अमेरिका का सुपर पावर बनना
(i) शीत युद्ध के बाद अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी सैन्य और आर्थिक शक्ति रहा।
(ii) Gulf War (1991) में अमेरिका की ताकत स्पष्ट रूप से दिखी।
(iii) अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र (UNO) और NATO में निर्णायक भूमिका निभाई।
(iv) मीडिया, सूचना प्रौद्योगिकी और वैश्विक अर्थव्यवस्था पर अमेरिकी प्रभाव बढ़ गया।
सोवियत संघ का विघटन और नई गणराज्य
(i) सोवियत संघ 15 नए स्वतंत्र देशों में बँट गया।
(ii) रूस सबसे बड़ा गणराज्य बना लेकिन आर्थिक और राजनीतिक संकट झेलना पड़ा।
(iii) मध्य एशिया और पूर्वी यूरोप के देशों ने लोकतंत्र और बाजार अर्थव्यवस्था की ओर कदम बढ़ाए।
(iv) वैश्विक शक्ति संतुलन पूरी तरह अमेरिका के पक्ष में चला गया।
संयुक्त राष्ट्र और बहुध्रुवीय व्यवस्था
(i) शीत युद्ध के बाद संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना (Peacekeeping) में सक्रिय हुआ।
(ii) अमेरिका, यूरोप, चीन और रूस ने मिलकर बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था की नींव डाली। वैश्विक समस्याएँ जैसे आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन, गरीबी ने UNO की भूमिका बढ़ाई।
(iii) विकसित और विकासशील देशों के बीच नए गठबंधन बने।
वैश्वीकरण और उदारीकरण का प्रभाव
शीत युद्ध के बाद (1991 के बाद) विश्व राजनीति और अर्थव्यवस्था में वैश्वीकरण और आर्थिक उदारीकरण ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसका प्रभाव निम्नलिखित रूप में देखा जा सकता है:
(i) वैश्वीकरण की तेजी :
शीत युद्ध के बाद देशों के बीच व्यापार, निवेश और आर्थिक संबंध तेज़ी से बढ़े।
देशों के बीच आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक संपर्क अधिक खुले और लगातार हुए।
(ii) बहुराष्ट्रीय कंपनियों (MNCs) और मुक्त व्यापार का विस्तार :
बड़ी कंपनियों ने कई देशों में अपने व्यवसाय बढ़ाए।
मुक्त व्यापार नीतियों के कारण वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ी और निवेश के अवसर बढ़े।
(iii) आर्थिक उदारीकरण :
भारत और कई अन्य देशों ने आर्थिक नीतियों में उदारीकरण अपनाया।
इसका मतलब था कि सरकार ने व्यापार, उद्योग और निवेश पर नियंत्रण कम किया, जिससे आर्थिक विकास और रोजगार के अवसर बढ़े।
(iv) तकनीक, इंटरनेट और मीडिया का प्रभाव :
इंटरनेट और तकनीकी नवाचार ने दुनिया को और करीब लाया।
सूचना, ज्ञान और समाचार अब त्वरित रूप से वैश्विक स्तर पर फैलने लगे।
(v) पश्चिमी संस्कृति और उपभोक्तावाद का प्रभाव :
वैश्वीकरण के कारण पश्चिमी देशों की संस्कृति, आदतें और उपभोक्ता प्रवृत्तियाँ तेजी से अन्य देशों में फैलने लगीं।
इसका असर भारत और अन्य विकासशील देशों के शहरी जीवन और आर्थिक व्यवहार पर भी पड़ा।
भारत की विदेश नीति में बदलाव
(i) शीत युद्ध के दौरान भारत ने गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) को अपनाया।
(ii) शीत युद्ध के बाद भारत ने अमेरिका, रूस, यूरोप और एशिया के साथ संतुलित संबंध बनाए।
(iii) 1991 में भारत ने आर्थिक उदारीकरण शुरू किया जिससे अंतरराष्ट्रीय निवेश बढ़ा।
(iv) भारत ने परमाणु परीक्षण, IT क्षेत्र और सैन्य सहयोग में बड़ी प्रगति की।
(v) दक्षिण एशिया और एशिया-प्रशांत क्षेत्र में भारत की भूमिका मज़बूत हुई।
निष्कर्ष
शीत युद्ध के बाद विश्व राजनीति में अमेरिका का दबदबा बढ़ा, लेकिन धीरे-धीरे चीन, यूरोप और भारत जैसी शक्तियाँ भी उभरकर सामने आईं।
वैश्वीकरण और उदारीकरण ने अंतरराष्ट्रीय संबंधों की परिभाषा बदल दी।
भारत ने भी अपनी विदेश नीति में लचीलापन अपनाकर वैश्विक स्तर पर नई पहचान बनाई।
यह अध्याय हमें सिखाता है कि विश्व राजनीति स्थिर नहीं रहती, बल्कि बदलते हालातों और शक्तियों के साथ नई दिशा ग्रहण करती है।
शीत युद्ध के बाद विश्व राजनीति से जुड़े महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
1. शीत युद्ध के बाद विश्व राजनीति की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं?
