इसलिए गठबंधन नहीं करते क्योंकि उनकी विचारधारा मेल नहीं खाती, जैसे वामपंथी दल और भाजपा।

प्रश्न 5. आपातकाल के बाद के दौर में भाजपा एक महत्वपूर्ण शक्ति के रूप में उभरी |  इस दौर में इस पार्टी के विकास - क्रम का उल्लेख करें | 
उत्तर: आपातकाल (1975-77) के बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) एक महत्वपूर्ण राजनीतिक शक्ति के रूप में उभरी। इस पार्टी का विकास कई चरणों में हुआ, जो इस प्रकार हैं:
(i) जनसंघ से भाजपा का निर्माण (1980) : भाजपा ने शुरू में 'गांधीवादी समाजवाद' और 'सांस्कृतिक राष्ट्रवाद' को अपनाया।आपातकाल के बाद 1977 में भारतीय जनसंघ ने दूसरी पार्टियों के साथ मिलकर जनता पार्टी बनाई। लेकिन 1979 में जनता पार्टी में आंतरिक मतभेदों के कारण यह टूट गई। इसके बाद 1980 में जनसंघ से जुड़े नेताओं ने एक नई पार्टी बनाई -भारतीय जनता पार्टी (BJP)
(ii) राम मंदिर आंदोलन और भाजपा का उभार (1986-1992) : 1986 के बाद भाजपा ने राम जन्मभूमि आंदोलन का समर्थन किया, जिससे इसे हिंदुत्व का समर्थन करने वाले मतदाताओं का साथ मिला और 1991 के चुनाव में भाजपा ने 120 से ज़्यादा सीटें जीतीं और यह एक प्रमुख विपक्षी पार्टी बन गई।
(iii) एनडीए सरकार और सत्ता में भागीदारी (1998-2004) : 1998 में भाजपा ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) बनाया और अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में सरकार बनाई। यह पहली बार था जब भाजपा ने केंद्र में पूर्ण सत्ता प्राप्त की।
(iv) भाजपा अब एक राष्ट्रीय पार्टी के रूप में स्थापित हो चुकी थी। यह कांग्रेस के बाद देश की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बन गई थी।

प्रश्न 6. कांग्रेस के प्रभुत्व का दौर समाप्त हो गया है इसके बावजूद देश की राजनीति पर कांग्रेस का असर लगातार कायम है। क्या आप इस बात से सहमत है? अपने उत्तर के पक्ष में तर्क दीजिए 
उत्तर: हाँ, मैं इस बात से सहमत हूँ कि कांग्रेस का प्रभुत्व अब समाप्त हो चुका है, लेकिन आज भी उसका राजनीतिक, वैचारिक और सांस्कृतिक प्रभाव भारत की राजनीति पर बना हुआ है। इसलिए यह कहना सही है कि कांग्रेस का प्रभुत्व भले ही खत्म हुआ हो, लेकिन उसका असर आज भी कायम है।
तर्क में पक्ष :
(i) राजनीतिक विचारधारा का असर: भारत में जो धर्मनिरपेक्षता, लोकतंत्र, सामाजिक न्याय और मिश्रित अर्थव्यवस्था जैसे मूल विचार हैं, वे कांग्रेस की नीतियों से ही स्थापित हुए और आज भी कई पार्टियाँ इन्हीं मूल्यों को अपनाती हैं।
(ii) राजनीतिक संस्कृति पर प्रभाव : भारतीय राजनीति में गठबंधन राजनीति और चुनावी रणनीतियाँ कांग्रेस से ही शुरू हुईं। कई क्षेत्रीय दलों ने कांग्रेस की रणनीतियों की नकल की है।
(iii) कई दलों की जड़ें कांग्रेस देखने को मिलती हैं क्यूंकि आज की कई प्रमुख पार्टियाँ जैसे टीएमसी (ममता बनर्जी), एनसीपी (शरद पवार) और वाईएसआर कांग्रेस, सभी का उद्भव कांग्रेस से ही हुआ है।
(iv) कांग्रेस की सीटें कम हो गई हों, लेकिन यह आज भी राष्ट्रीय पार्टी के रूप में मान्यता प्राप्त है। कई राज्यों में आज भी कांग्रेस मुख्य विपक्षी दल है।
(v) कांग्रेस ने भारत की आज़ादी में अहम भूमिका निभाई थी और यह ऐतिहासिक भूमिका आज भी उसकी पहचान का हिस्सा है।

प्रश्न 7. अनेक लोग सोचते हैं कि सफल लोकतंत्र के लिए दो-दलीय व्यवस्था जरूरी है पिछले बीस सालों के भारतीय अनुभवों को आधार बनाकर एक लेख लिखिए और इसमें बताइए कि भारत की मौजूदा बहुदलीय व्यवस्था के क्या फायदे हैं
उत्तर: कई लोग मानते हैं कि एक सफल लोकतंत्र के लिए दो-दलीय व्यवस्था होना ज़रूरी है, जिससे सरकारें स्थिर रहें और निर्णय लेने में तेजी हो। लेकिन भारत जैसे विविधता वाले देश के लिए बहुदलीय व्यवस्था ज़्यादा उपयुक्त साबित हुई है। पिछले 20 वर्षों के भारतीय अनुभवों से यह स्पष्ट होता है कि भारत की बहुदलीय लोकतांत्रिक व्यवस्था ने देश को स्थायित्व, भागीदारी और समावेशिता दी है।
भारत की मौजूदा बहुदलीय व्यवस्था के फायदे:
(i) भारत में अनेक धर्म, भाषाएँ, जातियाँ और क्षेत्रीय पहचानें हैं। बहुदलीय व्यवस्था ने हर क्षेत्र और समुदाय को अपनी बात कहने का मंच दिया है।
उदाहरण: तमिलनाडु में DMK, पंजाब में अकाली दल, बंगाल में TMC, महाराष्ट्र में NCP जैसी पार्टियाँ।
(ii) गठबंधन की राजनीति ने सभी को जोड़ा : 1990 के बाद से देश में गठबंधन सरकारें बनीं- जैसे NDA और UPA। इससे छोटे दलों को भी सत्ता में भागीदारी मिली और लोकतंत्र अधिक भागीदारीपूर्ण बना।
(iii) लोकतांत्रिक प्रतिस्पर्धा बढ़ी : बहुदलीय प्रणाली में चुनावों में ज्यादा विकल्प होते हैं। इससे नेताओं पर जनता के प्रति ज़िम्मेदार बनने का दबाव रहता है।
(iv) विकेंद्रीकरण को बढ़ावा मिला : क्षेत्रीय दलों ने राज्यों के मुद्दों को राष्ट्रीय मंच तक पहुँचाया। इससे केंद्र और राज्य दोनों के बीच संतुलन बना।
(v) बहुदलीय व्यवस्था ने किसी एक पार्टी के पूर्ण प्रभुत्व को रोका है। इससे सत्ता का दुरुपयोग कम हुआ है और लोकतंत्र सुरक्षित रहा है।

प्रश्न 8. निम्नलिखित अवतरण को पढ़ें और इसके आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दें :
भारत की दलगत राजनीति में कई चुनौतियों का सामना किया है कांग्रेस - प्रणाली ने अपना खात्मा ही नहीं किया, बल्कि कांग्रेस के जमावड़े के बिखर जाने से आत्म -प्रतिनिधित्व की नयी प्रवृत्ति का भी जोर बढ़। इससे दलगत व्यवस्था और विभिन्न हितों की समाई करने की इसकी क्षमता पर भी सवाल उठे। राजव्यवस्था के सामने एक महत्वपूर्ण काम एक ऐसी दलगत व्यवस्था खड़ी करने अथवा राजनीतिक दलों को गढ़ने की है, जो कारगर तरीके से विभिन्न हितों को मुखर और एकजुट करें....
  ----- जोया हसन 