Ans : शीत युद्ध के बाद विश्व राजनीति की प्रमुख विशेषताएँ :
(i) अमेरिका का सुपर पावर बनना।
(ii) सोवियत संघ का विघटन।
(iii) संयुक्त राष्ट्र की सक्रिय भूमिका।
(iv) वैश्वीकरण और उदारीकरण।
2. भारत की विदेश नीति पर शीत युद्ध का क्या प्रभाव पड़ा?
Ans : (i) गुटनिरपेक्षता से हटकर संतुलित विदेश नीति
(ii) अमेरिका और रूस दोनों से अच्छे संबंध
(iii) आर्थिक सुधार और वैश्विक निवेश
3. वैश्वीकरण का विश्व राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ा?
Ans : (i) बहुराष्ट्रीय कंपनियों का विस्तार
(ii) तकनीक और इंटरनेट का प्रसार
(iii) सांस्कृतिक आदान-प्रदान में वृद्धि
4. शीत युद्ध के बाद विश्व राजनीति में प्रमुख बदलाव कौन से हुए?
Ans : शीत युद्ध के अंत (1991) के बाद विश्व राजनीति में कई बड़े बदलाव हुए। सबसे महत्वपूर्ण था एकध्रुवीय विश्व व्यवस्था का उदय, जिसमें अमेरिका प्रमुख महाशक्ति बन गया। सोवियत संघ का विघटन हुआ और पूर्वी यूरोप में लोकतंत्र और पूंजीवाद का प्रसार हुआ। इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय सहयोग और वैश्विक संगठन अधिक सक्रिय हुए, नए राजनीतिक गठबंधन बने और पुराने संघर्षों का स्वरूप बदला। वैश्विक आर्थिक नीतियों में भी सुधार हुए और वैश्वीकरण की गति तेज हुई।
5. शीत युद्ध के अंत के बाद अमेरिका और रूस का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर क्या प्रभाव रहा?
Ans : शीत युद्ध के बाद अमेरिका दुनिया की प्रमुख महाशक्ति बन गया, जबकि रूस की राजनीतिक और आर्थिक शक्ति कमजोर हो गई। अमेरिका ने वैश्विक राजनीति, आर्थिक नीतियों और सुरक्षा मामलों में बढ़ती भूमिका निभाई। रूस ने अपनी अंतरराष्ट्रीय नीति को पुनर्गठित किया और नए स्वतंत्र देशों के साथ रिश्ते बनाए। दोनों देशों के बीच अब प्रत्यक्ष संघर्ष नहीं बल्कि कूटनीति और आर्थिक प्रतिस्पर्धा के माध्यम से प्रभाव बढ़ाने की नीति अपनाई गई।
6. शीत युद्ध के बाद विश्व राजनीति के प्रमुख संघर्ष और विवाद कौन से थे?
Ans : शीत युद्ध के बाद विश्व में कई नए संघर्ष और विवाद उभरे। कोसोवो युद्ध, कश्मीर और पाकिस्तान-भारत विवाद, मध्य पूर्व संघर्ष, अफगानिस्तान और दक्षिण-चीन सागर विवाद प्रमुख थे। इन संघर्षों में मुख्य कारण राजनीतिक नियंत्रण, संसाधनों और क्षेत्रीय प्रभुत्व थे। हालांकि अब संघर्ष अधिकतर कूटनीति, आर्थिक दबाव और संयुक्त राष्ट्र मिशनों के माध्यम से हल करने की कोशिश हुई।
7. शीत युद्ध के बाद आतंकवाद और सुरक्षा नीतियों में क्या बदलाव आया?
Ans : शीत युद्ध के बाद आतंकवाद वैश्विक सुरक्षा का प्रमुख मुद्दा बन गया। देशों ने आतंकवाद, हथियारों की तस्करी और साइबर सुरक्षा के लिए नीतियाँ बनाई। अमेरिका और अन्य महाशक्तियों ने अंतरराष्ट्रीय सहयोग बढ़ाया। संयुक्त राष्ट्र के माध्यम से वैश्विक सुरक्षा रणनीतियाँ विकसित की गईं। भारत ने भी अपने आंतरिक और बाहरी सुरक्षा नीतियों में बदलाव कर आतंकवाद से मुकाबला किया।
8. शीत युद्ध के बाद वैश्विक आर्थिक और राजनीतिक गठबंधनों का क्या महत्व है?
Ans : शीत युद्ध के बाद NATO, EU, BRICS और G20 जैसे गठबंधन वैश्विक राजनीति में महत्वपूर्ण बने। ये संगठन राजनीतिक स्थिरता, आर्थिक सहयोग, सुरक्षा और विकास के लिए सहयोग करते हैं। देशों के बीच व्यापार, निवेश और तकनीकी साझेदारी में सुधार लाते हैं। गठबंधनों के माध्यम से छोटे देशों को भी वैश्विक मंच पर अपनी आवाज़ उठाने का मौका मिला।
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