(1)  इस अध्याय को पढ़ने के बाद क्या आप दलगत व्यवस्था की चुनौतियों की सूची बना सकते हैं ?
(2)  विभिन्न हितों का समाहार और उनमें एकजुटता का होना क्यों जरूरी है |
(3) इस अध्याय में आपने अयोध्या  विवाद के बारे में पढ़ा |  इस विवाद ने भारत के राजनीतिक दलों की समाहार की क्षमता के आगे  क्या चुनौती पेश की ?
उत्तर:
(1) दलगत व्यवस्था की चुनौतियों की सूची :
(i) राजनीतिक अस्थिरता: एक पार्टी के प्रभुत्व के समाप्त होने के बाद लगातार अस्थिर गठबंधन सरकारें बनती रहीं।
(ii) दल-बदल की प्रवृत्ति: सत्ता की लालच में नेता अक्सर पार्टी बदलते रहे, जिससे राजनीति में नैतिकता कमजोर हुई।
(iii) विचारधारा की कमी: कई दलों में स्पष्ट विचारधारा नहीं रही, वे केवल सत्ता पाने के लिए गठबंधन करते हैं।
(iv) अनुशासन का अभाव: दलों के अंदर लोकतंत्र की कमी और आंतरिक विभाजन भी समस्या बने।
(2) विभिन्न हितों का समाहार और उनमें एकजुटता का होना जरूरी है क्यूंकि :
भारत एक बहु-जातीय, बहु-धार्मिक और बहुभाषी देश है। ऐसे में विभिन्न समुदायों, वर्गों और क्षेत्रों के हितों का संतुलन और उनमें एकजुटता बेहद आवश्यक है जो राजनीतिक स्थिरता को सुनिश्चित करता है और सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व करता हैं। यह राष्ट्र की एकता और अखंडता बनाए रखता है। लोकतंत्र की मजबूती के लिए सभी हितों को एकजुट करना आवश्यक होता है।
(3) अयोध्या विवाद ने भारत के राजनीतिक दलों की समाहार की क्षमता के आगे चुनौती पेश की  से हैं :
अयोध्या विवाद ने भारत की दलगत राजनीति को गंभीर परीक्षा में डाल दिया। इसने राजनीतिक दलों की "समावेशी क्षमता" को कई तरह से चुनौती दी जैसे : अयोध्या विवाद ने राजनीति में हिंदू-मुस्लिम विभाजन को गहरा किया और धर्म के  नाम पर धार्मिक भावनाओं को भड़काया और वोट बैंक की राजनीति की। कई बार राजनीतिक दलों ने न्यायिक निर्णय या संवैधानिक मर्यादा से अधिक राजनीतिक लाभ को प्राथमिकता दी और राजनीतिक दल इस मुद्दे पर एकता नहीं बना पाए, जिससे सामाजिक सद्भाव कमजोर हुआ।



📌 Frequently Asked Questions (FAQs)

Q1. Class 12 Political Science Chapter 9 – भारतीय राजनीति में हालिया घटनाक्रम किस बारे में है?
Ans: यह अध्याय भारत की राजनीति में हुए हालिया परिवर्तनों पर आधारित है। इसमें गठबंधन राजनीति, क्षेत्रीय दलों की भूमिका, केंद्र-राज्य संबंधों में बदलाव और आर्थिक उदारीकरण के बाद की राजनीति का अध्ययन किया गया है।

Q2. क्या यह अध्याय बोर्ड परीक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण है?
Ans: हाँ, Class 12 Board Exam में इस अध्याय से अक्सर Short Answer और Long Answer Questions पूछे जाते हैं। इसलिए इसके NCERT Solutions पढ़ना बहुत ज़रूरी है।

Q3. क्या इस अध्याय के प्रश्न-उत्तर प्रतियोगी परीक्षाओं (UPSC, SSC, State PCS) में भी उपयोगी हैं?
Ans: जी हाँ, भारतीय राजनीति में हाल के विकास Competitive Exams में अक्सर पूछे जाते हैं। इस अध्याय का गहन अध्ययन UPSC व अन्य परीक्षाओं में मददगार साबित होगा।

Q4. इस अध्याय में कौन-कौन से मुख्य टॉपिक्स शामिल हैं?
Ans: इसमें आपातकाल के बाद की राजनीति, गठबंधन युग की शुरुआत, आर्थिक सुधार और क्षेत्रीय दलों की बढ़ती भूमिका जैसे विषय शामिल हैं।




इस प्रकार Class 12 Political Science Chapter 9 – भारतीय राजनीति में हालिया घटनाक्रम के सभी NCERT Solutions (प्रश्न-उत्तर) हमने यहाँ उपलब्ध कराए हैं। यह अध्याय छात्रों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें भारत की राजनीति में हुए बदलाव, गठबंधन राजनीति, क्षेत्रीय दलों की भूमिका और आर्थिक सुधारों जैसे मुद्दों पर प्रश्न पूछे जाते हैं।



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